मिलिए दून की पहली महिला ई-रिक्शा चालक से, मेहनत के बूते तोड़ी रूढ़ियां
देहरादून: जहां चाह, वहां राह। ये बात दून के डालनवाला निवासी गुलिस्तां अंसारी ने साबित कर दिखाई है। गुलिस्तां का परिवार पिछले 30 सालों से किराये के मकान में रह रहा है। 25 वर्षीय गुलिस्तां ने सिर्फ पांचवी कक्षा तक की पढ़ाई की, लेकिन मेहनत करने में उन्होंने अच्छे-अच्छों को पछाड़ दिया। गुलिस्तां ने पुरुष प्रधान समाज के सभी दायरों और रूढ़ियों को तोड़ते हुए स्वरोजगार एवं नारी सशक्तीकरण के क्षेत्र में अभूतपूर्व कदम उठाया है। वह बेझिझक दून की सड़कों पर ई-रिक्शा चला रही हैं।
गुलिस्तां अपने परिवार की सबसे छोटी बेटी हैं, उनसे बड़ी पांच बहनों की शादी उनकी मां ने अपना घर बेच कर की है। गुलिस्तां का कहना है कि उन्होंने मेहनत करना अपनी मां से सीखा है। उनकी मां ने पिता के गुजर जाने के बाद मजदूरी करके सारे परिवार का भरण-पोषण किया और सभी बहनों की शादी भी। गुलिस्तां एक ऐसे समाज से ताल्लुक रखती हैं, जहां महिलाओं का परदे से बाहर आना भी गुनाह माना जाता है। लेकिन, वह बेखौफ होकर अपनी पसंद का काम कर रही हैं। गुलिस्तां समाज की बेबुनियाद और खोखली बंदिशों को नहीं मानती, उनका कहना है कि भूख से मरने से अच्छा है कि समाज के खोखले नियमों से लड़ा जाए।
गुलिस्तां ने जीवन के हर दौर में संघर्ष देखा है, उनका कहना है कि उन्हें कोई भी काम करने में शर्म नहीं है। अपना ई -रिक्शा लेने से पहले वह एक दवा कंपनी में काम करती थी, लेकिन वहां उन्हें उचित वेतन नहीं मिलता था। ऐसे में उन्होंने अपना खुद का व्यवसाय करने की सोची। वह स्कूटी चलाना जानती थी तो ई-रिक्शा का विकल्प दिखा। अपने मकान मालिक के सहयोग से उन्होंने बैंक से लोन लेकर रिक्शा लिया है।
वह अपने इस काम से बहुत खुश हैं और अपनी पुरानी नौकरी से दोगुना मुनाफा कमा रही हैं। उन्होंने सरकार से अपील की है कि गरीबों को रोजगार दिलाने के लिए सरकार कदम उठाए और जो लोग स्वरोजगार की दिशा में काम कर रहे हैं, उन्हें बैंक से मिलने वाले पैसे पर छूट दी जाए। वह कहती हैं कि महिलाओं को दब कर नहीं रहना चाहिए और आगे बढ़कर जिम्मेदारियां उठानी चाहिए। गुलिस्तां का कहना है कि महिलाएं यदि वह बेरोजगार हैं तो उनसे जुड़कर अपना रोजगार कर सकती हैं। अपने इसी जज्बे के कारण आज गुलिस्तां न केवल शहर, बल्कि समाज के लिए भी मिसाल हैं।