अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है रोशनी का त्यौंहार “दीपावली”
दीपक (दीये) मिट्टी के ही जलायें
पर्यावरण के अनुकूल (ईको-फ्रेंडली) दीपावली मनायें
- पर्वों पर हम एक – दूसरे को शुभ संदेश भेजते हैं जो एकता के प्रतीक स्वरूप होते हैं।
- दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है।
- दीपावली पर्वों का समूह है।
- असतो मा सद्गमय । तमसो मा ज्योतिर्गमय । मृत्योर्मा अमृतंगमय ।
- दीपावली पर्व पर हम सभी शहीदों की याद में एक दीया अवश्य जलायें।
आकाश ज्ञान वाटिका। भारतवर्ष को त्यौंहारों का देश भी कहा पाता है। यहाँ पर वर्ष भर, विभिन्न समुदायों द्वारा अनेकों त्यौंहार मनाये जाते हैं। इन त्योंहारों में से कुछ त्यौंहारों को सभी समुदायों द्वारा एकजुट होकर मनाया जाता है, ये किसी समुदाय विशेष से सम्बन्धित न होकर राष्ट्र से सम्बन्धित होते हैं, इसीलिए इन्हें राष्ट्रीय त्यौंहार कहा जाता है। त्यौंहार, जहाँ एक ओर व्यक्तियों को आपस में एकता की पवित्र डोर से बाॅधे रखते हैं वहीं सम्पूर्ण समाज के प्रति सद्भाव व भाईचारा कायम रखते हैं। समय – समय पर आने वाले ये पर्व हमारे मन व मस्तिष्क को स्वच्छ व पवित्र बनानेे के साथ – साथ उसमें प्रेम व श्रद्धा का बीजारोपण कर आपसी भाईचारे को अंकुरित करते हैं। इन पर्वों पर हम एक – दूसरे को शुभ संदेश भेजते हैं जो एकता के प्रतीक स्वरूप होते हैं।
दीपावली या दीवाली अर्थात “रोशनी का त्यौंहार” शरद ऋतु में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिंदू त्यौंहार है। यह त्यौंहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है।
भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।
मान्यता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा कर सजाते हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं।
पर्वों का समूह है दीपावली: दीपावली पर्वों का समूह है। दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग नए-नए वस्त्र सिलवाते हैं। दीपावली त्यौंहार के दौरान अलग-अलग प्रकार के पूजन किये जाते हैं, इसीलिए इसे पर्वों का समूह कहा जाता हैं।
- धनतेरस : दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है। इस दिन बाज़ारों में चारों तरफ़ जनसमूह उमड़ पड़ता है। बरतनों की दुकानों पर विशेष साज-सज्जा व भीड़ दिखाई देती है। धनतेरस के दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है अतैव प्रत्येक परिवार अपनी-अपनी आवश्यकता अनुसार कुछ न कुछ खरीदारी करता है। इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है।
- नरक चतुर्दशी (छोटी दीपावली) : धनतेरस के अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली होती है। इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं।
- दीपावली(महालक्ष्मी पूजन): नरक चतुर्दशी के अगले दिन दीपावली आती है। इस दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। बाज़ारों में खील-बताशे, मिठाइयाँ, खांड़ के खिलौने, लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियाँ बिकने लगती हैं। स्थान-स्थान पर आतिशबाजी और पटाखों की दूकानें सजी होती हैं। सुबह से ही लोग रिश्तेदारों, मित्रों, सगे-संबंधियों के घर मिठाइयाँ व उपहार बाँटने लगते हैं। दीपावली की शाम लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक व मोमबत्तियाँ जलाकर रखते हैं। चारों ओर चमकते दीपक अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं। रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों से बाज़ार व गलियाँ जगमगा उठते हैं। बच्चे तरह-तरह के पटाखों व आतिशबाज़ियों का आनंद लेते हैं।
- गोवर्धन पूजा : दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर उठाकर इंद्र के कोप से डूबते ब्रजवासियों को बनाया था। इसी दिन लोग अपने गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं।
- भैया दूज : गोवर्धन पूजा अगले दिन भाई दूज का पर्व होता है। भाई दूज या भैया द्वीज को यम द्वितीय भी कहते हैं। इस दिन बहिन अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगा कर उसके मंगल की कामना करती है और भाई भी प्रत्युत्तर में उसे भेंट देता है।
[highlight]त्यौंहारों का स्वरूप चाहे जिस तरह का हो, मनाने के तौर – तरीके कैसे भी हों लेकिन मकसद सबका एक ही है, एकता, अखण्डता, सद्भाव, आपसी भाईचारा व मन की पवित्रता।[/highlight]
असतो मा सद्गमय । तमसो मा ज्योतिर्गमय । मृत्योर्मा अमृतंगमय ।
हम असत्य से सत्य की ओर चलें । अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का पुरुषार्थ करें । मृत्यु से अमरता की ओर चलें । असत्य से ऊपर उठकर अपने सत्य, साक्षी स्वरूप में आयें । मरने के बाद भी जो रहता है उस अमृतस्वरूप में आयें ।
एक दीप शहीदों के नाम : प्रत्येक देशवाशी के लिए देश सर्वोपरि है। देश की रक्षा के लिए अपना सर्वश्व न्यौछार करने के लिए तत्पर हमारे वीर सैनिक हमारी आन-बान व शान हैं। सरहद की रक्षा करते करते जिन वीर सैनिकों ने अपने शरीर की आहुति दे दी उनशहीदों की याद में हम सब एक दीया अवश्य जलायें। इन देश के सच्चे सपूतों ने ही हमें खुशहाली, सृमद्धि और चैन-सुकून से जीने की आजादी दी है। हमें शहीदों और उनके परिवारों का दिल से सम्मान करना चाहिए। अतः अपने हर तीज-त्यौहारों पर हमें शहीदों व उनके परिजनों को सम्मान स्वरूप अवश्य याद करना चाहिए। दीपावली पर्व पर हम सभी शहीदों की याद में एक दीया अवश्य जलायें।
रोशनी के इस पावन पर्व दीपावली सुअवसर पर समस्त देशवासियों को हार्दिक शुभकामनायें। सपरिवार आपके जीवन में अनंत खुशियाँ आयें, आपकी हर मनोकामना पूर्ण हो, धन और शौहरत का भण्डार निरन्तर बढ़ाता जायें, इसी कामना के साथ……….
“शुभ दीपावली”
…………… घनश्याम चन्द्र जोशी, सम्पादक, आकाश ज्ञान वाटिका (न्यूज़-पोर्टल)