स्वदेशी मेले का द्वितीय दिवस : लोगों ने उत्साह के साथ बढ़चढ़ कर भाग लिया, लोकल कलाकारों व प्रतिभाओं को प्रदान किया गया सांस्कृतिक मंच
सांस्कृतिक संध्या में नीतिमाणा की सांस्कृतिक टीम ने सुंदर एवं मनमोहक रंगारंग प्रस्तुतियाँ देकर लोगों का मन मोह लिया
आकाश ज्ञान वाटिका, रविवार, 16 अक्टूबर 2022, देहरादून। स्वदेशी जागरण मंच एवं स्मृति विकास संस्थान द्वारा आयोजित स्वदेशी मेले के द्वितीय दिवस (15 अक्टूबर 2022) कार्यक्रम में लोगों ने उत्साह के साथ बढ़चढ़ कर भाग लिया तथा सांस्कृतिक संध्या का आनन्द उठाया।
मेले के द्वितीय दिवस, 15 अक्टूबर 2022 की सांस्कृतिक संध्या का शुभारंभ सायं 7 :00 बजे मुख्य अतिथि के रूप में श्रीमती कुसुम कंडवाल, अध्यक्ष उत्तराखंड राज्य महिला आयोग, विशिष्ट अतिथि श्रीमती अंजना वालिया, दिगंबर नेगी, वरिष्ठ भाजपा नेता व कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही श्रीमती पुष्पा डोभाल द्वारा समिति व संगठन के पदाधिकारियों के साथ भारत माता के चित्र समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर के किया गया। कार्यक्रम का संचालन आयोजक समिति के महामंत्री अधिवक्ता एवं प्रबुद्ध/प्रख्यात समाज सेवी ललित मोहन जोशी द्वारा किया गया।
मेले की सांस्कृतिक सन्ध्या में नीतिमाणा की सांस्कृतिक टीम ने सुंदर एवं मनमोहक रंगारंग प्रस्तुतियाँ देकर लोगों का मन मोह लिया। आज सांस्कृतिक कार्यक्रम में लोकल कलाकारों व प्रतिभाओं को भी मंच प्रदान किया गया। जिसमें मेले के आस-पड़ोस में रहने वाले बच्चों ने मंच पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। जिनको महिला आयोग की अध्यक्ष कुसुम कण्डवाल व अन्य अतिथियों ने मैडल देकर सम्मानित किया।
स्वदेशी मेले में अतिथि श्रीमती कुसुम कंडवाल ने कहा कि हमको अपना कल संवारना होगा तो अपने पहाड़ों, अपनी जड़ों और अपनी जमीन को वापिस लौटना होगा। स्वदेशी के समान के उपयोग के प्रचार का विशेष माध्यम बताया। उन्होंने मेले में आये हुए लोगो को कहा कि हमको अपनी संस्कृति और संस्कारों को बचाने के लिए अपनी परंपराओं, अपनी पुरानी बातों को अपने बच्चों से साझा करना होगा। उन्होंने यह भी कहा यदि हमें अपने आने वाले कल को संवारना है तो हमें अपने गाँव, अपनी संस्कृति से जुड़ना होगा तथा हमें अपनी संस्कृति के भोजन, अपनी खेती को अपनाना होगा।
मेले में अपनी मधुर वाणी से सफल संचालन कर रहे, स्वदेशी जागरण मंच एवं स्मृति विकास संस्थान के महामंत्री ललित जोशी ने उत्तराखंड के पहाड़ों में पलायन से पूर्व की स्थिति के बारे में जिस अंदाज में बताया, उससे पहाड़ों की उन शांत वादियों, मनमोहक दृश्यों की याद तजा होने लगी। निश्चित तौर पर उनके द्वारा कही गयी बात, यह कि यदि हम लोग कुछ बेहतर करने, नौकरी आदि प्राप्त करने के उद्देश्य से गाँवों को छोड़कर मजबूरन शहरों की तरफ आये हैं तो भी हमें अपनी जन्मस्थली, पहाड़ों के प्रति लगाव बना रहना चाहिए। उन्होंने बताया कि हमें साल में कभी न कभी, किसी न किसी बहाने, चाहे वह शादी-ब्याह में जाने का हो, अपने देवी देवताओं के पूजन का हो या फिर कोई अन्य, अपने गाँव अवश्य जाना चाहिए।