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देशविशेष

प्रखर शिक्षाविद्, विचारक, चिन्तक एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, डॉ० श्यामा प्रसाद मुखर्जी

आकाश ज्ञान वाटिका, मंगलवार, 23 जून 2020, देहरादून। डॉ० श्यामाप्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 को अत्यन्त प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी विख्यात शिक्षाविद् एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व थे। उन्होंने वर्ष 1917 में मैट्रिक तथा वर्ष 1921 में बी.ए. की उपाधि प्राप्त करने के उपरांत वर्ष 1923 में लॉ की उपाधि अर्जित करने के पश्चात् वह विदेश चले गये तथा वर्ष 1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौट आये। 33 साल की उम्र में वह कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। इस पद पर सुशोभित होने वाले वह सबसे कम उम्र के कुलपति थे।

डॉ० श्यामाप्रसाद मुखर्जी एक महान सिद्धान्तवादी एवं मानवता के उपासक थे। उनके मन में अखंड भारत की एक ठोस परिकल्पना थी और उन्होंने देश सेवा की अथाह ललक के कारण स्वेच्छा से राजनीति में प्रवेश किया। उन्होने बहुत से गैर कांग्रेसी हिन्दुओं की मदद से कृषक प्रजा पार्टी से मिलकर प्रगतिशील गठबन्धन का निर्माण किया। इस सरकार में वे वित्तमन्त्री बने लेकिन इसी समय वह सावरकर के राष्ट्रवाद के प्रति आकर्षित हुए और हिन्दू महासभा में सम्मिलित हो गए। अपनी विशिष्ट रणनीति से उन्होंने बंगाल के विभाजन के मुस्लिम लीग के प्रयासों को पूरी तरह से नाकाम कर दिया।

ब्रिटिश सरकार की भारत विभाजन की गुप्त योजना और षड्यन्त्र को कांग्रेस के नेताओं ने अखण्ड भारत सम्बन्धी अपने वादों को ताक पर रखकर स्वीकार कर लिया था। उस समय डॉ० श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने बंगाल और पंजाब के विभाजन की माँग उठाकर प्रस्तावित पाकिस्तान का विभाजन कराया और आधा बंगाल और आधा पंजाब खण्डित भारत के लिए बचा लिया। महात्मा गाँधी और सरदार पटेल के अनुरोध पर वे भारत के पहले मन्त्रिमण्डल में शामिल हुए। उन्हें उद्योग जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गयी। संविधान सभा और प्रान्तीय संसद के सदस्य और केन्द्रीय मन्त्री के नाते उन्होंने शीघ्र ही अपना विशिष्ट स्थान बना लिया लेकिन उनके राष्ट्रवादी चिन्तन के चलते अन्य नेताओं से मतभेद बराबर बने रहे। जब नेहरू-लियाक़त पैक्ट हुआ तो, राष्ट्रीय हितों की प्रतिबद्धता को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानने के कारण डॉ० श्यामाप्रसाद मुखर्जी और बंगाल के एक और मंत्री ने मन्त्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने एक नई पार्टी बनायी जो उस समय एक विपक्ष के रूप में सबसे बड़ा दल था। अक्टूबर, 1951 में भारतीय जनसंघ का उद्भव हुआ।

“या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा।”………….. डॉ० श्यामाप्रसाद मुखर्जी
जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना डॉ० श्यामाप्रसाद मुखर्जी का एक प्रमुख लक्ष्य था। उस समय जम्मू कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था काफी खिलाफ थे। उन्होंने संदन में धारा-370 को समाप्त करने की भी पुरजोर वकालत की। इसके लिए उन्होंने अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में अपना संकल्प व्यक्त किया था कि “या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा।” अपने इस संकल्प को पूरा करने के लिये वह वर्ष 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े तथा वहाँ पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नज़रबन्द कर लिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनका देहांत हो गया। आज इस दिन 23 जून को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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Ghanshyam Chandra Joshi

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