अमेरिका जवाब देगा या अनदेखी करेगा ?
साभार : श्रुति व्यास
अमेरिका निशाने पर आने लगा है। उसकी थलसेना के सैनिकों पर हवाई हमला हुआ है। इजराइल-हमास लड़ाई के चौथे महीने में ऐसा लग रहा है कि अमेरिका भी लड़ाई में घसीट लिया जाएगा। गत 28 जनवरी को ईरान-समर्थित गुटों द्वारा ड्रोन और मिसाइलों से किये गए हमले में जॉर्डन में तीन अमरीकी सैनिक मारे गए और 34 घायल हुए।लड़ाई की शुरुआत से ही अमेरिका इन समूहों के निशाने पर था और अब तो मध्यपूर्व में इनके कम से कम 160 ठिकानों पर अमेरिका गोलीबारी कर चुका है। अ_ाईस जनवरी की घटना कोरियाई लड़ाई के बाद से अमेरिका की थलसेना पर पहला जानलेवा हवाई हमला है।
इन हमलों पर राष्ट्रपति जो बाइडन की प्रतिक्रिया अब तक सावधानीपूर्ण रही है। बावजूद इसके कि उन पर रिपब्लिकनों का जबरदस्त दवाब है, जो चाहते हैं कि ईरान के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाए। मगर बाइडन ने कभी ऐसा करने का वायदा नहीं किया। उन्होंने उन अधिकांश हमलों को नजऱअंदाज़ किया जिन्हें सफलतापूर्वक रास्ते में ही रोक लिया गया या जिनसे कुछ भी नुकसान नहीं हुआ या बहुत कम नुकसान हुआ। जो हमले ज्यादा गंभीर थे, उनके मामले में राष्ट्रपति ने सीमित जवाबी कार्यवाही की अनुमति दी। ऐसे कार्यवाहियों में लाल सागर में जहाजों पर हमले करने वाले यमन के हूतियों के खिलाफ कार्यवाही शामिल है। इनमें भी मुख्यत: इमारतों, हथियारों और अधोसंरचना को निशाना बनाया गया। बाइडन अब तक ईरान-समर्थित हूती समूह, जो यमन के बड़े इलाके पर राज करता है, पर नौ बार हमले करवा चुके हैं।बावजूद इसके लाल सागर में मची अफरातफरी ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही है।
मगर 28 जनवरी के हमले को वे नजऱअंदाज़ नहीं कर सकते। बाइडन ने साफ़ नहीं किया कि अब उनका इरादा क्या है मगर उसी अंदाज़ में जवाब देने की बात उन्होंने ज़रूर कही। एक बयान में उन्होंने कहा, “जिन तीन अमेरिकी सैनिकों को हमने खोया है, वे उच्चतम दर्जे के देशभक्त थे। हम उनके गौरव और उनकी वीरता की बराबरी करने की कोशिश करेंगे। हम आतंकवाद से लडऩे की उनकी प्रतिबद्धता को आगे ले जाएंगे। और इसमें कोई संदेह नहीं कि अपनी पसंद के तरीके से और अपने पसंद के समय पर, हम उन लोगों का हिसाब करेंगे जो इसके लिए जि़म्मेदार हैं।”
जॉर्डन में अमरीकी सैनिकों की मौत ने रिपब्लिकनों को बाइडन पर हमलावर होने का मौका दिया है। उनका कहना है कि चूँकि बाइडन ने पिछले तीन महीनों में जबरदस्त हमले की इज़ाज़त नहीं दी इसलिए ईरान और उसके पि_ू समूहों को लगने लगा कि वे कुछ भी कर सकते हैं। इस बीच, डोनाल्ड ट्रम्प, जो बाइडन को हराकर अपना पुराना काम वापस पाने के राह पर हैं, ने इतवार को मीडिया से कहा कि, “अगर मैं राष्ट्रपति होता तो यह हमला होता ही नहीं। बिलकुल नहीं।” हालाँकि तथ्य यह है कि ट्रम्प के राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल के दौरान भी ईरान और उससे जुड़े समूहों ने अमेरिका और उसके मित्र देशों पर हमले किये थे और एक मौके पर ट्रम्प ने बदले की कार्यवाही को रोक दिया था क्योंकि उन्हें लगा कि वह ज़रुरत से ज्यादा कड़ी थी। बाद में उन्होंने एक हमले का आदेश दिया था जिसमें एक शीर्ष ईरानी जनरल मारा गया था मगर जब इसके बाद ईरान ने मिसाइल हमले किये, जिनमें अमेरिकी सैनिक घायल हुए (हालाँकि उनमें से कोई मारा नहीं गया), तब ट्रम्प ने जवाबी कार्यवाही की अनुमति नहीं दी।
जो बाइडन दुविधा में हैं।लड़ाई तेज होता जा रहा है, कई इजराइली अब भी हमास के कब्ज़े में है और गाजा में हालात गंभीर होते जा रहे हैं। अमेरिकी मीडिया में आ रही ख़बरों से ऐसा लगता है कि जवाबी सैन्य कार्यवाही अपरिहार्य बन गयी है। मगर सवाल यह है कि जो बाइडन कहाँ तक जाना चाहेंगे, विशेषकर इसलिए क्योंकि जल्द ही उन्हें डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ चुनावी समर में कूदना है।अमेरिका ने ईरान की ज़मीन पर 1980 के बाद से अब तक कोई सैन्य कार्यवाही नहीं की है। और तब भी बंदियों को छुड़ाने का प्रयास असफल हो गया था। सन 1988 के बाद से अब तक, अमेरिका ने ईराक और सीरिया के अलावा कहीं भी ईरानी सेना पर हमले नहीं किये हैं। सन 1988 में उसने ईरानी नेवी पर हमला किया था। अगर ईरान के खिलाफ सीधा लड़ाई होता है तो उससे तेल की कीमतों में भारी इज़ाफा अवश्यम्भावी है, विशेषकर अगर फारस की खाड़ी से जहाजों की आवाजाही बंद हो जाती है या ईरान, सऊदी अरब के तेल प्रतिष्ठानों पर हमला करता है। ब्रेंट क्रूड आयल की कीमत पहले ही बढ़ रही है। एक बैरल की कीमत दिसंबर की शुरुआत में 73 डॉलर थी जो 26 जनवरी को 84 डॉलर तक पहुँच गयी थी। अगर यह और बढ़ती है तो उसका असर अमेरिका के पेट्रोल पंपों से बेचे जाने वाले ईंधन पर पड़ेगा और चुनावी साल में बाइडन बिलकुल नहीं चाहेंगे कि ऐसा हो।
जहाँ तक ईरान का सवाल है, वह चाहेगा कि मध्यपूर्व में लड़ाई का क्षेत्र और विस्तृत हो मगर अमेरिका से सीधे भिडऩे में वह परहेज ही करेंगे। उसे मालूम है कि इसके बहुत नुकसानदायक नतीजे हो सकते हैं। अभी कुछ समय पहले तक अमेरिकी अधिकारियों को लग रहा था कि ईरान शायद उसके द्वारा समर्थित समूहों पर लगाम लगाएगा। मगर जॉर्डन पर हमले से यह कयास गलत साबित हो गए हैं।
बाइडन दबाव में हैं। उनकी रेटिंग गिर रही हैं। हाल में हुए एक गैलप पोल से जाहिर हुआ है कि केवल 41 प्रतिशत अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में उनके निर्णयों को सही मानते है। इतनी कम रेटिंग इससे पहले केवल एक अन्य अमेरिकी राष्ट्रपति की थी। अ_ाईस जनवरी के हमले की बाद बाइडन को निश्चित ही बड़ा हमला करना होगा। और यह हमला तब होगा जब अमेरिका इजराइल-हमास लड़ाई में अस्थाई विराम लाने के लिए मध्यस्थता करने का इच्छुक है। उसे यह उम्मीद भी थी कि बंधकों की रिहाई के मसले में वह कोई समझौता करा सकेगा जिससे या तो लड़ाई ख़त्म हो जायेगा या उसकी तीव्रता इतनी घट जाएगी कि उससे दूसरे स्थानों में तनाव नहीं बढेगा। बाइडन चाहते थे कि वे शांति के माहौल में चुनाव लड़ सकें। मगर शायद इसका उल्टा होने जा रहा है।