शराब कांड पर जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी
फरवरी माह में 48 लोगों की मौत और 103 लोगों के गंभीर रूप से बीमार पड़ने का कारण बने रुड़की शराब कांड पर गठित एकल सदस्यीय जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंप दी है। दो संस्करणों में तैयार इस रिपोर्ट में आयोग ने अवैध शराब व शराब तस्करी पर रोकथाम समेत आबकारी विभाग को सुदृढ़ बनाने के लिए 20 संस्तुतियां जारी की हैं।
सचिवालय स्थित मुख्यमंत्री कार्यालय में जांच आयोग के अध्यक्ष व पूर्व मुख्य सचिव एनएस नपलच्याल ने रिपोर्ट मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सुपुर्द की। इसके बाद पत्रकारों से रूबरू एनएस नपलच्याल ने कहा कि उत्तराखंड की आबकारी नीति राजस्व पर केंद्रित रहती है। अवैध शराब की रोकथाम को इसका हिस्सा नहीं बनाया जाता। लिहाजा, जांच रिपोर्ट में अवैध शराब की रोकथाम को भी आबकारी नीति का हिस्सा बनाने की संस्तुति की गई है।
इसके अलावा अवैध शराब के प्रकरणों में राज्य स्तर पर आबकारी आयुक्त की व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय करने की सिफारिश भी की गई है, जबकि जिला व क्षेत्र स्तर पर जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक, जिला आबकारी अधिकारी/सहायक आबकारी आयुक्त व आबकारी निरीक्षकों की व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय करने को कहा गया है।
सरकार से सिफारिश की गई है कि लोगों के परिवार की बर्बादी का कारण बनने वाली अवैध शराब पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जाए। जांच रिपोर्ट में इस दिशा में भी प्रयास किए जाने की बात पर बल दिया गया है कि प्रशासन व पुलिस संयुक्त रूप से साल में एक या दो बार जागरूकता कार्यक्रम जरूर आयोजित करें।
आयोग ने इस बात पर भी जोर दिया कि उनकी रिपोर्ट पर क्या-क्या कार्रवाई की गई, उसकी जानकारी विधानसभा के पटल पर भी रखी जाए। क्योंकि रुड़की शराब कांड के बाद विधानसभा से सरकार को निर्देश मिले थे कि अवैध शराब की रोकथाम के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएं।
यह आयोग कमीशन ऑफ इन्क्वायरी एक्ट के तहत गठित नहीं है, जिसकी रिपोर्ट स्वत: सदन में रखी जाती है। यह एक तरह का प्रशासनिक आयोग है, लिहाजा सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि आयोग की सिफारिशों पर निर्णय लेकर उससे सदन को अवगत कराया जाए।
प्वाइजन एक्ट के तहत हो मिथाइल एल्कोहल पर नियंत्रण
केंद्र सरकार के प्वाइजन एक्ट के तहत राज्य में अभी तक मिथाइल एल्कोहॉल पर नियंत्रण के लिए नियम ही नहीं बनाए गए हैं। खाद्य विभाग ने एक्ट के तहत नियम बनाए हैं, मगर इसमें मिथाइल एल्कोहॉल को शामिल नहीं किया है। अवैध शराब तैयार करने में इसका ही प्रयोग किया जाता है। रुड़की शराब कांड में भी यही मिथाइल एल्कोहॉल लोगों की मौत का भी कारण बना।
एकल सदस्यीय जांच आयोग के अध्यक्ष एनएस नपलच्याल ने कहा कि उत्तर प्रदेश इसको लेकर वर्ष 1994 में नियम बना चुका है। इंडस्ट्री सेक्टर में मिथाइल एल्कोहल का विभिन्न कार्यों में प्रयोग किया जाता है। मगर, इस पर प्रभावी नियंत्रण न होने के कारण शराब तस्कर इसका आराम से प्रयोग कर लेते हैं।
रुड़की कांड के बाद पुलिस ने मिथाइल एल्कोहॉल के 52 ड्रम बरामद किए थे। इनके उचित निस्तारण को भी सरकार से कहा गया है। यह इतना खतरनाक है कि इसकी पांच ग्राम की मात्रा का सेवन भी व्यक्ति की जान ले सकता है।
आबकारी नीति में आयुक्त के दखल पर सवाल
एक सदस्यीय जांच आयोग ने स्पष्ट किया है कि किसी भी विभागाध्यक्ष को नीति तैयार करने का अधिकार नहीं है। यह बात इसलिए भी कही गई, क्योंकि आबकारी विभाग आयुक्त के नेतृत्व में नीति तैयार करता है और उसके शासन उस पर शासन की अंतिम मुहर लगाई जाती है।
अपनी रिपोर्ट में आयोग के अध्यक्ष एनएस नपलच्याल ने बल देकर कहा है कि आबकारी आयुक्त को नीति तैयार करने के काम से बाहर रखा जाए। यह काम शासन का है और उसी के स्तर पर इसे अंजाम दिया जाना चाहिए। इस व्यवस्था के बाद ही बेहतर आबकारी नीति तैयार की जा सकती है।
दो साल तय हो आयुक्त का कार्यकाल
आयोग ने इस बात की सिफारिश भी की है कि आबकारी आयुक्त का कार्यकाल दो साल के लिए नियुक्त किया जाए और इस पद पर योग्य अधिकारी की तैनाती की जिम्मेदारी तीन वरिष्ठ अधिकारियों के पैनल को दी जाए। यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि आबकारी आयुक्त के पास कोई अतिरिक्त पद्भार न हो।
शराब का परिवहन करने वाले वाहनों पर लगें जीपीएस
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में शराब का परिवहन करने वाले वाहनों में जीपीएस लगाने की भी संस्तुति की है। ताकि यह पता लगाया जा सके कि वह कहां-कहां होकर गुजरे हैं। साथ ही उनमें डिजिटल लॉक का प्रयोग किया जाए। इसके अलावा शराब की हर बोतल में इस तरह का ट्रैकिंग स्टीकर आदि लगाया जाए, जिससे पता लगाया जा सके कि वह कहां-कहां हस्तांतरित की गई है।
अवैध शराब प्रकरण में जिम्मेदार अधिकारी को न मिले तैनाती
आयोग ने कहा कि जब भी अवैध शराब का प्रकरण सामने आता है और उसकी जवाबदेही किसी अधिकारी पर तय कर दी जाती है तो संबंधित अधिकारी को संवेदनशील क्षेत्रों में तैनाती से परहेज किया जाना चाहिए। इसके साथ ही अवैध यह जहरीली शराब से पीड़ित व्यक्ति व प्रभावित स्वजन को उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए। जो लोग इस धंधे में लिप्त हैं, उन्हें हतोत्साहित करने के लिए भारी-भरकम सिक्योरिटी ली जाए। ताकि दोबारा पकड़े जाने पर सिक्योरिटी को जब्त किया जा सके।
प्रभावी प्रवर्तन कार्य को विभाग का सुदृढ़ीकरण जरूरी
आयोग ने रिपोर्ट में इस बात पर भी बल दिया कि अवैध शराब व शराब तस्करी पर तब तक प्रभावी नियंत्रण संभव नहीं, जब तक कि विभाग को सुदृढ़ न किया जाए।
आयोग के अध्यक्ष ने कहा कि बिना हथियार, कारतूस, वाहन, कार्यालय व गोदाम के बिना आबकारी कार्मिक कैसे शराब तस्करों पर नकेल डाल पाएंगे। इसके लिए आबकारी कार्मिकों को सभी संसाधनों से लैस किया जाना जरूरी है। इसके साथ ही आयोग ने एक निरीक्षक पर तो-तीन तहसील क्षेत्रों की जिम्मेदारी की जगह हर तहसील पर एक निरीक्षक की तैनाती करने को कहा है।
दूसरी तरफ आयोग ने सरकार से कहा है कि देशी शराब की कीमत में 40 फीसद तक की कमी लाई जाए। ताकि इस प्रकृति की शराब का सेवन करने वाला निचला तबका शराब के सस्ते व अविश्वसनीय विकल्पों की तरफ न जा पाए।
मद्य निषेध की जिम्मेदारी महिला एवं बाल विकास को दी जाए
आयोग ने कहा कि शराब का दंश सबसे अधिकार संबंधित परिवार की महिलाओं को झेलना पड़ता है, लिहाजा प्रदेश में निष्क्रिय पड़े मद्य निषेध विभाग की जिम्मेदारी महिला कल्याण एवं बाल विकास विभाग को सौंपी जानी चाहिए। अभी यह जिम्मा समाज कल्याण विभाग को दिया गया है।
शुक्रवार का है अजब संयोग
अवैध शराब प्रकरण को शुक्रवार का अजब संयोग दिखा। रुड़की शराब कांड 08 फरवरी 2019 को शुक्रवार के दिन प्रकाश में आया। 20 सितंबर को पथरिया पीर शराब कांड भी शुक्रवार को सामने आया और अब जब जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी तो यह दिन भी शुक्रवार का ही रहा।