Breaking News :
>>भारतीय संस्कृति और परंपराएं गुयाना में फल-फूल रही है- प्रधानमंत्री>>गंगा किनारे अश्लील वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल करने वाले युवक- युवती पर मुकदमा दर्ज >>डिजाइनर सूट पहन रकुल प्रीत सिंह ने दिखाई दिलकश अदाएं, एक्ट्रेस की हॉटनेस देख फैंस हुए घायल>>कृषि मंत्री गणेश जोशी ने 28वी आई०सी०ए०आर० क्षेत्रीय समिति-प्रथम की बैठक में वीडियो कान्फ्रेंसिग के माध्यम से किया प्रतिभाग>>….तो अब मसूरी को मिलेगी जाम के झाम से निजात>>ठंड में घुटने के दर्द से परेशान हैं? राहत पाने के लिए रोजाना 15 मिनट करें ये एक्सरसाइज>>मंत्री रेखा आर्या ने सुनी सस्ता गल्ला राशन डीलर्स की समस्याएं>>मेले में योगदान देने वाले कर्मी और छात्र -छात्राओं का हुआ सम्मान>>जलवायु संकट अभी भी मुद्दा नहीं>>उत्तराखण्ड नगर निकाय चुनाव की अधिसूचना जल्दी जारी होगी>>प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को डोमिनिका के सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार से किया गया सम्मानित>>कल से शुरू होगा भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच पहला टेस्ट, जाने मैच से जुडी बातें>>मुख्यमंत्री धामी ने सौंग बाँध परियोजना पर विस्थापन की कार्यवाही जल्दी करने के दिए निर्देश>>दूनवासियों के लिए खतरा बनी हवा, चिंताजनक आँकड़े निकलकर आए सामने>>फिल्म कांतारा : चैप्टर 1 की रिलीज डेट आउट, 2 अक्टूबर 2025 को सिनेमाघरों में दस्तक देगी फिल्म>>उत्तराखण्ड बन रहा है खिलाड़ियों के लिए अवसरों से भरा प्रदेश : खेल मंत्री रेखा आर्या>>सर्दियों में टूटने लगे हैं बाल नारियल तेल से करें मालिश, बालों को मिलेगा पर्याप्त पोषण>>केदारनाथ विधानसभा के प्रत्याशियों की तकदीर ईवीएम में हुई कैद>>क्रेश बैरियरों की खराब स्थिति को लेकर महाराज ने रोष जाहिर किया>>दूरस्थ क्षेत्र पैठाणी में होगा उच्च शिक्षा को लेकर महामंथन
उत्तराखण्डसंस्कृति-कला

उत्तराखंड का लोकपर्व घी संक्रांति आज, जानिए इस लोकपर्व को मनाने की वजह

आकाश ज्ञान वाटिका, गुरुवार, 17 अगस्त 2023, देहरादून। उत्तराखण्ड के पहाड़ी समाज की आजिविका लोक संस्कृति से जुड़ी हुई है। यहॉ के निवासियों द्वारा हर माह में लोक पर्व मनाने की पंरपरा है। मूलतः पहाड़ी समाज भी आदिवासी समाज है, यहॉ की भौगोलिक परिस्थिति विकट होने के कारण यहॉ की आजिविका भी विकट थी, विकट आजीविका को सुगम बनाने के लिए यहॉ के निवासियों द्वारा कड़ी मेहनत की जाती थीं। अतः जीवन में मनोरंजन के महत्व को सीधें लोक पर्वो सें जोड़ दिया गया। यहॉ का आजिविका का मुख्य आधार खेती और पशुपालन रहा है। खेती और पशुपालन एक दूसरे के पूरक हैं, बिना खेती का पशुपालन संभव नहीं था और बिना पशुओं के खेती करना संभव नहीं था। ऐसे में उत्तराखण्ड के लोक समाज का लोक पर्व भी खेती और पशुपालन से जुड़ा हुआ था।

आज उत्तराखण्ड का लोक पर्व घी संग्राद है। धार्मिक मान्यता के अनुसार आज कर्क संक्रांति है, कर्क संक्रांति के दिन सूर्य सिंह राशि से कर्क राशि में प्रवेश करते हैं। हिंदू धर्म के पंचाग के अनुसार आज से भाद्रपद यानी भादों का महिना शुरू हो गया है। भादों माह से शरद ऋतु शुरू हो गयी है, अब धीरे धीरे बरसात कम होती जाती है, और धूप में तेज धूप लगती है, इस माह में धान और मंडुवा पर बाली आना शुरू हो जाता है, और झंगोरा पकने लग जाता है।

भादों के माह में सबसे अधिक गर्मी पड़ती है, इस माह मेंं शरीर में खुश्की अधिक होने के कारण शरीर खुश्क हो जाता है, ऐसे मे शरीर में तरल पदार्थ की जरूरत होती है। सावन माह में दूध दही और घी वर्जित माना गया है, भादो महिने से पुनः घी दूध का सेवन किया जाता है। सावन की संक्राति की शुरूवात खीर के साथ करने का प्रावधान रखा गया, वहीं भाद्रपद की संक्राति का शुभारंभ घी से किया जाता है। घी के सेवन से जहॉ शरीर की खुश्की मिट जाती है, वहीं शरीर बलिष्ठ होता है।

आज के दिन लोग भरी रोटी को घी में डूबोकर खाते हैं, कुछ घी शरीर पर और विशेषकर हिंदूं लोग अपनी चोटी या सिर पर मलते हैं। इसी के साथ काश्तकार आज के दिन अपने बैलों को भी घी पिलाता था। बैलों को घी पिलाने के पीछे बहुत बड़ा वैचारिक तर्क रहा है।

भादों माह में किसान अपने पशुओं को जो गोठ में रहते थे, ऐसें खेतों में ले जाते थे जिन पर साल भर से हल नहीं लगा हो, ऐसे खेतों में गोठ को ले जाया जाता था यहॉ लगभग एक माह तक गोठ रहती थी। उसके बाद धान और झंगोरा कटने के बाद गेहूॅं बोने से पहले खेतों में गोठ ले जायी जाती थी ताकि खेतों को खाद पानी और मिट्टी में उर्वरकता बनी रहे साथ ही खेतों में गोठ रहेगी तो हल लगाने और बरसाती झाड़ी की साफ सफाई हो सकती हैं। साल भर बंजर पड़े खेतों में हल लगाना मुश्किल होता है, क्योंकि वहॉ पर दूब जड़ी होती है, घास की जड़े होती हैं, ऐसे में हल जोतने के लिए मजबूत और अनुभवी बैलों की जरूरत होती है, बैलों को हल खींचने में समस्या ना आये इसलिए उन्हे आज के दिन घी पिलाया जाता था, उनके सींगों पर भी धी लगाया जाता था।

शाम को लोग अरबी के पत्तों का पत्यूड़ बनाकर घी के साथ खाते थे, मूल रूप में यह त्यौहार पशुओं और खेती से जुड़ा लोक पर्व है। गाय भैंस को खरक कहा जाता था, उस समय किसान की जमा पूंजी पशु ही होते थे, एक खरक में लगभग 40 से अधिक पशु रहते थे। गॉव में जिन घरों में यदि किसी के यहॉ घी नहीं होता था तो गॉव के लोग उस परिवार को एक एक कटोरी घी श्रद्धा से देकर आते थे ताकि पर्व के दिन वह घी से बंचित नही रहे। यह थी आपसी सामाजिक व्यवस्था।

आज समाज में बदलाव आया है, खान पान रहन सहन सब बदल गया है आज के समय में घी पचाना भी मुश्किल है, और वह आर्गेनिक घी मिलना भी मुश्किल है। पहले कंकरयळू घी को सबसे अच्छा माना जाता था। आज हमारा शारीरिक कार्य कम और मानसिक कार्य ज्यादा हो गया है, अतः अब शरीर के सौष्ठव और बलिष्ठता बनाने के लिए उस मात्रा में घी खाना भी प्रतिकूल होता जा रहा है, यह हमारी जीवन शैली बदलने का प्रभाव है। अतः वास्तव में प्रकृति के करीब रहकर ही प्रकृति जनित चीजों का सेवन शरीर के लिए लाभकारी सिद्ध होता है। आईए अपने इस उत्तराखण्ड के लोक पर्व को मनायें और अपने भावी पीढी को इससे जोड़े।

Loading

Ghanshyam Chandra Joshi

AKASH GYAN VATIKA (www.akashgyanvatika.com) is one of the leading and fastest going web news portal which provides latest information about the Political, Social, Environmental, entertainment, sports etc. I, GHANSHYAM CHANDRA JOSHI, EDITOR, AKASH GYAN VATIKA provide news and articles about the abovementioned subject and am also provide latest/current state/national/international news on various subject.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!