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कनाडा में सिख समुदाय आतंकियों के दबाव से त्रस्त

भारत डोगरा
तेईस जून, 1985 को कनिष्क एअर इंडिया 182 विमान में उड़ते समय भयंकर विस्फोट हुआ जिससे हवाई जहाज अटलांटिक सागर में आयरलैंड के तटीय क्षेत्र के पास गिरा और उसमें सवार सभी 329 व्यक्ति मारे गए। इनमें से अधिकतर भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक थे। जिन परिवारों के सदस्य मारे गए आज भी उन्हें न्याय नहीं मिला। इसके अतिरिक्त, यह भी समय-समय पर प्राप्त होने वाले तथ्यों से स्पष्ट होता रहा है कि यदि कनाडा की गुप्तचर और पुलिस एजेंसियों ने समुचित कार्रवाई की होती तो बड़ी संभावना यह होती  कि इस हादसे को रोका जा सकता था।

कनाडा के पब्लिक सेफ्टी मंत्रालय ने ओंटारियो के पूर्व मंत्री बाब रे को इस त्रासदी की जांच का काम सौंपा था। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि कनाडा गुप्तचर संस्थान (सीएसआईएस-कनाडियन सेक्युरिटी इंटेलीजेंस सर्विस) के अधिकारियों ने ऐसे दो खालिस्तानियों का पीछा किया जो उनके संदेह के दायरे में थे। दोनों एक टापूनुमा वीरान जंगली क्षेत्र में पहुंचे। यहां तक गुप्तचरों ने उनका पीछा किया। फिर जहां ये खालिस्तानी गए थे वहां से बड़े धमाके की आवाज आई। कोई बच्चा भी कहेगा कि इस धमाके की आवाज आने से पूछताछ की जरूरत और बढ़ गई थी पर इन गुप्तचरों ने ऐसा कुछ नहीं किया और आगे कोई कार्रवाई ही नहीं की। अब जब अन्य तथ्य सामने आ चुके हैं तो स्पष्ट है, जैसा कि जांच रिपोर्ट में भी कहा गया है, कि यह सुनसान इलाके में बम टेस्ट करने का प्रयास था क्योंकि दो वायुयानों में बम रखने की तैयारियां उस समय पूरे जोरों पर थीं। यदि समय पर इन खालिस्तानियों से भली-भांति पूछताछ कर ली जाती तो षडय़ंत्र को उसी समय रोक पाने की संभावना थी।
एक अन्य बड़ा मुद्दा है कि गुप्तचर एजेंसी सीएसआईएस ने पहले टेपों पर खालिस्तानी षडय़ंत्रकारियों की बहुत सी बातचीत रिकार्ड भी की थी और फिर इससे पहले कि इस रिकार्डिग का समुचित विश्लेषण हो पाता, इनको नष्ट कर दिया गया। जांच रिपोर्ट ने इस बारे में इस केस की सुनवाई कर रहे जस्टिस जैसिफसन की टिप्पणी की ओर ध्यान दिलाया है, जिन्होंने इसे ऐसी लापरवाही बताया था, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। आखिर, इतनी बड़ी लापरवाही कैसे हो गई, इस पर चर्चा हुई तो सीएसआईएस का यह पक्ष सामने आया कि उसके एक एजेंट ने खालिस्तानी षडय़ंत्रकारियों में घुसपैठ कर ली थी, हालांकि कनिष्क हादसे से तीन दिन पहले उसे अलग कर लिया गया। सीएसआईएस का पक्ष, जो प्रकाशित रिपोटरे में बताया गया है (जैसा बीबीसी की एक रिपोर्ट में भी छपा) कि उसने अपने इस एजेंट के बचाव के लिए टेप नष्ट किए।

पर ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि एजेंट के पास जो जानकारी थी, उसका भरपूर उपयोग किया जाता तो इतना समय जरूर मिलता कि षडय़ंत्र का पता लगा कर उसे नाकाम कर दिया जाता। पर ऐसा नहीं हुआ। जांच रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि जो जानकारी सीएसआईएस के पास होती थी वह कनाडियन पुलिस (आरसीएमपी) के साथ ठीक से शेयर नहीं की जाती थी। कनाडा के उच्च स्तर के कुछ सुरक्षा अधिकारियों ने इस बारे में गंभीर चिंता व्यक्त करनी आरंभ की कि कनाडा में बहुत से आतंकी संगठनों ने डेरा जमा लिया है। सीएसआईएस के पूर्व अध्यक्ष वार्ड एलकाक ने अपनी उच्चस्तरीय जानकारी के आधार पर सीनेट की एक विशेष समिति को बताया कि अमेरिका को छोड़ दें तो किसी भी अन्य देश की अपेक्षा कनाडा में अधिक आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं। उन्होंने बताया कि उनका संस्थान सीएसआईएस की आतंक-विरोधी शाखा ऐसे 50 आतंकवादी संगठनों और इनसे जुड़े 350 व्यक्तियों की जांच कर रहा है। उन्होंने आगे बताया कि ये विभिन्न आतंकवादी संगठन आतंकवादी कार्रवाइयों में सहायता देते हैं, आतंकवाद के लिए धन एकत्र करते हैं, प्रोपेगंडा और असत्य (डिसइंफाम्रेशन) फैलाने के लिए विभिन्न समुदायों का दोहन-शोषण करते हैं, अप्रवासियों को डराते-धमकाते हैं, आतंकियों के लिए कनाडा में सुरक्षित शरण स्थलों की व्यवस्था करते हैं, आतंकियों की अमेरिका तक आने-जाने की व्यवस्था करते हैं, और अप्रवासियों की तस्करी करते हैं।

यह बयान कनाडा के फ्रेसर इंस्टीटय़ूट की अध्ययन रिपोर्ट में उपलब्ध है, जिसका शीषर्क है ‘कनाडा’ज इनएडिक्वेट रिस्पॉन्स टू टेररिज्म’। रिपोर्ट के लेखक हैं मार्टिन कोलाकोट। रिपोर्ट में बताया गया है कि विभिन्न खालिस्तानी आतंकवादी संगठनों के अतिरिक्त अनेक अन्य तरह के आतंकवादी संगठन भी कनाडा में सक्रिय हैं, और इनका संबंध अनेक अन्य चर्चित आतंकवादी हमलों से भी जुड़ा रहा है। रिपोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि कई महत्त्वपूर्ण संदभरे में कनाडा की सरकार आतंकवाद के नियंत्रण के लिए असरदार कदम उठाने में असमर्थ रही है। रिपोर्ट ने बताया है कि खतरनाक आतंकी संगठनों पर सरकार प्रतिबंध नहीं लगा सकी और यहां तक कि ऐसे कुछ संगठन परोपकारी कार्य का आवरण लगा कर अपना प्रसार करते हैं, उस पर भी काफी समय तक रोक नहीं लग सकी। उनके विरुद्ध असरदार कार्रवाई करने के बहुत कम उदाहरण कनाडा में देखे गए हैं।

इतना ही नहीं, कुछ राजनीतिक दल और नेता भी अपने संकीर्ण स्वार्थी हितों के लिए ऐसी ढील देने की नीति अपनाते हैं। सीएसआईएस की रणनीतिक योजना के पूर्व मुख्य अधिकारी डेविड हैरिस से जब पूछा गया कि क्या कनाडा आतंकवादियों की सुरक्षित शरण स्थली बन रहा है, तो उन्होंने उत्तर दिया कि ऐसी आशंका का बड़ा खतरा है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां 50 आतंकवादी संगठनों की उपस्थिति है, जिनमें से अनेक प्रमुख आतंकवादी संगठन हैं। वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक स्टीवर्ट बेल ने एक पुस्तक लिखी है, जिसका शीषर्क है-‘कोल्ड टैरर-कनाडा नरचर्स एंड एक्सपोटर्स टैररिज्म थ्रूआउट द र्वल्ड’। इसमें उन्होंने लिखा है कि कनाडा की आतंकी समस्याओं के कारण बहुत हिंसा हुई है, लोग मारे गए हैं। इससे कनाडा में समस्याएं बढ़ गई हैं, और कुछ समुदायों पर उग्रवादियों ने अपना नियंत्रण बढ़ा लिया है।

मेजर ग्रेग ले ने कनाडियन फोर्सेज कॉलेज के लिए एक अनुसंधान पत्र लिखा है, जिसका शीषर्क है, ‘द इवॉल्यूशन ऑफ टैररिज्म इन कनाडा-इन्क्रीज्ड थ्रेट इन अ कल्चर ऑफ इनडिफेरेंस’। इस अध्ययन में लिखा है कि आतंकियों की हिंसक और जबरदस्ती वाली प्रवृत्तियों से कनाडा के सिख समुदाय की समस्याएं और दुख-दर्द बढ़ गए हैं। बाब रे, जो आनटेरियो के मंत्री रह चुके थे, को कनिष्क त्रासदी की जांच का कार्य सौंपा गया। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में बताया कि सिख समुदाय आतंकियों के दबाव से त्रस्त और परेशान है। इन सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए जरूरी है कि कनाडा सरकार आतंकवाद पर नियंत्रण रखने की अपनी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी भली-भांति निभाए।

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Ghanshyam Chandra Joshi

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