गौतमपुरा में सदियों पुरानी परंपरा ‘हिंगोट युद्ध’ में जमकर चले अग्निबाण
आकाश ज्ञान वाटिका। २८ अक्टूबर, २०१९, सोमवार। भैया-दूज की पूर्व संध्या पर गौतमपुरा में सदियों पुरानी परंपरा, हिंगोट युद्ध में एक बार फिर जमकर अग्निबाण चले। आसपास के अनेक जनपदों के साथ साथ, देश के कई स्थानों से आये दर्शकों की उपस्थिति में दोनों ही दल, ‘तुर्रा’ व ‘कलंगी’ ने जमकर एक-दूसरे के ऊपर हिंगोट से बने बम बरसाए।
इन्दौर से 55 कि.मी. दूर गौतमपुरा शहर में एक अनोखी परंपरा है, जहाँ दीपावली के एक दिन बाद एक पारंपरिक ‘युद्ध’ खेला जाता है। इस युद्ध को हिंगोट युद्ध कहते हैं। हिंगोट युद्ध काफी पुराना पारंपरिक खेल है। इस युद्ध में प्रयोग होने वाला हथियार ‘हिंगोट’ है जो हिंगोट फल के खोल में बारूद, भरकर बनाया जाता है। बारूद भरे जाने के बाद यह हिंगोट बम का रूप ले लेता है। उसके एक सिरे पर लकड़ी बांधी जाती है, जिससे वह रॉकेट की तरह आगे जा सके। एक तरफ आग लगाने पर हिंगोट राकेट की तरह घूमता हुआ दूसरे दल की ओर बढ़ता है, दोनों ओर से चलने वाले हिंगोट के चलते गौतमपुरा का भगवान देवनारायण के मंदिर का मैदान जलते हुए गोलों की बारिश के मैदान में बदल जाता है। इस उत्सव में दो गांव गौतमपुरा और रुणजी के दल हिस्सा लेते हैं। सूर्यास्त काल में मंदिर में दर्शन के बाद हिंगोट युद्ध की शुरुआत होती है। गौतमपुरा के योद्धाओं के दल को ‘तुर्रा’ नाम दिया जाता है, जबकि रुणजी गांव के दल को ‘कलंगी’ दल के तौर पर पहचाना जाता है। इस युद्ध में किसी दल की हार-जीत नहीं होती किन्तु सैकड़ों लोग गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं। किंवदंती है कि रियासतकाल में गौतमपुरा क्षेत्र की सीमाओं की रक्षा के लिए तैनात जवान दूसरे आक्रमणकारियों पर हिंगोट से हमले करते थे। स्थानीय लोगों के अनुसार, हिंगोट युद्ध एक किस्म के अभ्यास के रूप में शुरू हुआ था और उसके बाद धार्मिक मान्यताएं जुड़ती चली गईं।
हिंगोट एक कंटीली झाड़ियों में लगने वाला फल है जिसका आकर नीबू के बराबर होता है जो चम्बल नदी के आस पास के इलाकों में मिलता है। हिंगोट नारियल की तरह बाहर से सख्त ओर अंदर से गूदे वाला होता है ।
दीपावली के अगले दिन सुबह से ही आस-पास के गाँव से लेकर दूर-दूर से आये सैलानियों का जमावड़ा हिंगोट युद्ध के आस पास लग जाता है। जैसे ही शाम के 4 बजते है योद्धा अपने घरों से बाहर आते हैं और अपने दल के साथ ढोल-दमाकों से नाचते गाते युद्ध मैदान की ओर बढते है। युद्ध शुरू होने से पहले दोनों दल के योद्धा अति प्राचीन भगवान विष्णु के अवतार श्री देवनारायण का आशीर्वाद लेते हैं एवं युद्ध शुरू होने से पहले दोनों दल आपस में गले लगते है। योद्धा अपने हिंगोट सूती कपड़े से बने झोले में रखते हैं। योद्धा युद्ध के दौरान अपने हाथों में लोहे का मजबूत ढाल व सर पर साफा बांधते हैं।
हिंगोट युद्ध समाप्त होने के पश्चात दूसरे दल के किसी योद्धा को चोट लगने पर उसके घर जाकर गले लग कर आपसी भाईचारा बढ़ाते हैं । हिंगोट युद्ध के दौरान पुलिस प्रशासन एवं स्वस्थ विभाग की भूमिका अहम होती है।