आपसी प्रेम, भाई-चारा व ख़ुशहाली का संदेश देता है, “दीपावली” का पावन पर्व – एक दीपक शहीदों के नाम अवश्य जलायें
आकाश ज्ञान वाटिका, 14 नवम्बर 2020, शनिवार, देहरादून। दीपावली भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं शरद ऋतु में प्रत्येक वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिन्दू त्यौहार है। दीपावली का पावन पर्व कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है जो लगभग अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्यौहार है और “अन्धकार पर प्रकाश की विजय” को दर्शाता है।
भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात, हे भगवान ! मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाइये। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार “दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा भगवान श्री राम के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। भगवान श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाये। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि जगमगाते दीपकों की रोशनी से प्रकाशमान हो उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है एवं झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है: “असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।” दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ-सुथरा कर सजाते हैं। बाजारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मौहल्ले, बाजार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे मनमोहक दृष्टिगत होते हैं।
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- धनतेरस के दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है।
- नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली को यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं।
- दीपावली की शाम लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है।
- भाई दूज या भैया द्वीज के दिन बहिन अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगा कर उसके मंगल की कामना करती है और भाई बदले में उसे उपहार देता है।
दीपावली मात्र एक दिन का पर्व नहीं है अपितु पर्वों का समूह है। दशहरे के बाद ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्यौहार होता है। इस दिन बाज़ारों में चारों तरफ़ जनसमूह उमड़ पड़ता है। बरतनों की दुकानों पर विशेष साज-सज्जा व भीड़ दिखाई देती है। धनतेरस के दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है, इसीलिए प्रत्येक परिवार अपनी-अपनी आवश्यकता अनुसार कुछ न कुछ खरीदारी करता है। इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है। इससे अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली होती है। इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं। अगले दिन दीपावली आती है। इस दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। बाज़ारों में खील-बताशे, मिठाइयाँ, खांड़ के खिलौने, लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियाँ बिकने लगती हैं। स्थान-स्थान पर आतिशबाजी और पटाखों की दूकानें सजी होती हैं। सुबह से ही लोग रिश्तेदारों, मित्रों, सगे-संबंधियों के घर मिठाइयाँ व उपहार बाँटने लगते हैं। दीपावली की शाम लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक व मोमबत्तियाँ जलाकर रखते हैं। चारों ओर चमकते दीपक अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं। रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों से बाज़ार व गलियाँ जगमगा उठते हैं। बच्चे तरह-तरह के पटाखों व आतिशबाज़ियों का आनंद लेते हैं। दीपों, पटाखों की रोशनी से देर रात तक कार्तिक की अँधेरी रात पूर्णिमा से भी से भी अधिक प्रकाशयुक्त दिखाई पड़ती है। दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है जिसमें लोग लोग अपने गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं। गोवर्धन पूजा के अगले दिन भाई दूज का पर्व होता है। भाई दूज या भैया द्वीज को यम द्वितीय भी कहते हैं। इस दिन बहिन अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगा कर उसके मंगल की कामना करती है और भाई भी बदले में उसे उयहार देता है।[/box]
[box type=”shadow” ]एक दीपक शहीदों के नाम
गत वर्षों के भाँति इस वर्ष भी दीपावली के पावन त्यौहार पर आकाश ज्ञान वाटिका के सम्पादक घनश्याम चन्द्र जोशी एवं परिवार द्वारा एक दीपक शहीदों के नाम जलाकर जाँबाज़ शहीदों की शहादत को याद कर उन्हें शत शत नमन किया गया।[/box]
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