यहां गांधी स्तंभ पर आज भी मौजूद हैं बापू के हस्ताक्षर
ऋषिकेश: स्वतंत्रता आंदोलन में तीर्थनगरी ऋषिकेश की भी अग्रणी भूमिका रही है। इसके गवाह हैं त्रिवेणी घाट स्थित गांधी स्तंभ पर अंकित बापू के हस्ताक्षर। बापू ने अपनी अल्मोड़ा यात्र के दौरान ऋषिकेश से उन्हें मिलने आए क्रांतिकारियों को एक शिला पर यह हस्ताक्षर करके दिए थे। यह शिला गांधी स्तंभ के ऊपर लगाई गई, जो आज भी बापू की याद दिलाती है।
उत्तराखंड यात्रा के दौरान महात्मा गांधी जब अल्मोड़ा आए तो ऋषिकेश से क्रांतिकारी ब्रह्मचारी हरिजीवन, उड़िया बाबा, स्वामी सदानंद, स्वामी अद्वेतानंद आदि उनसे मिलने पहुंचे। इस दौरान उन्होंने बापू से ऋषिकेश आने का आग्रह किया। लेकिन, समयाभाव के कारण बापू ऐसा नहीं कर पाए और क्रांतिकारियों से वक्त मिलने पर ऋषिकेश आने का वादा किया। सो, क्रांतिकारी एक शिला पर बापू के हस्ताक्षर लेकर ऋषिकेश लौट आए। यही शिला त्रिवेणी घाट पर गांधी स्तंभ के ऊपर लगाई गई है।
आजादी के आंदोलन में इस स्तंभ के नीचे बैठकर क्रांतिकारी रामधुन गाया करते थे। उस दौर के बाल आंदोलनकारी रहे सूरज प्रकाश शर्मा के अनुसार यहीं से सुभाष चौक तक प्रभातफेरी निकाली जाती थी और फिर झंडाचौक में ध्वजारोहण होता था।आजादी के आंदोलन में ऋषिकेश का योगदान
– वर्ष 1929-30 में नमक सत्याग्रह में देहरादून क्षेत्र से जो 400 लोग जेल गए थे, उनमें 70 साधु-संन्यासी ऋषिकेश के थे। इनमें पंजाब से आए स्वामी केवलानंद, स्वामी सदानंद, ओडिशा से आए बाबा रामदास (उड़ियाबाबा), स्वामी आनंद गिरी, गुजरात से आए ब्रह्मचारी हरि जीवन आदि प्रमुख थे।-सरदार भगत सिंह की शहादत के बाद उनकी आत्म शांति के लिए भरत मंदिर से नीचे स्थित श्री केवलानंद आश्रम में श्रीमद् भागवत सप्ताह का आयोजन किया गया था। साथ ही मृत्योपरांत के संस्कार भी स्वतंत्रता सेनानियों ने यहीं संपन्न कराए थे।
-जलियांवाला बाग व रॉलेट एक्ट के विरोध में वर्ष 1919 और 17 नवंबर 1921 को भारत भूमि पर युवराज के आगमन के विरोध में यहां विचित्र हड़ताल हुई। किसानों ने हल लगाना छोड़ दिया। नगर और मुनिकीरेती के मध्य में स्थित खारा स्नोत नामक स्थान पर नमक सत्याग्रह के दौरान नमक बनाकर थैलियों में भरा जाता था।
-दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद महात्मा गांधी जब 1922 में देहरादून आए तो उन्हें जिले की ओर से तथा तिलक फंड में 16-16 हजार की राशि भेंट की गई। इसमें बड़ा हिस्सा ऋषिकेश के मठ-मंदिरों के संन्यासियों का था। नगर के अधिकांश स्वतंत्रता सेनानी 1930 के नमक सत्याग्रह, 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जेल गए।