अनुपम व पवित्र संस्कृति तथा कलाओं के भण्डार हैं हमारे गाँव
आकाश ज्ञान वाटिका। शुक्रवार, ४ अक्टूबर।
उत्तराखण्ड के गाॅवों की अपनी एक अनुपम व पवित्र संस्कृति है। पहाड़ की खुशनुमा वादियों में जब एक शिशु जन्म लेता है तब से शुरू हो जाता है संस्कारों का सिलसिला। घर, परिवार, पड़ोस, गाॅव फिर इलाका सब झूम उठते हैं, एक किलकारी में। फूल बरसा एक माॅ के आँचल में, जिस पर पूरा इलाका ही खुशबू से महक उठा। मन्द सुगन्ध, शीतल पवन अपने संग वहाॅ ले गयी खुशियों की एक लहर, जिससे महका हर घर, आँगन , बिन पूछे जाति-पाति व धर्म। खुशियों के इस पल में फिर लगने लगी बधाइयों की होड़, जिसने स्थापित किया अपनत्व का वह श्रेष्ठ स्तम्भ। प्रत्येक घर की खुशी के लिये लालायित व मनोकामना करता है पूरा पहाड़/इलाका। कोई किसी की तनिक भी पीड़ा नहीं देख सकता था। किसी को कष्ट देना तो हमारी संस्कृति को कभी मंजूर ही नहीं रहा। बड़े-बुजुर्गों को देख स्वतः ही झुक जाती है थी बेटे, बहु-बेटियाॅ व बच्चों की निगाहें, जो दर्शाती है बड़ों के प्रति छोटों का अटूट सम्मान, बदले में मिलता है छोटों को बड़ों से अटूट प्रेम-स्नेह।
गॅवों में आज भी तीज-त्यौहार बड़े ही श्रद्धाभाव से मनाये जाते हैं। चाहे दिवाली हो या होली, हरेला या संक्रांति, लोग एक-दूसरे को मिठाईयाॅ देते हैं, तथा आशीर्वाद प्रदान करते हैं, जिससे अपनत्व की भावना स्वतः ही पैदा होने लगती है। कोई भी पर्व दिखावा मात्र नहीं मनाया जाता है। गाॅव के लोग, हर पर्व को पूरे रीति-रिवाज से मनाते हैं। चाहे जो भी कार्य हो, गाॅव के लोग हमेशा अपनी संस्कृति व कलाओं का ध्यान रखते हैं। यदि रिश्ते-नातों की वास्तविकता कहीं दिखती है तो निष्चित रूप से गाॅवों के लोगों के बीच दिखती है।
गाॅवों में आज भी संयुक्त परिवार देखने को मिलते हैं। यद्यपि संयुक्त परिवार शहरों में भी होते हैं परन्तु इनकी संख्या गाॅवों की अपेक्षा काफी कम होती है। गाॅवों में संयुक्त परिवारों का जो सामाजिक व सांस्कृतिक महत्व होता है वह शहरों में नहीं होता है। गाॅवों के सदस्यों के बीच सम्बन्ध इतने घनिष्ठ होते हैं कि बड़े से बड़ा कार्य वे आपस में मिलकर कर लेते हैं। गाॅवों में अपराधिक घटनायें शहरों की तुलना में बहुत कम होती हैं। यहाॅ लोग भगवान के नाम से डरते हैं तथा धार्मिक नियमों के अनुरूप समस्त कार्य करते हैं। जाति-धर्म के बन्धन से मुक्त होकर लोग, उम्र का लिहाज कर एक उचित रिश्ते के अनुसार आपस में व्यवहार करते हैं। धन-दौलत के अभाव के बीच जो जिन्दगी एक ग्रामीण बिताता है, शायद ही वैसी जिन्दगी एक विकसित शहर में मिल पाये। भौतिकवादी इस युग में यदि सुकून है तो वह केवल गाॅवों में है। भारत में गाॅवों का एक महत्वपूर्ण स्थान है।
भारत की अधिकांश जनसंख्या इन्हीं गाॅवों में निवास करती है। भारत एक कृषि प्रधान देश है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के जीवन यापन का मुख्य साधन ही कृषि है। अन्त में हम कह सकते हैं कि देश की अर्थ व्यवस्था व सामाजिक संतुलन में गाॅवों की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है। जो शुद्ध व शान्त वातावरण गाॅवों में मिलता है वह कभी भी शहरों में नहीं मिल सकता। आज हमें गाॅवों को विकसित करने की जरूरत है। ग्रामीणों का जीवन स्तर विकसित करने के लिये नीति बनाई जाय। हमें यदि भविष्य में सुखी जीवन यापन करना है तो गाॅवों को बचाना अति आवश्यक है।
भला कौन भुला सकता है उन खूबसूरत व मनमोहक नजारों को, जब गाँवों में शादी-ब्याह, तीज-त्यौहारों के मौकों पर सारे लोग मिलकर पंगत (पंक्तिबद्ध) में बैठकर बड़े – बड़े ताँबे के बर्तनों में बने शुद्ध व पवित्र भोजन का मजा लेते हैं। पहाड़ के लोगों का पहनावा तो अपने आप में अनूठा है, मनमोहक है।
हमें अपनी संस्कृति, कलाओं व रीति-रिवाजों का हमेशा सम्मान करना चाहिए।
जय हिन्द । जय उत्तराखण्ड ।