इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, गांवों में चिकित्सा सुविधा राम भरोसे, तीन माह के भीतर हर किसी को लग जाए वैक्सीन
आकाश ज्ञान वाटिका, 18 मई 2021, मंगलवार, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के गांवों और कस्बे में कोरोना संक्रमण फैलने और चिकित्सा सुविधाओं की कमी को लेकर चिंता जाहिर की है। कोर्ट ने कहा है कि जिस तरह से चिकित्सा व्यवस्था है, उसमें कहा जा सकता है कि लोगों का स्वास्थ्य भगवान भरोसे है। कोर्ट ने कहा है कि यदि संक्रमण का पता लगाकर इलाज करने में हम विफल रहे तो हम तीसरी लहर को निश्चित ही आमंत्रण दे रहे हैं।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजित कुमार ने सोमवार को जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि गांवों कस्बों में बहुत, कम टेस्टिंग हो रही है। टेस्टिंग बढ़ाई जाए और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करायी जाए। हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार के स्वास्थ्य सचिव से कहा है कि वे नौकरशाही के बजाय विशेषज्ञों से इस संबंध में व्यापक रिपोर्ट तैयार कर दाखिल करें।
- इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वैक्सीनेशन पर कहा कि तीन माह के भीतर हर किसी को वैक्सीन लग जाए और ग्रामीण व कस्बा क्षेत्र में चिकित्सा सुविधाओं को बेहतर किया जाए। वैक्सीनेशन के मुद्दे पर कहा कि राज्य सरकार ने वैक्सीन का ग्लोबल टेंडर जारी किया है। यह भी सुझाव दिया कि जो आयकर दाता हैं, वे स्वयं वैक्सीन खरीदें और दूसरों की मदद करें। केंद्र सरकार निर्माताओं को ग्रीन सिग्नल दे, ताकि मेडिकल कंपनियां वैक्सीन का उत्पादन शुरू कर सकें। कोर्ट ने कहा कि यह समझ से परे है कि राज्य सरकार वैक्सीन क्यों नहीं बना रही है। बड़े उद्योग घरानों,धार्मिक संस्थानों से भी कोर्ट ने मदद करने की अपील की है।
- हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि 20 बेड वाले सभी नर्सिंग होम और अस्पतालों के 40 फीसद बेड आइसीयू रखे जाए। इनमें 25 फीसद वेंटिलेटर युक्त हों और 25 फीसद हाईफ्लो नोजल कैनुडा और 50 फीसद रिजर्व रिजर्व रखे जाएं। साथ ही प्रदेश सरकार सभी 30 बेड वाले नर्सिंग होम व अस्पतालों मे ऑक्सीजन प्लांट अनिवार्य करें। एसजीपीजीआइ लखनऊ, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी मेडिकल कॉलेज, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ की तर्ज पर प्रयागराज, आगरा, मेरठ, कानपुर और गोरखपुर में भी उच्चीकृत सुविधाओं वाले मेडिकल कॉलेज स्थापित किए जाएं। यह प्रक्रिया चार माह में सरकार पूरी करे। इसके लिए जमीन और फंड की कोई कमी न रहने पाए। इन पांच मेडिकल कॉलेजों को स्वायत्तता भी दी जाए।
- हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि गांव और कस्बों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में पैथोलॉजी लैब और इलाज की सुविधाएं बढ़ाई जाएं। हर गांव के लिए दो आइसीयू सुविधा युक्त एंबुलेंस भी मुहैया कराई जाए ताकि गंभीर मरीज को शहर के बड़े अस्पताल में लाया जा सके। कोर्ट ने कहा कि बी और सी ग्रेड के कस्बों में 20 एंबुलेंस और हर गांव में दो एंबुलेंस आइसीयू सुविधायुक्त एक माह में उपलब्ध कराई जाए और रिपोर्ट दें। कोर्ट ने कहा है कि बिजनौर बहराइच बाराबंकी श्रावस्ती जौनपुर मैनपुरी मऊ अलीगढ़ एटा इटावा फिरोजाबाद व देवरिया के जिला जज नोडल अधिकारी नियुक्त करें और सभी नोडल अधिकारी अपनी रिपोर्ट पेश करें। अदालत ने मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य को सेंट्रलाइज मॉनिटरिंग सिस्टम में कोविड व आइसीयू वार्डों का 22 मई को ब्यौरा पेश करने का निर्देश दिया है।
- हाई कोर्ट में राज्य व केंद्र सरकार ने अनुपालन रिपोर्ट दाखिल की है। सरकार ने बताया कि तीन सदस्य पेंडेमिक लोक शिकायत कमेटी का गठन कर दिया गया है। इस पर कोर्ट ने कहा कि कमेटी संबंधित जिले के नोडल अधिकारियों से चर्चा कर 24 से 48 घंटे के भीतर शिकायतों का निराकरण करें। कमेटी होम आइसोलेशन, प्राइवेट अस्पतालों, नर्सिंग होम में आक्सीजन आपूर्ति की निगरानी करें।
- हाई कोर्ट ने शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में जीवन रक्षक दवाओं की कमी को दूर करने का निर्देश दिया है। बिजनौर जिले की आबादी और वहां के अस्पतालों की स्थिति का उदाहरण लेते हुए कहा है कि जो भी सुविधा है वह नाकाफी है। 32 लाख की आबादी पर 10 हॉस्पिटल है ।लोगों को चिकित्सा सुविधा बमुश्किल मिल पा रही है। अभी तक सरकार ने 1200 सौ टेस्ट प्रतिदिन किए हैं जो बहुत ही कम है। 32 लाख की आबादी पर कम से कम चार या पांच हजार टेस्ट प्रतिदिन होना चाहिए।
- मेरठ मेडिकल कॉलेज से 64 वर्षीय संतोष कुमार के लापता होने के मामले में दाखिल की गई रिपोर्ट में बताया गया कि मरीज को भर्ती किया गया था, लेकिन उसकी पहचान नहीं हो सकी थी। वह बाथरूम में गए और वहां बेहोश हो गए। वहां से उन्हें स्ट्रेचर पर लाया गया। काफी प्रयास के बावजूद भी उनको बचाया नहीं जा सका और लावारिश शव का दाह संस्कार कर दिया गया। इसे कोर्ट ने घोर लापरवाही माना है। सरकार ने बताया कि दोषी पैरामेडिकल स्टाफ और डॉक्टर एक साल का इंक्रीमेंट रोक दिया गया है। कोर्ट ने अपर मुख्य सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य को इस संबंध में कड़ी कार्रवाई का निर्देश देते हुए हलफनामा मांगा है। कहा है कि जवाबदेही तय की जाए और कड़ी कार्रवाई की जाए। मुख्य सचिव से भी इस बात का हलफनामा मांगा है और पूछा है कि आश्रितों को सरकार कैसे मुआवजा देगी। अगली सुनवाई 22 मई को होगी।