भारत रत्न सरदार पटेल की १४४वीं जयन्ती पर समर्पित कविता
हे भारत भू के लौह पुरुष, स्वीकार करो मेरा वंदन ।
क्यों इतनी जल्दी चले गए, जनगण के मन में है कृन्दन ।।
तुम भारत भू के गौरव हो, तुम नए राष्ट्र के सूत्रधार,
दोबारा भारत में आओ, करते विनती हम बार बार ।
तुम राजनीति के धर्मवीर, तुम से ही सारे कीर्तमान,
तुम कूटनीति के राजवीर, तुम ही संका के समाधान ।
निरपेक्ष भाव से काम किया, सब तोड़े सम्प्रदाय बंधन ।
हे भारत भू के लौह पुरुष स्वीकार करो मेरा वंदन ।।1।।
तुम लोक तंत्र की थे मिसाल, बांटा प्रकाश अंधेरे में ,
तुम आजादी की थे मसाल, ना रुकी कभी जो घेरे में ।
भारत का एकीकरण किया, दुनियाँ में मान बढ़ाया था,
निर्वाह किया था राज धर्म, जनजन विस्वास जगाया था ।
सब राजे और नवाबों का, कर दिया देश हित प्रबंधन ।
हे भारत भू के लौह पुरुष स्वीकार करो मेरा वंदन ।।2।।
तुम स्वयं त्याग की मूरत थे, तुम दीपक हठी जवानी के,
तुम बापू के अनुयायी थे, तुम रूपक थे कुर्बानी के ।
तुम भारत भू के कर्णधार, तुम समता के सौदागर थे,
तुम विधिक ज्ञान में पारंगत, तुम वाणी के जादूगर थे ।
भारत का यूएनओ के संग, कर दिया आपने अनुबंधन ।
हे भारत भू के लौह पुरुष, स्वीकार करो मेरा वंदन ।।3।।
बारदोली आंदोलन से तुम, बन गए किसानों के नेता,
सरदार उपाधी मिली तभी, सबकी नजरों में अभिनेता ।
सरदार तरीका सिखा गए, संयम से देश चलाने का,
जो टेडी चाल चले कोई, उसको रस्ते पर लाने का ।
हलधर “की कविता है टीका, बल्लभ के माथे का चंदन ।
हे भारत भू के लौह पुरुष, स्वीकार करो मेरा वंदन ।।4।।
साभार: कविवर जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून
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