लंबी अस्थिरता की ओर

पाकिस्तान की सेना ने ऐसा ड्रामा रचा है, जिसमें मंच पर मौजूद पात्र उसके लिखे संवाद ही बोलें। यह खेल पाकिस्तानी आवाम के साथ-साथ बाकी दुनिया भी देख रही है। मगर यह खेल इतना महंगा है, जिसकी कीमत चुकाने लायक संसाधन पाकिस्तान के पास नहीं हैं। पाकिस्तान में सेना ने लोकतंत्र का जो स्वांग रचा है, उसकी महंगी कीमत मुल्क को चुकानी पड़ सकती है। यह स्पष्ट है कि हालिया चुनाव में तमाम लोकतांत्रिक मर्याताओं को ताक पर रख देने के बावजूद सेना ऐसी सियासी सूरत तैयार नहीं कर पाई है, जिससे स्थिर सरकार की राह निकले। सबसे लोकप्रिय- और नेशनल असेंबली में सबसे बड़े समूह के रूप में उभरी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ को सत्ता से बाहर रखने के लिए सेना ने बाकी तमाम दलों को मिलाकर गठबंधन सरकार बनवाने की चाल चली है। लेकिन वह दो प्रमुख दलों- पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को सत्ता साझा करने पर राजी नहीं कर पाई है।
हालांकि पीपीपी के आसिफ अली जरदारी को राष्ट्रपति बनाने पर सहमति बनी है, इसके बावजूद पीपीपी पीएमएल-नवाज के शहबाज शरीफ के नेतृत्व में बनने जा रही सरकार में शामिल नहीं होगी। वह मुद्दों के आधार पर उसे बाहर से समर्थन देगी। पीपीपी के नेता बिलावल भुट्टो-जरदारी ने संभवत: यह आकलन किया है कि शहबाज शरीफ की सरकार आईएमएफ के सख्त नुस्खे पर चलेगी, जिससे पाकिस्तानी आवाम की मुश्किलें बढ़ेंगी। पीपीपी इससे पैदा होने वाले जनाक्रोश के निशाने पर नहीं आना चाहती। पाकिस्तान पहले से गहरे संकट में है। दो साल की राजनीतिक अस्थिरता ने संकट और बढ़ाया है। सुरक्षा के मोर्चे पर भी पाकिस्तान को गहरी चुनौतियों को सामना करना पड़ रहा है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और अन्य आतंकवादी संगठनों की हिंसक गतिविधियां बढ़ती चली गई हैं। ऐसे गंभीर हालात से एक स्थिर और मजबूत सरकार ही निपट सकती है।
इस लिहाज से तो बेहतर यह होता कि सेना कठपुतली सरकार बनवाने के बजाय खुद सत्ता अपने हाथ में ले लेती! लेकिन उसने ऐसा ड्रामा रचा है, जिसमें मंच पर मौजूद पात्र उसके लिखे संवाद ही बोलें। यह सब इतना खुलेआम ढंग से किया गया है कि पाकिस्तानी आवाम के साथ-साथ दुनिया भी पूरा खेल देख रही है। मगर यह खेल इतना महंगा है, जिसकी कीमत चुकाने लायक संसाधन पाकिस्तान के पास नहीं हैं। इसलिए यह सबको साफ नजर आ रहा है कि सेना नेतृत्व के यह मानमानी पाकिस्तान को बहुत भारी पड़ेगी।