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1971 में भारत-पाक युद्ध में भारत की विजय के साहसिक क्षणों व जॉबाज़ नौ-सैनिकों की शक्ति और बहादुरी की याद में मनाया जाता है, “भारतीय नौसेना दिवस”

भारतवर्ष अनेकता में एकता का प्रतीक है। इसी गुण को आत्मसात कर भारतीय नौ-सेना ने भी अनेकता में एकता के मंत्र को सुरक्षित रखा है। बड़ा गर्व होता है इन नौ-सैनिकों पर जो शीतल व पवित्र समुद्र के जल में स्थित पोत में एक साथ भारत के कोने-कोने से आकर रहते हुए अपना कर्तव्य पालन करते है।

‘हम सब एक हैं; लक्ष्य हमारा एक है’, यही शिक्षा देते हैं हमें नौ-सैनिक।

आकाश ज्ञान वाटिका, 4 दिसम्बर 2021, शनिवार, देहरादून। राष्ट्रीय जल सर्वेक्षण कार्यालय में बड़ी धूमधाम से नौसेना दिवस (NAVYDAY) का आयोजन किया गया, जिसमें काफी संख्या में नौसैनिक, नौसैनिक उपस्थित रहे। समरोह के मुख्य अतिथि, मुख्य जल सर्वेक्षक, वाइस एडमिरल अधीर अरोड़ा ने सभी उपस्थित नौसैनिकों, पूर्व नौसैनिकों एवं अन्य अतिथि जनों को नौसेना दिवस की शुभकामनायें एवं बधाई दी।

भारत की समुन्द्री सीमा की सुरक्षा का जिम्मा भारतीय नौसेना के कंधों पर है जो वह हमेशा बड़े ही जिम्मेदारी के साथ निभाते आ रही है। वैसे तो नौसेना  की शुरूवात 5 सितंबर 1612 को हुई थी, जब ईस्ट इंडिया कंपनी के युद्धपोतों का पहला बेड़ा सूरत बंदरगाह पर पहुँचा था और 1934 में ‘‘रॉयल इंडियन नेवी’’ की स्थापना हुई थी, लेकिन हर साल चार दिसंबर को ‘‘भारतीय नौसेना दिवस’’ मनाए जाने की वजह इसके गौरवमयी इतिहास से जुड़ी हुई है।

सन् 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान, भारतीय नौसेना (INDIAN NAVY) ने अपना अद्म्य साहस व वीरता का परिचय देते हुए पाकिस्तानी नौ-सेना मुख्यालय, कराची पर हमला करने के साथ-साथ विशाखापटनम समुद्रीय क्षेत्र में पाकिस्तानी पनडुब्बी को समुद्र में डूबो दिया था। उन साहसिक क्षणों को याद करने व शहीद नौ-सैनिकों की शहादत को नमन करने के लिए “नौ-सेना दिवस” प्रतिवर्ष 4 दिसम्बर को मनाया जाता है।

भारतीय नौसेना (INDIAN NAVY), भारतीय सशस्त्र सेनाओं का एक प्रमुख अंग है, जो देश की समुद्री सीमाओं को सुरक्षित रखने के साथ-साथ प्राकृतिक आपदाओं के समय राहत व बचाव कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त भी प्रारम्भिक कुछ वर्षों तक भारतीय नौसेना में कई ब्रिटिश अधिकारी कार्यरत थे। 22 अप्रैल 1958 में भारतीय नौसेना को वाइस एडमिरल रामदास कटारी के रूप में प्रथम भारतीय अधिकारी, नौसेना प्रमुख (Chief of Naval Staff) के रूप में मिले। तब से आज तक भारतीय नौसेना ने भारतीय तटों की सुरक्षा के साथ-साथ आंतरिक सुरक्षा के क्षेत्र में सराहनीय व साहसीय कार्य किये हैं।

भारतीय नौ-सेना का सामना सर्वप्रथम पुर्तगीज नौसेना के साथ गोवा को पुर्तगीज से मुक्त कराने के दौरान हुआ। यद्यपि 1962 का युद्ध मुख्य रूप से उत्तरी हिमालयी क्षेत्र से लड़ा गया, परन्तु इस दौरान भारतीय नौ-सेना का रक्षक कवच व उसकी निगरानी काफी अहम थी। 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भारतीय नौ-सेना ने पश्चिमी व पूर्वी पाकिस्तान पर अपनी ताकत दिखाकर पाकिस्तानी सेना के इरादे नाकाम कर दिये। एडमिरल एस.एम. नन्दा के नेतृत्व में भारतीय नौसेना ने सफलतापूर्वक पश्चिमी व पूर्वी पाकिस्तान पर अपने जॉबांज नौ-सैनिकों के माध्यम से कड़ा अवरोध खड़ा कर दिया। इस दौरान एडमिरल नन्दा के कार्यकाल में भारतीय नौसेना में बड़ा बदलाव आया तथा ताकत में काफी इजाफा हुआ।

3 व 4 दिसम्बर 1971 की मध्यरात्रि को विशाखापटनम के समुद्री क्षेत्र में पाकिस्तान की पनडुब्बी गाजी भारतीय युद्ध पोत आइएनएस राजपूत द्वारा समुद्र में डुबा दी गई। 4 दिसम्बर 1971 को ‘आपरेशन ट्रिडेन्ट’ के दौरान भारतीय नौसेना द्वारा पाकिस्तानी नौसेना मुख्यालय कराची पर ताबड़तोड़ हमला कर उनके युद्धपोतों को डुबा दिया गया। ‘आपरेशन ट्रिडेन्ट’ के तुरन्त बाद ‘आपरेशन पाइथन’ की शुरूआत 8 दिसम्बर 1971 को हुई। जिससे पाकिस्तानी नौसेना की ताकत का पतन और अधिक हो गया। इसके अतिरिक्त ‘आपरेशन कैक्टस’ के माध्यम से भारतीय नौसेना पोत गोदावरी तथा भारतीय नौसेना कमांडोज द्वारा समुद्री लुटेरों के चंगुल से बन्धक जहाज को छुड़ाकर, लुटेरों को पकड़ने में सफलता हॉसिल की।

सन् 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान भी भारतीय नौसेना की भूमिका अहम रही। ‘आपरेशन तलवार’ में पश्चिमी व पूर्वी नौसेना बेड़ों के युद्धपोतों को अरब सागर पर तैनात कर दिया गया, जिससे पाकिस्तानी नौसेना के मनसूबे नाकाम हो गये तथा भारत के समद्री व्यापार के रास्तों पर भी पाकिस्तानी नौसेना का कोई प्रभाव नहीं पड़ सका। इसके साथ ही भारतीय नौसेना के वायु विंग द्वारा मैरीन कमांडोज को भारतीय थल सेना के सहयोग के लिए उतारा गया। सन् 2001-2002 में भारतीय सेना के संयुक्त अभ्यास ‘आपरेशन पोखरन’ के दौरान एक दर्जन से भी ज्यादा नौसेना युद्धपोतों को उत्तरी अरब सागर में तैनात कर भारतीय नौसेना ने अपनी ताकत का आगाज किया। भारतीय नौसेना की भूमिका, प्राकृतिक आपदा के समय, हमेशा ही काफी महत्वपूर्ण, साहसिक व सराहनीय रही है। बाढ़, सुनामी, चक्रवात के दौरान भी अपनी जान की प्रवाह किये बगैर, कई पीड़ि़तों को बचाकर उन्हें सहायता प्रदान की। सन् 2004 में हिन्द महासागर में आये सुनामी के दौरान भारतीय तटीय क्षेत्र व मालदीव के प्रभावित क्षेत्रों में राहत व बचाव कार्य किये। इस दौरान भारतीय नौ-सेना द्वारा आन्ध्र प्रदेश व तमिलनाडु में आपरेशन मलाड, अंडमान निकोबार में ‘आपरेशन सी वेव्स’ व इंडोनेशिया मे ‘आपरेशन गम्भीर’ के माध्यम से नौसेना द्वारा दो दर्जन से ज्यादा युद्ध पोतों, दर्जनों हैलीकाप्टर व पांच हजार से भी ज्यादा नौ-सैनिकों को राहत व बचाव कार्य में लगाया गया। यह सबसे लम्बा व तेजी गति से चला राहत व बचाव कार्य था जिसमें नौ-सेना बचाव दल व पोत 12 घंटे के अन्दर ही प्रभावित पड़ोसी देशों तक पहुँच गये। ‘आपरेशन सुकून’ के माध्यम से लेबनान से 2286 भारतीयों तथा 69 नेपालियों को लाया गया। इसके अतिरिक्त भी भारतीय नौसेना द्वारा देश व विदेशों में कई राहत व बचाव कार्यो में महत्वपूर्ण भमिका निभाई गयी।

आज भी भारतीय नौसेना के जॉबांजों के दिलों में सुरक्षा, देश-प्रेम, मानवता का जो मिश्रण घुला है वह हम सबके लिए प्रेरणादायी है।

WE SALUTE INDIAN NAVAL PERSONNEL

जय हिन्द। जय जवान।

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Ghanshyam Chandra Joshi

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