महाराष्ट्र के सियासी संग्राम में सबसे बड़ा नुकसान बीजेपी को – अजित पवार के साथ हाथ मिलाकर अपनी छवि को किया धूमिल
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- राजनीति में सत्ता के लोभ में धुर विरोधी को भी गले लगाना पड़े तो इसमें कुछ आश्चर्य की बात नहीं।
- महाराष्ट्र के असल किंगमेकर की भूमिका में एनसीपी प्रमुख शरद पवार।
- महाराष्ट्र की सत्ता का रिमोट कंट्रोल एनसीपी प्रमुख शरद पवार के पास।
- शिवसेना ने अपनी कट्टर हिंदुत्ववादी छवि को किया धूमिल।
- कांग्रेस ने अपनी किया सेकुलर विचारधारा से समझौता।
आकाश ज्ञान वाटिका। 27 नवम्बर 2019, बुधवार। ‘राजनीति में किस पाय क्या हो जाए, कोई नहीं जान सकता है’, इस कथन को सच कर दिखाया है महाराष्ट्र की राजनीति के पल-पल बदलते घटनाक्रम ने। जैसे ही मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने देवेंद्र फडणवीस से बुधवार को विधानसभा में बहुमत साबित करने का फैसला सुनाया इसके कुछ देर बाद ही शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने उप मुख्यमन्त्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
अजित पवार के इस्तीफ़े के बाद मंगलवार दोपहर को देवेंद्र फडणवीस भी मीडिया के सामने मुखर हुए और मुख्यमंत्री पद से अपने इस्तीफ़े का ऐलान कर दिया। देवेन्द्र फडणवीस ने कहा कि अजित पवार के इस्तीफ़े के बाद हमारे पास बहुमत साबित करने के लिए ज़रूरी विधायक नहीं हैं।”
महाराष्ट्र के सियासी संग्राम में सबसे बड़ा नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ा। प्रदेश में सबसे ज्यादा 105 सीटें जीतने के बाद भी भाजपा सत्ता से बाहर रही तथा एनडीए के सबसे पुराने साथी, शिवसेना का साथ भी खोना पड़ा। इतना ही नहीं बीजेपी (देवेंद्र फडणवीस) ने अजित पवार के साथ हाथ मिलाकर अपनी छवि को भी धूमिल किया। यह भी सिद्ध हो गया है कि राजनीति में सत्ता के लोभ में धुर विरोधी को भी गले लगाना पड़े तो इसमें कुछ आश्चर्य की बात नहीं है।
मंगलवार, २७ नवंबर की शाम को उद्धव ठाकरे को शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के विधायक दल का नेता चुना गया। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे 28 नवंबर की शाम को साढ़े छह बजे शिवाजी पार्क में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। बीजेपी विधायक कालिदास कोलंबकर प्रोटेम स्पीकर बनाए गए हैं।
महाराष्ट्र के असल किंगमेकर की भूमिका में एनसीपी प्रमुख शरद पवार हैं। अपने भतीजे अजित पवार की बगावत के बाद भी शरद पवार एनसीपी को टूटने से बचाए रखने में सफल रहे। महाराष्ट्र की सत्ता भले ही शिवसेना को मिली हो, लेकिन इसका सूत्रधार शरद पवार को माना जा रहा है। इसलिए यह भी निश्चित है कि महाराष्ट्र की सत्ता का रिमोट कंट्रोल एनसीपी प्रमुख शरद पवार के पास ही रहेगा।
शिवसेना को पांच साल के लिए सीएम पद देने पर एनसीपी और कांग्रेस ने सहमति दे दी है। लेकिन शिवसेना ने अपने 30 साल पुराने साथी, बीजेपी का साथ खो दिया है एवं केंद्र सरकार में अपने कोटे का मंत्री पद भी खो दिया है। इसके अतिरिक्त शिवसेना ने कांग्रेस-एनसीपी के साथ हाथ मिलकर अपनी कट्टर हिंदुत्ववादी छवि को भी धूमिल किया है।
कांग्रेस ने शिवसेना के साथ जाकर महाराष्ट्र की सत्ता में हिस्सेदारी प्राप्त की एवं डिप्टी सीएम सहित तेरह मंत्री पद भी मिले हैं लेकिन इसके लिए उसे अपनी सेकुलर विचारधारा से समझौता अवश्य करना पड़ा है। इससे साफ जाहिर होता है कि सत्ता की चाहत में यदि राजनीतिक पार्टियाँ अपनी विचार धारा से भटक जायें तो कोई नई बात नहीं है।