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माँ-बाप की भक्ति से ही मिलती है शक्ति : “कांवड़ में माँ-बाप को लेकर हरिद्वार पहुँचा बेटा”

धर्म, आस्था, श्रद्धा, विश्वास, भक्ति का संगम है कांवड़ यात्रा

आकाश ज्ञान वाटिका, 18 जुलाई 2022, सोमवार, हरिद्वार। धर्म, आस्था, श्रद्धा, विश्वास, भक्ति संग आध्यात्मिक शक्ति के मिलन का पर्व है, कांवड़ मेला यात्रा। श्रावण मास में दो सप्ताह चलने वाली यात्रा में शिव भक्त धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप कांवड़ में गंगा जल भरकर अपने गंतव्य तक जाते हैं। इसी क्रम में माता-पिता को कांवड़ पर बैठाकर गाजियाबाद से विकास गहलोत पैदल हरिद्वार पहुँचे हैं।

गाजियाबाद के विकास गहलोत ने माता-पिता से अपना दर्द छुपाने के लिए उनकी दोनों की आंखों पर पट्टी बांधी हुई है। चिलचिलाती धूप और सैकड़ों किलोमीटर के सफर की परवाह किए बगैर माता-पिता को कांवड़ पर बैठाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करने निकले विकास की हर कोई तारीफ कर रहा है, चारों तरफ वाहवाही हो रही है।

इतनी लम्बी एवं कठिन कांवड़ यात्रा के दौरान उनका दर्द देख माता-पिता विचलित न हों, इसके लिए विकास गहलोत ने अपने माता-पिता की आंखों पर कपड़ा बाँध रखा है।

विकास गहलोत के अनुसार उनके माता-पिता की कांवड़ यात्रा करने की इच्छा थी, लेकिन उम्र के इस पड़ाव में इतनी लम्बी कांवड़ यात्रा कर पाना संभव नहीं था लेकिन एक मातृ-पितृ भक्त, श्रद्धालु एवं आस्था एवं संस्कारों से भरा विशाल हृदय बेटे ने अपने माँ-बाप की इच्छा को पूर्ण कर बहुत बड़ा पुण्य कमाने के साथ ही हम सब के लिए एक प्रेरणाप्रद पथ प्रदर्शित किया है। विकास के मन में काफी पहले से अपने माता-पिता को कावड़ यात्रा कराने की इच्छा थी।
निश्चित तोर पर विकास गहलोत ने यह सिद्ध कर दिया है कि माता-पिता की सेवा से बढ़कर और कोई सेवा व भक्ति नहीं हो सकती है।

कांवड़ ले जाने के लिए धार्मिक मान्यताओं का विशेष ध्यान रखा जाता है। शुभ मुहुर्त में कांवड़ को गंगा जल में स्नान कराकर पूजा अर्चना करने के बाद उठाया जाता है। कांवड़ यात्रा के दौरान कई वस्तुओं को निषेध किया गया है। कांवड़ ले जाते वक्त पूर्ण सात्विक रूप से ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है। साथ ही कई प्रकार के मार्ग में निषेधों से बचना पड़ता है। कांवड़ मार्ग में शौच आदि से निवृत्त होने के बाद पूर्ण शुद्धि करने पर ही कांवड़ को पुन: उठाना पड़ता है। कांवड़ को एक बार कंधे पर रखने के बाद जमीन पर नहीं रखना होता, विश्राम के दौरान या लघु शंका, शौच आदि कर्मों के साथ ही भोजन, नाश्ता आदि करने पर कांवड़ को स्टैंड पर रखना होता है। यात्रा के दौरान शिव का गुणगान करना होता है। अपशब्द या गलत आचरण से बचना होता है। मांस, मदिरा व मद्य पदार्थों का पूरी तरह निषेध होता है। यात्रा में गुलर के पेड़ का विशेष निषेध माना जाता है। इसी प्रकार बिना किसी को पैसे दिए यात्रा में कोई सामान नहीं लिया जाता। बिना पैसे दिए भोजन आदि करना, इस आस्था के खिलाफ समझा जाता है। 

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Ghanshyam Chandra Joshi

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