कंडाली/सिन्न या सिसौण – बहुपयोगी औषधीय झाड़ है
आकाश ज्ञान वाटिका (13 नवंबर 2019) । कंडाली, Nettle या बिच्छू घास के नाम से जानी जाने वाली वनस्पति है जो नेपाल व हिमालय क्षेत्र की मध्य पहाड़ी क्षेत्र में मिलने वाले अट्रिक्यसी परिवार का एक तेज जलन पैदा करने वाला झाड़ है। बिच्छू धास को कुमाऊनी भाषा में “सिन्न या सिसौण” कहा जाता है तथा गढ़वाली भाषा में इसे “कंडाली” कहा जाता है। यह सिर्फ पहाड़ी इलाकों में ही उगता है। इसमें औषधीय गुण होता है। इसे उबाल कर खाया जा सकता है। इसमें रोम जैसे पतले कांटे पाए जाते हैं जिनमें फोरमिक एसिड पाए जाता है। फर्मिक अम्ल की वजह से इसमें जलन पैदा करने वाला हिस्टामाइन होता है जिससे सूजन हो जाता है और पीड़ादायक होता है। लेकिन इसे पानी में उबालने के बाद इन तत्वों का नाश हो जाता है। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में बिच्छू घास का कापा सर्दियों बनाया जाता है।
इसमें औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसमें मिलने वाले विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन डी, लौह तत्व, पोटासियम, मैगानिज, कैल्सियम जैसे पौष्टिक पदार्थ के कारण इसकी करी व सब्जी बनाई जाती है। इसमें २५% सम्म् प्रोटीन होता है इसलिए यह शाकाहारियों की लिए अति उत्तम भोजन है। यह अति मूल्यवान ‘गउडा चीज’ और यार्ग में स्वाद के लिए प्रयोग किया जाता है।
- यह पित्त दोष की बीमारी की बीमारी को दूर करने के लिए रामबाण है।
- शरीर के किसी हिस्से में मोच आने पर कंडाली की पत्तियों से अर्क बनाकर मोच वाली जगह पर लगाने से जल्दी आराम मिलता है।
- शरीर में जकड़न महसूस होने पर इसका साग बनाकर खाने से जकड़न दूर होती है।
- मलेरिया के इलाज में बिच्छू घास की सब्जी खाने से जल्दी आराम मिलता है। इसका साग मलेरिया के मरीज के लिए एंटीबायोटिक और एंटी-ऑक्सीडेंट के रूप में कार्य है।
- इसके बीजों का सेवन करने से पेट साफ रहता है।
उत्तराखण्ड में कंडाली के तने से रेशा निकाल कर जैकेट, शॉल, स्टॉल, स्कॉर्फ एवं बैग तैयार किए जा रहे हैं। चमोली व उत्तरकाशी जिले में कई समूह बिच्छू घास के तने से रेशा (फाइबर) निकाल कर विभिन्न प्रकार के उत्पाद बना रहे हैं। तने को सूखाने के बाद मशीन में प्रोसेसिंग की जाती है। इसके बाद धागा बनता है। 4 से 5 किलो बिच्छू घास से एक किलो धागा निकलता है। बिच्छू घास से तैयार रेशा पराबैंगनी किरणों से बचाता है। इसके रेशे से बनी जैकेट को गर्मी व सर्दी दोनों ही मौसम में पहना जा सकता है।