भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री में लंबी बातचीत,भारत की रणनीति से बौखलाया ड्रैगन
एलएसी पर तनाव के बीच गुरुवार को मॉस्को में भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच करीब ढाई घंटे बातचीत हुई। विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी मॉस्को में शंघाई सहयोग संगठन (सीएसओ) के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंचे थे। विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि बातचीत में जयशंकर ने भारत के इस मत को मजबूती से सामने रखा कि एलएसी पर अमन व शांति के बिना द्विपक्षीय संबंध मजबूत नहीं हो सकते।
मई के बाद पहली मुलाकात
मई, 2020 में चीनी सैनिकों के वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का अतिक्रमण किए जाने के बाद जयशंकर व वांग यी के बीच यह पहली मुलाकात थी। मॉस्को में हुई मुलाकात के बारे में देर रात तक दोनों पक्षों की तरफ से कोई बयान जारी नहीं किया गया। इससे यह संकेत मिलता है कि बातचीत का कोई सकारात्मक निष्कर्ष नहीं निकला। पिछले हफ्ते दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों की भी मॉस्को में इसी हालात में बातचीत हुई थी और उसके बारे में भी आधिकारिक तौर पर बहुत देर बाद सूचना दी गई थी।
एक-दूसरे के मतों का समर्थन
गुरुवार को द्विपक्षीय मुलाकात से पहले भी जयशंकर व वांग यी दो अन्य अवसरों पर एक-दूसरे के सामने आए। एक बार शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक में और दूसरी बार रूस-भारत-चीन (आरआइसी) के विदेश मंत्रियों की सालाना बैठक में। इन बैठकों में जयशंकर और वांग यी ने वैश्वीकरण, वैश्विक शांति, विज्ञान व तकनीकी विकास जैसे मुद्दे पर एक-दूसरे के मतों का समर्थन भी किया।
रूस ने निभाई बड़ी भूमिका
आरआइसी की बैठक के बाद संयुक्त बयान में वैश्विक शांति व सह-अस्तित्व के लिए साथ मिलकर काम करने और अंतरराष्ट्रीय मान्य कानूनों के पालन की बात कही गई। इस दौरान भारत और चीन को वार्ता की मेज पर लाने की रूस की भूमिका भी दिखी। इस बीच ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि जयशंकर व वांग की बैठक बेनतीजा रही तो मौजूदा तनाव के शांतिपूर्ण हल की उम्मीद भी खत्म हो जाएगी।
जारी रहेगी कमांडर स्तर की बातचीत
उधर, पूर्वी लद्दाख से खबर है कि गुरुवार को दोनों देशों के ब्रिगेड कमांडर एवं कमांडिग ऑफिसर स्तर की बातचीत का दौर जारी रहा। इस बातचीत के भी किसी खास नतीजे पर पहुंचने की सूचना नहीं है। हालांकि कमांडर स्तर की इस बातचीत को आगे भी जारी रखने की सहमित बनी है और अगली सैन्य वार्ता कोर कमांडर स्तर पर होने की संभावना है। चीनी सेना की तरफ से एलएसी पार करने की कोशिश के बाद से अभी तक दोनों सेनाओं के बीच छह दौर की लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की या कोर कमांडर स्तर की बातचीत हो चुकी है। लगातार बातचीत जारी रहने के बावजूद विवाद बढ़ता ही गया है।
पीछे हटने को तैयार नहीं चीन
चीन मई 2020 से पहले वाली स्थिति पर अपने सैनिकों को लौटाने को तैयार नहीं है। वहीं भारत का कहना है कि उसको इससे कम कुछ भी मंजूर नहीं है। सूत्रों ने कहा है कि भारत संवाद के हर स्तर को बनाए रखने में भरोसा करता है। अगर कोई शांति की राह निकलेगी तो यह बातचीत से ही निकलेगी। भारतीय सैनिकों ने चीनी सेना को घेरने की रणनीति जमीन पर उतारनी शुरू कर दी है।
भारतीय सेना को पीछे हटाने की फिराक में ड्रैगन
पिछले एक पखवाड़े में चीनी सेना की तरफ से बेहद आक्रामक रवैया दिखाने के पीछे एक वजह यह भी है कि पैंगोंग झील के दक्षिणी इलाके के कई महत्वपूर्ण ऊंचे इलाकों पर भारतीय सैनिकों ने डेरा डाल दिया है। अब वहां से चीनी सेना की गतिविधियों पर आसानी से नजर रखी जा रही है। चीनी सेना की तरफ से भारतीय सेना को पीछे करने की कोशिशें भी हो रही हैं। हालांकि उन्हें कोई सफलता हाथ नहीं लगी है।
एक ओर भारत का विरोध दूसरी ओर बातचीत
पिछले दो दिनों में चीन की सेना ने कोई आक्रामक रवैया नहीं दिखाया है। संभवत: जयशंकर और वांग यी के बीच होने वाली बातचीत के नतीजे की प्रतीक्षा की जा रही है। वार्ता के विभिन्न दौर के बीच चीन का प्रोपेगंडा वार भी तेज है। चीन का सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स गुरुवार को भी लगातार भारत विरोधी बयानों और आलेखों को अपनी वेबसाइट पर जारी करता रहा।
प्रोपेगंडा वार में भी जुटा है चीन
ग्लोबल टाइम्स के एक संपादक ने ट्वीट किया कि यदि सर्दियों तक भारतीय सेना एलएसी से पीछे नहीं हटती है तो उसे भीषण सर्दी में हार का सामना करना पडे़गा। कई भारतीय सैनिक भीषण सर्दी या कोविड-19 से मारे जाएंगे। एक आलेख में जयशंकर और वांग यी की वार्ता को मौजूदा हालात को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने की अंतिम कोशिश करार दिया गया है। यदि इसमें कोई नतीजा नहीं निकला तो यह दुनिया को एक खतरनाक संदेश होगा कि इस विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से नहीं सुलझाया जा सकता।