कुमाऊँ में होली की धूम चरम पर
आकाश ज्ञान वाटिका। सोमवार, 17 फ़रवरी, 2020, हल्द्वानी। कुमाऊँ की होली दुनिया भर में प्रसिद्ध है ,जो अपनी सांस्कृतिक विशेषता के लिए पूरे देश में जानी जाती है। कुमाऊँनी होली प्रदेश के साथ ही प्रवासी लोग हर जगह बड़े धूमधाम से मनाते हैं. जिसकी झलक महानगरों में भी देखने को मिल जाती है।
हल्द्वानी में आयोजित महिला होली में महिलाओं ने स्वांग के जरिए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, स्वच्छता भारत अभियान और शराब को लेकर संदेश दिए। कई जगहों पर महिलाओं ने नेताओं का स्वांग कर समाज में बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर भी चोट की। दूसरी तरफ होली के परंपरागत गीत जैसे “होली खेले अवध में रघुवीरा”, “शिवजी ढूंढ रहे हैं पर्वत पर अपनी गौरा जी के संग”, “जल कैसे भरूं जमुना गहरी”, “मेरो रंगीलो देवर घर ऐ रो छौ” के अलावा बृज की होली मस्ती से महिलाएं झूमती नजर आईं।
संस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए हल्द्वानी में जगह-जगह बैठकी होली का आयोजन किया जा रहा है। होली में अभी 20 दिनों से अधिक का समय बचा है, लेकिन कुमाऊं में होली अपने चरम पर है। हर तरफ होली की माहौल है। जगह-जगह महिलाओं की टोलियां खड़ी और बैठकी होली के साथ-साथ स्वांग के जरिए लोगों को संदेश भी दे रही हैं। होली की परंपरागत परिधान में अबीर, गुलाल लगाए महिलाओं का देखते ही बनता है। साथ ही नई पीढ़ी को उनकी उत्तराखंड की संस्कृति से जोड़ने का प्रयास किया जाता है। होलियारों महिलाओं का कहना है कि होली रंगों का त्योहार है। इस त्योहार को हर किसी को मनाना चाहिए और हर राग द्वेष को भूलकर प्रेम से होली का आनंद लेना चाहिए।
होली हमें अपनी संस्कृति और परंपरा से जोड़े रखती है। आने वाले पीढ़ी को भी अपनी संस्कृति के बारे में सीखने का मौका मिलता है। यही एक कोशिश है कि पारंपरिक तरीके से होली मनाने के तरीकों को अपनाया जाए, जिससे अपनी संस्कृति को जिंदा रखा जा सके। गौर हो कि भले ही प्रवासी लोग अपने क्षेत्र से बाहर रहते हो, लेकिन होली का पर्व वे अपने तौर-तरीके से ही मनाते हैं। जिसका आगाज होते ही वे मस्ती में झूमते दिखाई देते हैं। वर्षों से चली आ रही पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और चंपावत की खड़ी और बैठकी होली खासा आकर्षण का केन्द्र रहती हैं। रात में श्रृंगार और वीर रस से संबंधित होलियों का गायन होता है।
कुमाऊँ में होली में रात को कभी आलू तो कभी सूजी होल्यारों को परोसी जाती है। इसमें लोग सामूहिक रूप से रंग-बिरंगे कपड़ों की चीर बांध परिवार की खुशहाली की कामना करते हैं। पौष मास के पहले रविवार से बैठकी होली की शुरू होती है। जिसमें इसमें पुरुष एक दूसरे के आंगन में बैठकी होली का गायन करते हैं। जिसमें रंगों से नहीं रागों से मनाई जाती है, जो परंपरा अतीत से चली आ रही है। होलियारे समूहों में लोकगीतों में पारंपरिक नृत्य करते हैं। वहीं महिलाएं बसंत पंचमी के दिन से शुरू होने वाली बैठकी होली में भाग लेती हैं। बता दें कि बैठकी होली बसंत पंचमी के दिन से शुरू हो जाती है, और इस में होली पर आधारित गीत घर की बैठक में राग- रागनियों के साथ हारमोनियम और तबले पर गाए जाते हैं. इन गीतों में मीराबाई से लेकर नजीर और बहादुर शाह जफर की रचनाएं सुनने को मिलती हैं।