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भारत और अमेरिका के संबंध पटरी से उतर रहे

डॉ. दिलीप चौबे
भारत और अमेरिका के संबंध क्या पटरी से उतर रहे हैं? अंतरराष्ट्रीय हलकों में आजकल यह चर्चा का विषय बना हुआ है। दोनों देशों के बीच संबंध इतने व्यापक हैं कि इस तरह की आशंका अतिरंजित लगती है। अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की संख्या तथा वहां के जन-जीवन में इस समुदाय के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि संबंधों में खास गिरावट आएगी। लेकिन इतना जरूर है कि अमेरिका के तेवर बदल रहे हैं। पश्चिमी देशों की मीडिया और वहां के थिंक टैंक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार की प्रखर नीतियों को लेकर शुरू से ही आलोचना करते रहे हैं। उनकी ओर से बाइडन प्रशासन को यह नसीहत दी जाती है कि भारत एक उदारवादी और लोकतांत्रिक शासन प्रणाली पर खरा नहीं उतर रहा है।

इसलिए वह अमेरिका का विश्वसनीय सहयोगी नहीं बन सकता। यूक्रेन युद्ध के बावजूद भारत ने पश्चिमी देशों के दबावों के बावजूद रूस के साथ अपने संबंधों में कोई कमी नहीं की। संबंध पहले जैसे ही मजबूत बने हुए हैं। इस बीच बाइडन प्रशासन ने चीन के साथ अपने संबंधों में तनाव कम करने के लिए कई पहल की हैं। लगता है कि अमेरिकी प्रशासन पहले रूस से निपटने की तैयारी में है। फिलहाल वह एशिया में चीन के खिलाफ दूसरा मोर्चा खोलने के पक्ष में नहीं है। इस नई नीति के कारण अमेरिका को अब भारत के समर्थन की दरकार नहीं है। यही कारण है कि क्वाड की गतिविधियां शिथिल पड़ गई हैं। इसके विपरीत एशिया के अन्य देशों जापान, दक्षिण कोरिया, फिलिपींस और ऑस्ट्रेलिया के साथ अपना सहयोग बढ़ा रहा है।

भारत के लिए चिंता का विषय अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों में आ रही गर्मजोशी है। राष्ट्रपति बाइडन ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को पत्र लिखकर द्विपक्षीय संबंधों को फिर से सक्रिय बनाने की मंशा जाहिर की है। उसके बाद विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भी पाकिस्तान के विदेश मंत्री से टेलीफोन पर बात की। पिछले दिनों ईरान के सिस्तान में आतंकवादी हमला हुआ जिसके लिए पाकिस्तान में पनाह लिये आतंकवादियों को दोषी माना गया। पहले भी ईरान में इसी तरह के हमले हुए थे, जिसके बाद उसने पाकिस्तान में आतंकवादी अड्डों को निशाना बनाया था। नए हमले में ईरान के चाबहार इलाके को भी निशाना बनाया गया।

चाबहार में बंदरगाह प्लेटफार्म के रूप में भारत की रणनीतिक संपदा है। भारत, रूस और ईरान इस गलियारे और चाबहार बंदरगाह पर किसी तरह के खतरे को बर्दाश्त नहीं कर सकते। संभव है कि आने वाले दिनों में ये देश कोई सुरक्षा रणनीति तय करें।  पाकिस्तान ने अमेरिका और पश्चिमी देशों की सहानुभूति और समर्थन हासिल करने के लिए ब्रिटेन के अखबार ‘गार्जियन’ की रिपोर्ट का सहारा लिया है। इस अखबार में अपनी कथित खोजबीन के आधार पर आरोप लगाया है कि भारत ने पाकिस्तान की सरजमीं पर कम-से-कम 20 लोगों की हत्या की है। अखबार इन्हें आतंकवादी नहीं पाकिस्तान का नागरिक मानता है। इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के बयान को भी पाकिस्तान ने बहुत तूल दी है।

रक्षा मंत्री ने आतंकवादियों को ‘घर में घुसकर’ मारने की बात कही थी। उनका इशारा उरी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एअरस्ट्राइक की ओर था। लेकिन पाकिस्तान ने इसे अमेरिका और कनाडा में हुई घटनाओं से जोडऩे की कोशिश की। पश्चिमी देश अमेरिका और कनाडा के खालिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ भारत की कार्रवाइयों को लेकर नई दिल्ली को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करते रहे हैं। खालिस्तानी आतंकवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू को बचाने के लिए अमेरिका ने द्विपक्षीय संबंधों को दांव पर लगा दिया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस विवाद को सीमित रखने की हरसंभव कोशिश की है लेकिन कहना मुश्किल है कि अमेरिका भविष्य में अपने तेवर में बदलाव करेगा। पश्चिमी देशों की मीडिया को ध्यान में रखना चाहिए कि भारत में इन दिनों चुनाव का मौसम है। चुनाव प्रचार में विदेश और रक्षा नीति भी प्रमुख मुद्दा हैं। सत्ता और विपक्ष के नेता अपनी चुनावी सभाओं में जो भाषण देते हैं, कोई जरूरी नहीं कि वह सरकार की नीति हो। इनके भाषणों के आधार पर राय कायम करना नासमझी होगा।

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Ghanshyam Chandra Joshi

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