धार्मिक नगरी अल्मोड़ा स्थित ऐतिहासिक नन्दादेवी मंदिर में लगने वाले नन्दाष्टमी मेले की रौनक ही कुछ अलग है
आकाश ज्ञान वाटिका, बुधवार, 26 अगस्त 2020, देहरादून। देवभूमि उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मंड़ल के अतिरिक्त भी माँ नन्दादेवी सम्पूर्ण गढ़वाल एवं हिमालय के अन्य भागों में जन-जन की आराध्य लोकप्रिय देवी हैं। माँ नन्दा की उपासना प्राचीन काल से होती आ रही है। रूप मंडन में पार्वती को गौरी के छ: रुपों में एक बताया गया है। भगवती की 6 अंगभूता देवियों में नन्दा भी एक है। नन्दा को नवदुर्गाओं में से भी एक बताया गया है। भविष्य पुराण में जिन नौ दुर्गाओं का उल्लेख किया गया है, उनमें महालक्ष्मी, नन्दा, क्षेमकरी, शिवदूती, महाटूँडा, भ्रामरी, चंद्रमंडला, रेवती और हरसिद्धी हैं। शिवपुराण में वर्णित नन्दा तीर्थ वास्तव में कूर्मांचल ही है। शक्ति के रूप में माँ नन्दा ही सारे हिमालय क्षेत्र में पूजित हैं।
माँ नन्दा के शक्ति रूप की पूजा गढ़वाल में करुली, कसोली, नरोना, हिंडोली, तल्ली दसोली, सिमली, तल्ली धूरी, नौटी, चांदपुर, गैड़लोहवा आदि स्थानों में होती है। गढ़वाल में नंदा राजजात यात्रा का आयोजन भी माँ नन्दा के सम्मान में किया जाता है।
कुमाऊँ में अल्मोड़ा, रणचूला, डंगोली, बदियाकोट, सोराग, कर्मी, पोंथिग, कपकोट तहसील, चिल्ठा, सरमूल आदि में माँ नन्दा के प्रसिद्द मंदिर हैं। अनेक स्थानों पर माँ नन्दा के सम्मान में मेलों के रूप में समारोह आयोजित किये जाते हैं।
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[box type=”shadow” ]नन्दाष्टमी को कोट की माई का मेला, माँ नन्दा भगवती मन्दिर पोथिंग, कपकोट में नन्दा देवी मेला, जिसे पोथिंग का मेला भी कहते हैं और नैतीताल में नन्दादेवी मेला, अपनी सम्पन्न लोक विरासत के कारण कुछ अलग ही छटा लिये होते हैं।
[highlight]धार्मिक नगरी अल्मोड़ा नगर के मध्य में स्थित ऐतिहासिक नन्दादेवी मंदिर में प्रतिवर्ष भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को लगने वाले मेले की रौनक ही कुछ अलग है।[/highlight]
इस वर्ष कोरोना वायरस संक्रमण के चलते पिछले चार दिनों से यह मेला सादगी के साथ मनाया जा रहा है। आज, बुधवार 26 अगस्त को नंदाष्टमी पर अल्मोड़ा नगर के मध्य स्थित माँ नंदा देवी के मंदिर में दिन भर श्रद्धालु के माँ के दर्शन करने के लिये पहुँच हैं। मास्क पहनकर एवं सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए श्रद्धालु माँ नंदा-सुनंदा के दर्शन कर, सुख-समृद्धि हेतु प्रार्थना कर रहे हैं। सुरक्षा व्यवस्था हेतु मंदिर के परिसर में पुलिस के जवान तैनात हैं जो लोगों की सुरक्षा के साथ साथ उनसे सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रखने एवं मास्क पहने रखने की अपील कर रहे हैं। मुख्या गेट पर मंदिर समिति ने लोग आ रहे श्रद्धालुओं की थर्मल स्क्रीनिंग और हाथों को सेनेटाइज कर मंदिर में भेज रहे हैं। आज नंदाष्टमी पर शाम ठीक 6 बजे राज परिवार की महिलाओं ने मंदिर में पूजा अर्चना की जाती है।[/box]
पंचमी तिथि से प्रारम्भ मेले के अवसर पर दो भव्य देवी प्रतिमायें बनायी जाती हैं। पंचमी की रात्रि से ही जागर भी प्रारंभ होती है। यह प्रतिमायें कदली स्तम्भ से निर्मित की जाती हैं। नन्दा की प्रतिमा का स्वरुप उत्तराखंड की सबसे ऊँची चोटी नन्दादेवी के सद्वश बनाया जाता है।
षष्ठी के दिन पुजारी गोधूली के समय चन्दन, अक्षत, पूजन का सामान तथा लाल एवं श्वेत वस्र लेकर केले के झुरमुटों के पास जाता है। धूप-दीप जलाकर पूजन के बाद अक्षत मुट्ठी में लेकर कदली स्तम्भ की और फेंके जाते हैं। जो स्तम्भ पहले हिलता है उससे नन्दा बनायी जाती है। जो दूसरा हिलता है उससे सुनन्दा तथा तीसरे से देवी शक्तियों के हाथ पैर बनाये जाते हैं। कुछ विद्धान मानते हैं कि युगल नन्दा प्रतिमायें नील सरस्वती एवं अनिरुद्ध सरस्वती की हैं। पूजन के अवसर पर नन्दा का आह्मवान ‘महिषासुर मर्दिनी’ के रूप में किया जाता है।
सप्तमी के दिन झुंड से स्तम्भों को काटकर लाया जाता है। इसी दिन कदली स्तम्भों की पहले चंदवंशीय कुँवर या उनके प्रतिनिधि पूजन करते है। उसके बाद मंदिर के अन्दर प्रतिमाओं का निर्माण होता है। प्रतिमा निर्माण मध्य रात्रि से पूर्व तक पूरा हो जाता है। मध्य रात्रि में इन प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा व तत्सम्बन्धी पूजा सम्पन्न होती है।
मुख्य मेला अष्टमी को प्रारंभ होता है। इस दिन ब्रह्ममुहूर्त से ही मांगलिक परिधानों में सजी संवरी महिलायें भगवती पूजन के लिए मंदिर में आना प्रारंभ कर देती हैं और माँ नंदा का डोला उठता है जिसमें दोनों देवी विग्रह रखे जाते हैं। नगर भ्रमण के समय पुराने महल ड्योढ़ी पोखर से भी महिलायें डोले का पूजन करती हैं। अन्त में नगर के समीप स्थित एक कुँड में देवी प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है।
माँ नन्दादेवी मेले के सुअवसर पर कुमाऊँ की लोक गाथाओं को लय देकर गाने वाले गायक जिन्हें ‘जगरिये’ कहा जाता है, मंदिर में आकर माँ नन्दा की गाथा का गायन करते हैं। मेला दौरान लोक गायकों और लोक नर्तको की अनगिनत टोलियाँ नन्दा देवी मंदिर प्राँगण और बाजार में आसन जमा लेती हैं। झोड़े, छपेली, छोलिया जैसे नृत्य हुड़के की थाप पर लोगों को मंत्रमुग्ध कर हैं।
कुमाऊँ की संस्कृति एवं श्रेष्ठ धार्मिक आस्था की झलक नन्दादेवी मेले के दौरान साफ झलकती है। इस मेले का एक मुख्य आकर्षण परम्परागत गायकी में प्रश्नोत्तर करने वाले गायक होते हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘बैरिये’ कहते हैं। मेले में विभिन्न प्रकार के स्टॉल्स भी लगते हैं।
पोथिंग में माँ नन्दा भगवती की पूजा का शुभारम्भ श्रावण महीने के 1 गते, हरेले के दिन से ही हो जाता है। इस दिन कपकोट के उत्तरौडा गाँव से भगवती, लाटू, गोलू देवताओं के डंगरियों और स्थानीय निवासियों के द्वारा ‘दूध केले’ (कदली वृक्ष) का पेड़ लाकर गाँव में ही निर्धारित स्थान पर रोपा जाता है। लगभग १ महीने तक इस कदली वृक्ष (केले के पेड़) को गाय के दूध द्वारा सींचा जाता है। भाद्रपद महीने की सप्तमी को इस कदली वृक्ष को काटकर इसके स्तम्भों से अष्टमी के दिन माँ की प्रतिमा बनाई जाती है।
भाद्रपद अष्टमी को पोथिंग में माँ नन्दा के दर्शनार्थ एक विशाल जनसमुदाय उमड़ पड़ता है। यहाँ माँ नन्दा भगवती की पूजा के समय जो पूड़ियाँ बनाई जाती हैं, वह हमेशा ही आकर्षण का केंद्र रहती हैं। एक पूड़ी का वजन लगभग 250 ग्राम से लेकर 300 ग्राम तक होता है। भक्तजन इस पूड़ी को ही प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं।
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