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गढ़वाल एवं कुमाऊँ क्षेत्र में अलग अलग नामों से मनाया जाने वाला प्रमुख सांस्कृतिक एवं पौराणिक पर्व है इगास

आकाश ज्ञान वाटिका, देहरादून। ८ नवम्बर, २०१९, शुक्रवार। इगास, उत्तराखण्ड के गढ़वाल एवं कुमाऊँ क्षेत्र में अलग अलग नामों से मनाया जाने वाला प्रमुख सांस्कृतिक एवं पौराणिक पर्व है। कुमाऊँ में इगास को बल्दिया इगास कहा जाता है। दीपावली (बग्वाल) से ठीक ग्यारह दिन बाद इगास मनायी जाती है। वास्तव में गढ़वाल एवं कुमाऊँ में दीपावली (बग्वाल) से लेकर इगास/प्रबोधिनी एकादशी/हरिबोधनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी तक का पूरा समय त्यौहार का समय होता है जिसे बारा(बारह) बग्वाली के नाम से जाना जाता है। लक्ष्मी पूजन के दिन से एक दिन पहले (छोटी दीपावली) से गढ़वाल एवं कुमाऊँ में यह त्यौहार का सीज़न शुरू होता है और इगास के साथ समापन होता है। गढ़वाल एवं कुमाऊँ क्षेत्र में इस पर्व की विशेषता ये है कि पहले और आखिरी दिन कृषि-सहयोगी पालतू पशुओं के प्रति आभार प्रकट किया जाता है। रोली का टीका किया जाता है, गले में पुष्पमाला डाली जाती है, सींगों पर तेल लगाया जाता है और जौ के आटे के गोले खिलाए जाते हैं। इगास, एकादशी के दिन पड़ती है जिसे हरिबोधनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है। इगास मनाने का एक तर्क ये भी है कि एक दिन उत्सव जाग्रत देवताओं की उपस्थिति में भी मना लिया जाए। ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी से पूर्व छ: माह तक देवता सुप्तावस्था में रहते हैं और इस दिन जाग्रत होते हैं। रात में भैलो खेला जाता है और झुमेला नृत्य किया जाता है। इगास, पर्वतीय किसानों का अपने कृषि-सहयोगी पालतू पशुओं के प्रति कृतज्ञता अभिव्यक्त करने का पर्व है।

पौराणिक मान्यता के आधार पर मन जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार माह के शयनकाल के बाद आज जगते हैं। वहीं विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने शंखासुर नामक भयंकर राक्षस का वध किया था। फिर आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को क्षीर सागर में शेषनाग की शय्या पर भगवान विष्णु ने शयन किया तथा चार माह की निद्रा के बाद आज, देवोत्थान एकादशी के दिन जागते हैं। इस दिन भगवान विष्‍णु समेत सभी देवगण चार महीने की योग निद्रा से बाहर आते हैं। यही वजह है कि इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है।
प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह कराने की भी परंपरा है। आज के दिन शालीग्राम और तुलसी का विवाह कराया जाता है। कहते हैं कि जो कोई भी ये शुभ कार्य करता है, उनके घर में जल्द ही शादी की शहनाई बजती है और पारिवारिक जीवन सुख से बीतता है। तुलसी और शालीग्राम के विवाह का आयोजन ठीक उसी प्रकार से किया जाता है, जैसे कन्या के विवाह में किया जाता है। हिन्‍दू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्‍व है।

 

मान्यता यह है कि भगवान राम के अयोध्या वापस आने की खबर पर्वतीय वासियों को 11 दिन बाद मिली। जिस दिन उन्हें यह खबर मिली, उसी दिन उन्होंने दीपावली मनाई। इस दिन लोग अपने ईष्ट देवी देवताओं की पूजा भी करते हैं।

उत्तराखंड में साहित्यिक एवं धार्मिक दृष्टि से ईगास बग्वाल का इतिहास चार सौ साल पुराना। गढ़देश के ऐतिहासिक पुरूष माधो सिंह भंडारी रहे हैं ।
कहा जाता है कि, वीर भड़ श्री माधो सिंह भंडारी जब तिब्बत में युद्ध लड़ रहे थे, तब कार्तिक की दीपावली चल रही थी। विजय फतह कर वे लौटे तो उनके स्वागत सत्कार के लिए इगास की बग्वाल हुई। तब से यह कार्तिक की बग्वाल के ठीक 11 दिन बाद होती है। यह पहाड़ में काफी गांव में होती है। उत्तरकाशी, सहित पहाड़ो में कुछ सालों से यह बग्वाल दिन में एक समारोह में हो रही है।
जखोली ब्लॉक के ललूड़ी गांव में 1595 जन्में माधो सिंह भंडारी की छह पत्नियां थीं। एक पत्नी बड़कोट के सामने पोंटी गांव की उदाबौराणी थीं। उनके लड़के को पौटी गांव सौप दिया था। वहां भंडारी ने भद्रकाली मंदिर की स्थापना की थीं। वीर योद्धा ने 400 साल पहले गढ़वाल की स्मृद्धि के लिए काम किया। सेनापति आर्मी चीफ रहते उन्होंने रंवाई से लेकर लगुरगढ़ भाबर से लेकर तिब्बत तक गढ़वाल की रक्षा की। चारों दिशाओं में पहले हमला होण लोग करते थे। लूट मार कर भाग जाते थे। महाराजा महीपति शाह के सेनापति इस काम आये। महीपति शाह के कार्यकाल में लूट मार की घटनाओं में शून्यता भंडारी के कारण हुई। माधो सिंह ने तिब्बत की सीमा ओ के साथ गढ़वाल की सीमा को ठीक किया। उनके बनवाए चबूतरे भोट सीमांत पर अब भी पाये हैं।
माधो सिंह भंडारी गढ़देश के ऐतिहासिक वीर पुरुष थे। उस वीर पुरुष ने लोगों के लिये पहाड़ी के अंदर सुरंग काट कर *मलेथा की कूल* का निर्माण किया। नहर के लिए उन्होंने पुत्र की बली दी।
दूसरे पुत्र गजे सिंह और पौत्र अमर सिंह भंडारी का उल्लेख श्री रघुनाथ मंदिर देवप्रयाग के द्वार रजत अभिलेख 1731 में मिलता है।
ईगास की दीवाली के लिए लोगों की फसल धान, कोदा, झगोरा, दाल, गाथ भी तैयार हो जाती है। फसल की सफलता के लिए भी यह दीपावली जानी जाती है   ………..आचार्य  श्रित सुन्दरियाल

इगास के सुअवसर पर गढ़वाल महासभा ने एक भव्य कार्यक्रम आयोजन जसवंत सिंह मैदान में किया। समारोह में जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण के गीतों पर लोग देर रात तक थिरकते रहे। लोगों ने भैलो घुमाकर एक दूसरे को इगास की बधाई दी। जागर सम्राट प्रीतम भरवारण ने जागर और मंडाणों की प्रस्तुति दी। उन्होंने ‘मां नंदा राज राजेश्वरी’, ‘शिवजी का कैलाश रौंदू’ समेत अन्य जागर गाए। शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए देशभक्ति गीत भी प्रस्तुत किए गए। कार्यक्रम में पहुँचे लोगों ने मंडाणों पर जमकर नृत्य करने के साथ ही भैलो घुमाया। मसूरी विधायक गणेश जोशी ने सभी को इगास की बधाई दी। इस अवसर पर गढ़वाल महासभा के अध्यक्ष भगवान सिंह पंवार, उपाध्यक्ष बसंती राणा, महामंत्री रमेश चंद्र, संगठन मंत्री सोनी, बालम सिंह नेगी, यूथ गढ़वाल महासभा के अध्यक्ष गौरव डंगवाल समेत अन्य लोग मौजूद रहे।

  • राज्य सभा सांसद एवं बीजेपी के राष्ट्रीय मीडिया प्रवक्ता अनिल बलूनी के गांव कोट ब्लाक के नकोट में ईगास पर्व की धूम रही। स्वास्थ्य कारणों से अनिल बलूनी इसमें शिरकत नहीं कर सके। शुक्रवार को नकोट में इगास पर्व धूमधाम से मनाया गया। ईगास पर्व के इस आयोजन का मकसद गांवों की खुशहाली को वापस लाने से रूप में मना। राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी ने इसका आह्वान किया था और गांवों की समृद्धि को लेकर ईगास पर्व अपने ही गांव में मनाने का निर्णय लिया था। शुक्रवार को स्थानीय लोगों के साथ बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. संबित पात्रा, विधानसभा अध्यक्ष उत्तराखंड प्रेम चंद्र अग्रवाल और पौड़ी के विधायक मुकेश कोली इगास को मनाने कोट ब्लाक के नकोट गांव पहुंचे। यहाँ ग्रामीणों के साथ भौलो नृत्य में हिस्सा लिया। डॉ. संबित पात्रा ने कहा कि उत्तराखंड के इस पर्व को भी राष्ट्रीय पर्वों की तरह स्थान मिलेगा। पलायन से खाली हो रहे गांवों के प्रति अनिल बलूनी की चिंता वाजिब है और इस दिशा में उन्होंने स्वयं पहल की है। कार्यक्रम में शिरकत करते हुए उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद्र अग्रवाल ने कहा कि जिस तरह से गुजराज में डांडिया नृत्य और बिहार का छठ पूजा मनाई जाती है उसी तरह से ईगास पर्व भी अपनी पहचना बनाएगा। पौड़ी के विधायक मुकेश कोली ने कहा कि नई पीढ़ी अपने त्योहारों को भूलती जा रही है। राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी के पर्वों पर अपने गांव आने का आह्वान सराहनीय है। महिला मंगल दलों ने शानदार मांगल गीतों से लेकर थड्या-चौफला नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी।

भारतीय लोक दल के प्रदेश अध्यक्ष आशीष नौटियाल ने अपने पारवारिक जनों ईष्ट मित्रों एवं अन्य क्षेत्रवासियों के साथ मिलकर अपने निवास बोगनविला कॉलोनी में बड़ी धूमधाम के साथ इगास का पर्व मनाया। सभी लोगों ने गढ़वाली, कुमाऊनी गानों के साथ नृत्य किया तथा भेलो खेला। प्रदेश अध्यक्ष आशीष नौटियाल ने कहा कि आज हम लोग अपनी संस्कृति एवं लोक कलाओं से धीरे धीरे दूर होते जा रहे हैं। यह गम्भीर बात है कि आज की युवा पीढ़ी को हमारी इन प्राचीन परम्पराओं का ज्ञान नहीं के बराबर है तथा अधिकतर बच्चों को तो इगास जैसे कई अन्य त्योहारों का नाम व महत्व तक मालूम नहीं है। अतः आज जरुरत है कि हम अपने बच्चों, परिवार व समाज के साथ मिलकर अपने लोक पर्वों को वास्तविक रूप में मनायें, जिससे उनको इनके बारे में जानकारी रहें।

 

देहरादून में धर्मपुर स्थित सिद्ध पीठ प्राचीन शिव मंदिर में देव उठनी एकादशी पर दीपोत्सव का पर्व बड़ी धूम धाम से मनाया गया।

निओ विजन, बद्री-केदार सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थान व गढभोज के आमन्त्रण पर उत्तराखण्डी समाज ने “इगास का भैलो मंडाण” का आयोजन किया जिसमें उत्तराखण्ड की लोक-संस्कृति का सजीव चित्रण किया गया। देहरादून के परेड ग्राउंड स्थित धरना स्थल मैदान में हुए इस आयोजन में बड़ी संख्या में उत्तराखंड के लोगों ने पहुंचकर अपनी लोक परम्पराओं व लोक त्यौहारों की आवाज बुलंद कर इगास के भैलो मंडाण में अपनी भागीदारी निभाई। टिहरी क्षेत्र के आगराखाल से भैलो के लिए भेमल की लड़की व रस्सी मंगवाई गयी जिससे भैलो का निर्माण किया गया। यहीं से दो जोड़ी ढोल दमाऊ भी मंगवाए गए जिनको बजाकर अपनी लोक परम्पराओं की खुशियां मंडाण के रूप में पंडो नृत्य कर लोगों ने जश्न मनाया। निओ विजन के गजेंद्र रमोला ने बताया कि उनका मकसद अपनी लोक-परम्पराओं को प्रदेश में भी जीवित रखने को लेकर हमेशा प्रयासरत रहना है। यहां आए दिन अन्य त्यौहार जैसे छठ व करवाचौथ से हमारा समाज जुड़ रहा है लेकिन हम अपने लोक-त्यौहारों से अपने समाज को नहीं जोड़ पा रहे हैं उसकी पीड़ा हमें बहुत चुभती रहती है। बद्री केदार सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थान के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार मनोज इष्टवाल ने बताया कि यह आश्चर्यजनक लेकिन सुखद लगा जब हमारे एक व्यवसायी मित्र हिमांशु अग्रवाल ने मुझे कहा कि आप लोग सिर्फ दूसरों के लोक त्यौहारों का विरोध करो लेकिन अपनी लोक परम्पराओं का कहीं प्रदर्शन मत करना। यह बात दिल में खटकी और गजेंद्र रमोला व गढभोज के लक्ष्मण सिंह रावत के साथ मिलकर हमने मात्र तीन दिन में इस आयोजन की पृष्ठभूमि तैयार कर यह तय कर लिया कि इगास का भैलो कार्यक्रम आयोजित करना है। उन्होंने कहा कि आगराखाल टिहरी से भैलो, अरसे, पकोड़े व ढोल दमाऊं मंगवाए गए और देखते ही देखते जश्न की तैयारी शूरु हो गयी। जन सहयोग की बात आई तो हिन्दू धर्म संस्कृति के ध्वज वाहक स्वामी दर्शन भारती, विचार एक सोच के सम्पादक राकेश बिजल्वाण, पत्रकार आशीष नेगी, पुष्कर नेगी, सतीश इष्टवाल, बद्री केदार सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थान के सचिव सुमित इष्टवाल इत्यादि ने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए यथासंभव सहायता की। मनोज इष्टवाल ने कहा कि अगले बर्ष इसका हम वृहद आयोजन करेंगे। कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए स्वामी दर्शन भारती, वरिष्ठ पत्रकार दिनेश कण्डवाल, मदन मोहन लखेड़ा, लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल, जीतमणि पैन्यूली, संजय भट्ट, आलोक शर्मा, संदीप गुसाई, प्रियांक वशिष्ठ के अलावा सामाजिक क्षेत्र में कल्याण सिंह रावत “मैती”, राकेश बिजल्वाण, रामेश्वर बहुगुणा, रोहित नौटयाल, बिशम्बर नाथ बजाज, श्रीमती रेणु नेगी, बद्रीश छाबड़ा, मीनू इष्टवाल, किरण बिडालिया, सतीश इष्टवाल, नरेश सिंह, सुमित इष्टवाल, श्रीमती ज्योत्सना असवाल इत्यादि मौजूद रहे।

हमें विभिन्न पर्व एवं त्यौहारों के माध्यम से अपनी सांस्कृतिक एवं पौराणिक परम्पराओं के संरक्षण एवं सम्बर्द्धन में हमेशा प्रयासरत रहना चाहिए। आकाश ज्ञान वाटिका टीम की ओर से सभी प्रदेशवासियों को उत्तराखंड की संस्कृति के प्रतीक इगास पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। त्यौहार एवं पर्व समाज में आपसी भाईचारे, सेवा एवं समर्पण की भावना को जाग्रत किये रखते हैं। हमें अपनी पौराणिक परम्पराओं का सदैव सम्मान करना चाहिए। अपने तत्यौहारों/पर्वों को उसके वास्तविक रूप में मनाने के साथ साथ अपनी भावी पीढ़ी को भी अपनी सांस्कृतिक एवं पौराणिक परम्पराओं का अहसास दिलाते रहना चाहिए।

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Ghanshyam Chandra Joshi

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