रोगों को बुलावा देती है – कुपोषण की समस्या
समुचित आहार से दूर होगी शिशुओं की यह समस्या
बच्चे के सुपोषण का विशेष महत्व है। ऐसा इसलिए क्योंकि यही अवस्था कालांतर में व्यक्ति के स्वास्थ्य की बुनियाद बनती है। कुपोषण की समस्या कई रोगों को बुलावा देती है। समुचित आहार देने से शिशुओं, बच्चों और किशोरों में कुपोषण की समस्या को दूर किया जा सकता है।
वैसे तो सुपोषण का हर आयु वर्ग में अपना महत्व है, लेकिन मां के गर्भ में आने लेकर शिशु की पांचवीं वर्षगांठ (2000 दिन)तक शिशुओं को जो पोषण दिया जाता है, उसी से उनके जीवन भर के स्वास्थ्य की बुनियाद तैयार होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार शैशवास्था शिशुओं के विकास का सर्वाधित महत्वपूर्ण काल है, जिसका दीर्घकालिक स्थायी प्रभाव कालांतर में व्यक्ति के स्वास्थ्य पर ताउम्र पड़ता है।
सेहत की बुनियाद
यूनिसेफ के अनुसार जिन शिशुओं का शुरुआती 1000 दिनों(जन्म के दो साल की उम्र तक) के दौरान अच्छी तरह सुपोषण किया जाता है तो इस स्थिति मेंद्यऐसे बच्चे बाल्यावस्था में जीवन को संकट में डालने वाली बीमारियों से 10 गुना ज्यादा बचे रहते हैं। खासकर उन बच्चों की तुलना में जिन्हें अच्छी तरह पोषण नहीं मिलता।
1. स्कूल में भी सुपोषित बच्चों का शैक्षिक प्रदर्शन कुपोषित बच्चों की तुलना में कहीं ज्यादा अच्छा रहता है।
2. वयस्क होने पर ऐसे बच्चे कुपोषित बच्चों की तुलना में स्वस्थ रहने के कारण 21 प्रतिशत से अधिक कमाई करने में सफल रहते हैं।
3. सुपोषित बच्चे वयस्क होने पर स्वस्थ परिवारों की बुनियाद रखने में सफल रहते हैं।
जीवनशैली से संबंधित रोगों से बचाव
अभी तक हेल्थ एक्सपर्ट्स सिर्फ यही बात कहा करते थे कि सिर्फ वयस्क होने पर अस्वास्थ्यकर या गलत जीवनशैली के कारण ही लोगों में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं जैसे मोटापा, डायबिटीज, हदय रोग, कैंसर और मानसिक स्वास्थ्य संबंधित परेशानियां पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है। बहरहाल अब हेल्थ एक्सपर्ट्स इस बात को भी मानने लगे हैं कि गलत जीवनशैली से जुड़ी समस्याओं का बुनियादी कारण मां के गर्भ में रहने के दौरान और उसके बाद शैशवावस्था में पोषण से भी संबंधित हो सकता है।
असल में कुपोषण ऐसी समस्या है, जिसका दुष्चक्र एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जारी रह सकता है। जैसे कुपोषित लड़की कालांतर में वयस्क होकर कुपोषित महिला के रूप में कुपोषित शिशु को ही जन्म देगी।
शिशु के पोषण से संबंधित शुरुआती 2000 दिनों को तीन महत्वपूर्ण अवस्थाओं-गर्भावस्था, शैशवावस्था और शुरुआती बाल्यावस्था के रूप में शामिल किया जाता है।