Breaking News :
>>तमन्ना भाटिया के प्रशंसकों को मिला तोहफा, ‘ओडेला 2’ का नया पोस्टर जारी>>प्रधानमंत्री मोदी ने ‘रोजगार मेला’ के तहत 71,000 युवाओं को सौंपे नियुक्ति पत्र>>सर्दियों में भूलकर भी बंद न करें फ्रिज, वरना हो सकता है भारी नुकसान, ऐसे करें इस्तेमाल>>कुवैत ने पीएम मोदी को अपने सबसे बड़े सम्मान ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ से किया सम्मानित >>मुख्यमंत्री धामी ने 188.07 करोड़ की 74 योजनाओं का किया लोकर्पण और शिलान्यास>>अब सब विपक्षी दल वापस एकजुट होने लगे>>निकाय चुनाव- पर्यवेक्षकों की टीम आज पार्टी नेतृत्व को सौंपेंगे नामों के पैनल>>हमारी टीम घर-घर जाकर संजीवनी योजना और महिला सम्मान योजना के लिए करेगी पंजीकरण- अरविंद केजरीवाल>>चोटिल हुए भारतीय टीम के कप्तान, 26 दिसंबर से शुरु होने वाले चौथे सीरीज के मुकाबले पर छाया संकट >>साल 2047 में भारत को विकसित बनाने में भारतीय कामगारों की रहेगी अहम भूमिका- प्रधानमंत्री मोदी >>कॉकटेल के सीक्वल पर लगी मुहर, शाहिद कपूर के साथ कृति सेनन और रश्मिका मंदाना मचाएंगी धमाल>>ट्रिपल जश्न के लिए तैयार हुई पहाड़ों की रानी, यातायात व्यवस्था को लेकर पुलिस-प्रशासन ने तैयारियों को दिया अंतिम रुप >>सर्दियों में आइसक्रीम खाना सही है या नहीं? जानिए डाइटिशियन की राय>>बाबा साहेब के अपमान पर कांग्रेस ने किया उपवास, भाजपा को कोसा>>महाकुंभ में उत्तराखंड का होगा अपना पवेलियन, प्रयागराज मेला प्राधिकरण ने की निःशुल्क भूमि आवंटित>>वन नेशन, वन इलेक्शन से विकास की नई ऊंचाइयों को हासिल करेगा देश>>मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल देहरादून ने सर्दियों में बढ़ते हार्ट अटैक के प्रति किया जागरुक>>बेरोजगार आंदोलन को फंडिंग करने वालों पर मुख्यमंत्री सख्त, होगी जांच>>अरविंद केजरीवाल ने ‘डॉ. आंबेडकर सम्मान स्कॉलरशिप’ योजना का किया एलान, दलित समाज के बच्चों का सपना होगा साकार>>दून की समीक्षा ने विज्ञान प्रतिभा खोज प्रतियोगिता में लहराया परचम
Articles

कांग्रेस को बर्बाद करने की बकायदा कॉन्ट्रैक्ट

साभार : मनु श्रीवत्स
आकाश ज्ञान वाटिका, शनिवार, 21 सितम्बर 2024, देहरादून। कांग्रेस जिस अंदाज से चुनाव मैदान में उतरी है उसे देखते हुए तो यही माना जा सकता है कि बहुत ही ‘खूबसूरती’ के साथ उसके साथ एक ऐसा ‘खेला’ हो चुका है कि अब कोई बड़ा ‘चमत्कार’ ही उसे चुनाव परिणामों में सम्मानजनक स्थान दिला सकता है।  जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस ने एक नही कईं सारे ‘सेल्फ गोल’ एक साथ कर लिए हैं। कोई माने या न माने चुनाव में पार्टी बुरी तरह से पिछड़ती नजऱ आ रही है।

जिस अनमने ढंग से कांग्रेस जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव लड़ रही है उसे देखते हुए ऐसा लगता है मानों किसी ने जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस को बर्बाद करने की बकायदा ‘सुपारी’ ले रखी हो ? कांग्रेस जिस अंदाज से चुनाव मैदान में उतरी है उसे देखते हुए तो यही माना जा सकता है कि बहुत ही ‘खूबसूरती’ के साथ उसके साथ एक ऐसा ‘खेला’ हो चुका है कि अब कोई बड़ा ‘चमत्कार’ ही उसे चुनाव परिणामों में सम्मानजनक स्थान दिला सकता है।  कांग्रेस के साथ किस किसने ‘खेल’ खेला, यह तो समय के साथ साफ होता चला जाएगा लेकिन भीतरघात के कुछ संकेत तो अभी से ही दिखाई दे रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस ने एक नही कईं सारे ‘सेल्फ गोल’ एक साथ कर लिए हैं।

कोई माने या न माने चुनाव में पार्टी बुरी तरह से पिछड़ती नजऱ आ रही है।
दस वर्षों बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। मगर कांग्रेस की चुनावी तैयारियों को देखकर लगता है जैसे उसे हल्का सा भी आभास नहीं था कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं। जिस दिन निर्वाचन आयोग ने चुनाव घोषित किए ठीक उसी दिन कांग्रेस ने अपना प्रदेश अध्यक्ष बदलकर अपनी ‘तैयारियों’ का पहला प्रमाण दे दिया था। पार्टी ने वकार रसूल वानी की जगह तारीक हमीद कर्रा को नया अध्यक्ष बना दिया। वानी को अगस्त-2022 में उस समय प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया था जब गुलाम नबी आज़ाद के साथ बड़ी संख्या में लोग पार्टी छोड़ रहे थे। वानी को आज़ाद का खास आदमी माना जाता था मगर वानी ने उस संकट के समय पार्टी नही छोड़ी और आज़ाद के कारण टूट रही पार्टी को संभालने का पूरा प्रयास किया।

लेकिन विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अचानक वानी को बदलने का फैसला लेकर कांग्रेस ने उनकी दो साल की कोशिशों पर तो पानी फेरा ही, साथ ही साथ यह संदेश भी दे दिया कि पार्टी के लिए वफादार बने रहने का कोई मतलब नही है।  कांग्रेस ने नया अध्यक्ष बनाया भी तो ऐसे व्यक्ति को बनाया जो कभी भी खुद को एक कांग्रेसी के रूप में ढाल ही नही सका है। गौरतलब है कि नवनियुक्त अध्यक्ष तारीक हमीद कर्रा पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) छोडक़र कांग्रेस में आए थे। लेकिन कांग्रेस में आने के बाद भी बहुत अधिक सक्रिय कभी भी नही रहे हैं।

किसी मुद्दे पर बोलते भी कर्रा कभी नजऱ नही आए हैं। सोशल मीडिया पर भी उनकी उपस्थिति बहुत कम रही है। सच्चाई यह है कि कर्रा को प्रदेश की राजनीति में कोई बहुत बड़ा नाम नही माना जाता है। कर्रा को एकाएक अध्यक्ष बनाए जाने से कांग्रेस को कोई बहुत बड़ा राजनीतिक लाभ मिलने वाला तो कतई नही था। फिर भी उन्हें अध्यक्ष बनाया जाना हैरान करने वाला फैसला था।

पूरी प्रदेश कांग्रेस, विशेषकर जम्मू संभाग की इकाई के लिए कर्रा बिलकुल नए हैं। उनका पार्टी नेताओं तक से संपर्क भी बहुत कम रहा है। अध्यक्ष बनने के बाद अभी तक सिर्फ दो बार कर्रा जम्मू आ सके हैं। किसी भी जिले का अभी तक कर्रा दौरा तक नही कर सके हैं। कर्रा खुद भी चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में क्या वे अध्यक्ष के रूप में मिली जि़म्मेदारी से न्याय कर सकते हैं ?

दिलचस्प तथ्य यह है कि प्रदेश कांग्रेस कार्यसमिति का लगभग हर बड़ा नेता चुनाव लड़ रहा है। कर्रा के अतिरिक्त दोनों कार्यकारी अध्यक्ष भी अपना-अपना चुनाव लडऩे में व्यस्त हैं। जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस ने गलतियों पर गलतियां की हैं। एक और बड़ी गलती कांग्रेस ने नए प्रदेश अध्यक्ष के साथ दो कार्यकारी अध्यक्ष बना कर कर दी। रमण भल्ला पहले से ही कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर काम कर रहे थे मगर उनके साथ तारा चंद को भी कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया। दोनों एक ही जि़ले से संबंध रखते हैं।

ताराचंद अगस्त 2022 में पार्टी छोडक़र गुलाम नबी आज़ाद के साथ चले गए थे। बाद में दिसंबर 2022 में उन्होंने पार्टी में वापसी कर ली। सवाल उठता है कि पार्टी छोड़ देने वाले व्यक्ति को आखिर क्या सोच कर कांग्रेस ने कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। उन्हें इनाम दिया गया या कोई अन्य बड़ी ‘मजबूरी’ थी। प्रदेश में 2009 से 2015 तक रही कांग्रेस-नेशनल कांफ्रेंस सरकार में ताराचंद उप-मुख्यमंत्री थे। उस दौरान उन पर कई बार कई गंभीर आरोप लगे, जिनका जवाब देने में कांग्रेस को बहुत मुश्किल हुआ करती थी। लेकिन बावजूद इस सबके ताराचंद को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया जाना कांग्रेस की अस्पष्ट नीतियों का एक बड़ा प्रमाण है। कांग्रेस का कहना है कि ताराचंद को अनुसूचित जातियों का नेता होने के नाते कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। मगर यहां भी सवाल उठता है कि अगर ऐसा करना था तो फिर मूलाराम को क्यों नही कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया? मूलाराम वरिष्ठ भी हैं और पार्टी के प्रति लगातार वफ़ादार भी रहे हैं।

यही नही कांग्रेस ने गुलाम नबी आज़ाद के साथ जाने वाले नेताओं के लिए भी दोहरी नीति अपनाई। जो नेता दिसंबर 2022 में आज़ाद को छोडक़र वापस कांग्रेस में लौट आए थे उन्हें कांग्रेस ने खुशी-खुशी गले लगा लिया। ताराचंद भी उनमें से एक थे और किसी समय आज़ाद के सबसे करीबी नेता माने जाते थे। ताराचंद सहित जो लोग दिसंबर 2022 में वापस आए थे उनमें से कईं को इस बार कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार भी बनाया है।

लेकिन गुलाम नबी आज़ाद के साथ पार्टी छोड़ कर जाने वाले जो नेता विधानसभा चुनाव के समय वापसी करना चाहते थे मगर उनके लिए दरवाज़े बंद कर दिए गए।

इन नेताओं में गुलाम मोहम्मद सरूरी, मजीद वानी और जुगल किशोर शर्मा प्रमुख हैं। सरूरी इंद्रवाल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ते रहे हैं और लगातार जीतते रहे हैं। लेकिन कांग्रेस ने उन्हें यह कह कर टिकट नहीं दी कि वे आज़ाद के साथ चले गए गए थे। सरूरी अब स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं।

इंद्रवाल की तरह ही कांग्रेस ने कटड़ा-माता वैष्णोदेवी से भी टिकट देने में सिर्फ जुगल किशोर को इसलिए मना कर दिया क्योंकि जुगल किशोर शर्मा भी गुलाम नबी आज़ाद के साथ चले गए थे।

जुगल किशोर शर्मा 2002 से 2008 तक रही कांग्रेस-पीडीपी सरकार में केबिनेट मंत्री रह चुके हैं। कटड़ा-वैष्णोदेवी सीट से जुगल किशोर शर्मा एक सशक्त उम्मीदवार साबित हो सकते थे। मगर कांग्रेस ने अंतिम समय पर उन्हें अपना उम्मीदवार बनाने से मना कर दिया। यही नही कांग्रेस ने कटड़ा-वैष्णोदेवी सीट से राजपूत प्रत्याशी मैदान में उतारा है जबकि यह एक ब्राह्मण बहुलता वाला इलाका है। जुगल किशोर शर्मा बगल की रियासी सीट से भी टिकट के इच्छुक थे मगर यहां से भी कांग्रेस नही मानी और उन्हें टिकट नही दी।

उल्लेखनीय है कि कटड़ा-वैष्णोदेवी परिसीमन में नई सीट बनाई गई है। पहले यह क्षेत्र रियासी विधानसभा क्षेत्र का ही एक हिस्सा था।
कांग्रेस ने जुगल किशोर शर्मा को मना करते समय एक और गलती यह कर दी कि रियासी जैसी हिन्दू बहुल सीट पर एक मुस्लिम प्रत्याशी को उतार दिया। यह फैसला भी कई कारणों से घातक ही साबित होने वाला है। ध्रुवीकरण का लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिलना तय है
जिस ढंग से कांग्रेस में सीटों का बंटवारा हुआ है उससे साफ तौर पर आशंका है कि 2014 की पुनरावृत्ति हो सकती है। अगर ऐसा होता है तो निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए यह स्थिति बेहद असहज हो सकती है।

उल्लेखनीय है कि 2014 में कांग्रेस ने कुल 12 सीटों पर जीत हासिल  की थी। लेकिन इन 12 विधायकों में एक भी हिन्दू नहीं था। तमाम हिन्दू बहुल सीटों पर कांग्रेस को ज़बरदस्त हार का सामना करना पड़ा था।

दरअसल कांग्रेस की समस्या यह है कि पार्टी जबरदस्त असमंजसता का शिकार है। ऐसा प्रतीत होता है कि उसे मालूम ही नही है कि उसे करना क्या है। वर्तमान राजनीति में अगर उसे मजबूती के साथ मैदान में टिके रहना है तो कांग्रेस को मौजूदा समय की राजनीति के नियम मानने पड़ेंगे। उन्हीं नियमों के अनुसार ही राजनीति करनी भी होगी।

लेकिन अगर कांग्रेस को नैतिकतावादी और आदर्शवादी दिखते हुए राजनीति करनी है तो उसे अपने कार्यकर्ताओं को भी समझाना होगा कि सत्ता प्राप्ति उसका लक्ष्य नही है और वह राजनीति में मात्र शुचिता के लिए संघर्षरत है। मगर व्यवहारिक राजनीति में क्या ऐसा संभव है? क्या कार्यकर्ता ऐसी बौधिक बातें स्वीकार कर सकते हैं? कांग्रेस को भूलना नही चाहिए कि एस्ट्रो टर्फ के ज़माने में घास पर हॉकी नहीं खेली जा सकती।

नेशनल कांफ्रेंस के साथ गठबंधन का भी बहुत अधिक फायदा होता दिखाई नही दे रहा है। गठबंधन की वजह से कांग्रेस को नुक्सान ही उठाना पड़ रहा है, विशेषकर जम्मू संभाग में तो कांग्रेस की नेशनल कांफ्रेस के साथ चुनाव पूर्व की दोस्ती भारी पड़ रही है। दरअसल यह गठबंधन बहुत ही अजीब तरह का गठबंधन साबित हो रहा है। गठबंधन का नक्शा ऐसा बना है जिससे पता चलता है कि कांग्रेस ने पर्याप्त ‘होम वर्क’ किए बिना नेशनल कांफ्रेंस से हाथ मिला लिया। कांग्रेस ने बड़ा दिल दिखाते हुए बेशक अपनी तरफ से तालमेल तो किया है, मगर नेशनल कांफ्रेंस ने उसके साथ दरियादिली नही दिखाई है।

कुछ सीटों पर ‘दोस्ताना’ मुकाबला है जबकि कुछ ऐसी सीटें कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस के लिए छोड़ दी हैं जिन पर आसानी से कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन कर सकती थी।  बनिहाल विधानसभा सीट का मामला बेहद दिलचस्प है। यहां से कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष वकार रसूल वानी चुनाव लड़ रहे हैं। यह सीट कांग्रेस जीत सकने की पूरी-पूरी स्थिति में है मगर नेशनल कांफ्रेंस ने कांग्रेस की इस मज़बूत सीट पर अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया है और उमर अब्दुल्ला खुद यहां प्रचार करने पहुंच रहे हैं। यही नही उमर  वकार रसूल वानी पर तीखे हमले कर रहे हैं। ज़मीनी हालात तो यही बताते हैं कि कम से कम बनिहाल का मामला तो ‘दोस्ताना’ नही है।

इसी तरह से जम्मू नगर की जम्मू उत्तरी सीट को भी जिस तरह से कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस के लिए छोड़ दिया है उससे भी राजनीतिक पंडि़त हैरान हैं।  जम्मू नगर के बगल की सीट नगरोटा का मामला तो और भी अनोखा है। यहां कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस ने अपने-अपने प्रत्याशी उतारे हैं और दोनों के ‘दोस्ताने’ का सीधा-सीधा लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिल रहा है।

इस सीट पर जिस तरह कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस ने बेहद कमजोर प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं उससे भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार देवेंद्र सिंह राणा का रास्ता बेहद आसान बना दिया गया है। राणा केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह के भाई हैं और प्रदेश के ताकतवर नेताओं में गिने जाते हैं। बड़ा सवाल बनता है कि आखिर कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस ने नगरोटा सीट पर मजबूत प्रत्याशी क्यों नही उतारे? दोनों को इस सीट पर अलग-अलग उम्मीदवार उतारने की क्या मजबूरी थी ? यहां पर ‘दोस्ताने’ की आड़ में किसको फायदा पहुंचाने की कोशिश की गई ?
कांग्रेस ने जातीय समीकरण भी ठीक ढंग से नही साधे है। अन्य लर्गों के मुकाबले राजपूत उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी गई। ब्राह्मण समुदाय को टिकट बंटवारे में पूरी तरह से नजऱअंदाज किया गया है। संसाधनों की कमी का भी पार्टी को सामना करना पड़ रहा है। भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले पार्टी का प्रचार तंत्र भी बेहद कमजोर है। सोशल मीडिया मंचों पर भी पार्टी बुरी तरह से पिछड़ रही है।

Loading

Ghanshyam Chandra Joshi

AKASH GYAN VATIKA (www.akashgyanvatika.com) is one of the leading and fastest going web news portal which provides latest information about the Political, Social, Environmental, entertainment, sports etc. I, GHANSHYAM CHANDRA JOSHI, EDITOR, AKASH GYAN VATIKA provide news and articles about the abovementioned subject and am also provide latest/current state/national/international news on various subject.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!