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सम्पादकीय

नाइजर है फ्रांस की किरकिरी

श्रुति व्यास

नाइजर का सैनिक नेता जिद पर अड़ा हुआ है। वहां की सैनिक सरकार इकोवास (इकनोमिक कम्युनिटी ऑफ़ वेस्ट अफ्रीकन स्टेट्स) से लडऩे के लिए तैयार है। इकोवास द्वारा वहां के अपदस्थ राष्ट्रपति को दुबारा सत्ता सौंपने के लिए तय की गयी आखिरी तारीख़ – 6 अगस्त – निकल चुकी है। इसके अलावा 7 अगस्त को अमेरिका के राजदूत को भी अपदस्थ राष्ट्रपति से मिलने और उनसे चर्चा करने की इजाजत नहीं दी गई। पिछले महीने के तख्तापलट के बाद लोकतंत्र की वापसी के सभी आव्हानों को ठुकरा दिया गया।

पश्चिमी अप्रीका के पड़ौसी देशों के जमावड़े इकोवास ने 6 अगस्त तक बजौम को दुबारा सत्ता न सौंपे जाने पर बलप्रयोग की धमकी दी थी। धीरे-धीरे अंतिम तिथि नजदीक आती गई लेकिन तख्तापलट का नेतृत्व करने वालों ने सत्ता से हटने का संकेत नहीं दिया। इसकी बजाए उन्होंने एक स्टेडियम में अपने समर्थकों को एकत्रित किया, जो उनकी जयजयकार कर रहे थे। उन्होंने देश के पूर्व औपनिवेशिक शासक फ्रांस के झंडे के रंग से रंगे गए एक मुर्गे का सर कलम किया। अंतिम तिथि निकलने के बाद सैन्य सत्ताधारियों ने नाइजर की वायु सीमा को पूरी तरह से बंद कर दिया। उन्होंने कहा एक ‘विदेशी शक्ति’ देश पर हमले की तैयारी कर रही है। उन्होंने कहा कि ‘‘नाइजर  की सशस्त्र सेनाएं देश की अखंडता की रक्षा करने के लिए तैयार हैं”।तख्तापलट के नेताओं ने नाइजर के युवाओं से आव्हान किया कि वे इस कठिन समय में देश की सेवा के लिए तैयार रहें।

राजधानी के अब्दोऊ मौमौनी विश्वविद्यालय के छात्रों ने इसकी प्रतिक्रिया में कहा कि वे इस आव्हान के अनुसार कार्य करेंगें। नाइजर  के आक्रामक रूख के मद्देनजर इकोवास ने 10 अगस्त को एक असाधारण बैठक बुलाई है। नाइजर  में हुए तख्तपलट से एकदम साफ हो गया है कि लोगों ने फ्रांस के बोलबाले को उतने ही जोश से खारिज किया है जितने जोश से उनके पूर्वजों ने फ्रेंच साम्राज्य को किया था। इस तरह फ्रांस का लंबे समय से चला आ रहा दबदबा कम हो रहा है। विकास सहायता के रूप में हर साल दो अरब डालर तक मिलने के बावजूद नाइजर दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक बना हुआ है, जहां साक्षरता दर केवल 34 प्रतिशत है। यूरोपियन यूनियन नाइजर के लिए 2024 में समाप्त होने वाली तीन वर्ष की अवधि के लिए 50 करोड़ 30 लाख यूरो देने वाला था।

इतनी मदद के बावजूद नाइजर में अब फ्रांस को युवा वर्ग में बेरोजग़ारी जैसी बड़ी समस्याओं के लिए दोषी ठहराया जाता है। सन 2020 में माली और बुर्किनो फासो – जो फ्रांस की दासता से सन् 1960 में मुक्त हुए थे – में 2021 और 2022 (दो बार) तख्तापलट हुआ था। अब नाइजर ताजा देश है। इन सभी देशों में फ्रांस, बल्कि पूरे पश्चिम, के विरूद्ध नाराजगी लगातार बढ़ती रही, जबकि विरोधी ताकतों जिनमें रूस, तुर्की और चीन शामिल हैं, हालात का फायदा उठाने के मौके तलाशते रहे। बुर्किनो फासो और माली के सैन्य नेतृत्व ने पहले ही चेतावनी दे दी है कि सैन्य हस्तक्षेप के जरिए बजौम को दुबारा सत्ता में लाने का प्रयास जंग का ऐलान माना जाएगा। भाड़े के सैनिकों का रूसी समूह वेगनर नाइजर के पड़ोसी देशों में सक्रिय है और उसने नाइजर के विद्रोहियों को मदद की पेशकश की है।

नाइजर  में आगे क्या होगा और नए सत्ताधारी जनरल अब्दुररहमाने चियानी क्या करने वाले हैं यह अस्पष्ट और अनिश्चित है। फ्रांस को आंखे दिखाते हुए और उपनिवेशवादी मानसिकता से उबरते हुए नाइजर में भ्रष्टाचार, मानवाधिकार हनन और अफरा-तफरी का माहौल रहेगा जिसमें जिहादियों और आतंकवाद को पनपने का मौका मिलेगा।

इस तरह यह इलाका युद्ध के मुहाने पर खड़ा है। इकोवास पिछले दरवाजे से कोई समझौता करवाने का प्रयास कर रहा है। लेकिन इस बात की संभावना बहुत कम है कि सैन्य नेतृत्व झुकेगा और सत्ता दुबारा बजौम के हाथ में सौंपेगा। अगर युद्ध हुआ तो वह घातक होगा जिसमें कईयों की भूमिका होगी – नाइजर की सत्ताधारी सेना, जिहादी, पश्चिमी देश, चीन और रूस और इसमें बड़ी संख्या में जानें जायेंगी।

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Ghanshyam Chandra Joshi

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