जोशीमठ भू-धंसाव से सबक लेते हुए पर्वतीय जिलों में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में विकास का अलग मॉडल बनाने पर राज्य सरकार कर रही है गंभीरता से विचार
आकाश ज्ञान वाटिका, 16 जनवरी, 2023, सोमवार, देहरादून। जोशीमठ भू-धंसाव से सबक लेते हुए राज्य सरकार पर्वतीय जिलों में शहरी, कस्बाई और ग्रामीण क्षेत्रों में विकास का अलग मॉडल बनाने पर अब गंभीरता से विचार कर रही है। आने वाले समय में पहाड़ में विकास की नीति और नियोजन मैदान में लागू नियम शर्तों से अलग होगी।
इसके लिए राज्य सरकार केंद्रीय एजेंसियों, वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की मदद लेगी। एनडीएमए से भी मदद मांगी गई है। नियोजन विभाग को इसके समन्वय की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। मुख्यमंत्री कार्यालय के सूत्रों के मुताबिक, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जल्द इस बारे में उच्चाधिकारियों की बैठक करेंगे।
राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में विकास के अलग मॉडल का स्वरूप तय करने और उसे सभी विभागों के स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू कराने का दायित्व नियोजन विभाग को सौंपा जा सकता है।
उत्तराखंड राज्य गठन से पहले से ही पहाड़ के विकास के लिए अलग मॉडल की मांग होती आई है, लेकिन राज्य बनने के बाद से ही पहाड़ और मैदान में एक ही तरह की रीति-नीति अपनाई गई। अब इसके खराब परिणाम जोशीमठ आपदा जैसे रूप में सामने आ रहे हैं।
राज्य सरकार पर्वतीय क्षेत्रों की धारण क्षमता का आकलन कराएगी
जोशीमठ के अलावा नैनीताल, मसूरी, गोपेश्वर, श्रीनगर, श्रीकोट, रुद्रप्रयाग, पौड़ी, ऊखीमठ, गुप्तकाशी, तपोवन (ऋषिकेश) समेत दर्जनों शहर हैं, जो अपनी आबादी संग पर्यटन सीजन में फ्लोटिंग आबादी का दबाव का सामना करते हैं। इन शहरों में निर्माण की बाढ़ सी है। लगातार चलने वाले निर्माण कार्यों पर कोई नियंत्रण नहीं है।
सरकार ने बेशक तय कर लिया है कि वे पर्वतीय क्षेत्रों की धारण क्षमता का आकलन कराएगी, लेकिन यह आकलन कैसे होगा, कौन करेगा और कब तक शुरू होगा। इस पर अभी निर्णय होना बाकी है। मुख्यमंत्री धामी ने एनडीएमए के सदस्यों के सामने भी यह अनुरोध किया था कि वे पर्वतीय शहरों की धारण क्षमता का अध्ययन कराने में मदद करें।
कैबिनेट बैठक में पर्वतीय शहरों की धारण क्षमता के अध्ययन का निर्णय हुआ है। अभी यह तय होना है कि अध्ययन का दायित्व किस एजेंसी को दिया जाएगा। मुख्यमंत्री जी के जो भी दिशानिर्देश होंगे उस पर आगे बढ़ेंगे।
जोशीमठ से हमें अपने भविष्य के लिए सीख भी मिलती है। हिमालय क्षेत्र में विकास के व्यावहारिक ठोस मॉडल की नितांत जरूरत है। विकास की प्रक्रिया क्या हो, जमीनी स्तर पर उस प्रक्रिया का सही कार्यान्वयन कैसे हो, इन विषयों पर नीति नियंताओं, वैज्ञानिकों, विषय विशेषज्ञों, स्थानीय व्यक्तियों, संबंधित विभागों के साथ समन्वय से विकास के मॉडल का स्वरूप तय करेंगे।