उत्तराखंड परिवहन निगम के चालक रतन सिंह थापा ने पेश की ईमानदारी की मिसाल
आकाश ज्ञान वाटिका, देहरादून। २० जनवरी २०२०, सोमवार। जहाँ एक ओर आये दिन चोरी, लूट व ठगी की वारदातें घटित होती रहती हैं वही आज ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो समाज में ईमानदारी की मिसाल पेश करते हैं तथा समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं।
आज ऐसी ही ईमानदारी की एक मिसाल पेश की है, उत्तराखंड परिवहन निगम के चालक “रतन सिंह थापा” ने, जो आजकल देहरादून-मंसूरी मार्ग पर उत्तराखंड परिवहन निगम की बस संख्या UK 07 PA 3248 में बतौर चालक चलते हैं।
आज सोमवार, २० जनवरी को बस संख्या UK 07 PA 3248, को चालक “रतन सिंह थापा” चला रहे थे। बस देहरादून-मंसूरी मार्ग वाली थी लेकिन कल 19 जनवरी को श्रीनगर गई हुई थी। आज जब चालक “रतन सिंह थापा” बस को श्रीनगर से वापस देहरादून के लिए लेकर आ रहे थे तो लगभग दोपहर 1 : 30 बजे वह जॉलीग्रांट पहुंचे तो वहाँ हिमालयन हॉस्पिटल के बाहर रोड से बस में आकाश जोशी पुत्र श्री घनश्याम चन्द्र जोशी सवार हुए। आकाश जोशी वर्तमान में हिमालयन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज में एम.बी.बी.एस. द्वितीय वर्ष के छात्र हैं। आकाश हिम पैलेस होटल के सामने हरिद्वार रोड पर बस से उतरे और नेहरू कॉलोनी स्थित अपने आवास ए-192 में पहुँचे तो उनकी जेब में मोबाइल नहीं मिला और वह कही खो गया था। आकाश ने यह बात अपने पिता घनश्याम चन्द्र जोशी को बताई। इसके तुरन्त बाद नेहरू कॉलोनी थाने में इसकी गुमशुदगी दर्ज करा दी गई। साथ ही आकाश के उस खोये हुए मोबाइल नंबर पर फोन भी किया, दो बार घंटी जा रही थी परन्तु कोई उठा नहीं रहा था। कुछ देर बाद जब तीसरी बार फ़ोन किया तो फोन उठा लिया गया तथा रतन सिंह थापाजी द्वारा फोन उनके पास होने की बात कही गई। रतन सिंह थापा ने बताया कि मोबाइल उन्हें बस की सीट में पड़ा मिला तथा उन्होंने रख दिया। रतन सिंह थापा ने कहा कि फोन उनके पास है, वह अभी मंसूरी के लिए निकले हैं तथा शाम 7 बजे के बाद मसूरी बस स्टेशन, निकट रेलवे स्टेशन देहरादून पहुँचेंगे। उन्होंने शाम 7 : 30 बजे वहाँ मिलने को कहा। मैं तय समय पर वहाँ पहुँचा तो बस आ चुकी थी एवं चालक रतन सिंह थापा मेरा इंतजार कर रहे थे। मेरे पहुँचते ही वह काफी खुश हुए तथा मुझे फ़ोन सौप दिया। जब उनसे बात हुई तो वह कहने लगे कि जैसे ही उन्हें मोबाइल फोन मिला, वह तुरंत सम्पर्क कर, इसे देना चाहते थे लेकिन फोन में सिक्योरिटी लॉक लगे होने की वजह से वह संपर्क नहीं कर सकें तथा मेरे फ़ोन का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने बताया कि यह पाँचवाँ फोन है जो अब तक उन्हें बस में गिरे मिले और उन्होंने हर बार संपर्क कर मोबाइल्स को उनके मालिकों को सौपा हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वह जब भी किसी की खोई हुई चीज को उस तक पहुँचा देते हैं तो उन्हें काफी ख़ुशी होती है एवं मन में संतुष्टि होती है।
रतन सिंह थापाजी की ईमानदारी एवं उनके सौम्य व्यवहार हो देखकर मैं काफी खुश हुआ। मैंने उनका आभार प्रकट कर उन्हें बहुत बहुत धन्यवाद एवं शुभकामनायें दी। ऐसे व्यक्ति समाज के लिए एक मिसाल हैं, प्रेरणास्रोत हैं। ……..घनश्याम चन्द्र जोशी, सम्पादक