Breaking News :
>>प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के 116वें एपिसोड को किया संबोधित>>क्या शुरू होगा तीसरा विश्व युद्ध? व्लादिमीर पुतिन की धमकी और बढ़ता वैश्विक तनाव>>देहरादून के इस इलाके में देर रात अवैध रुप से चल रहे बार और डांस क्लब पर पुलिस ने मारा छापा>>प्रदेश के खेल इंफ़्रास्ट्रक्चर में मील का पत्थर साबित होगा लेलू में बन रहा बहुउद्देशीय क्रीड़ा हॉल – रेखा आर्या>>गंदे पानी और गंदी हवा गंदी राजनीति का प्रतिफल>>यह जीत केदारनाथ क्षेत्र के जन-जन की जीत : रेखा आर्या>>‘ब्रांड मोदी’ के साथ लोगों के दिलों में तेजी से जगह बनाता ‘ब्रांड धामी’>>महाराष्ट्र में महायुति की प्रचंड जीत सनातन की जीत : महाराज>>प्रधानमंत्री ने प्रवासी भारतीयों से भारत को जानिए प्रश्नोनत्तरी में भाग लेने का किया आग्रह>>डीआरआई की बड़ी कार्रवाई : मुंबई हवाई अड्डे पर 3496 ग्राम कोकीन के साथ एक संदिग्ध को किया गिरफ्तार>>केदारनाथ उपचुनाव : भाजपा की ऐतिहासिक विजय और विपक्ष के झूठ की करारी हार>>तमन्ना भाटिया की ‘सिकंदर का मुकद्दर’ का ट्रेलर जारी, 29 नवंबर को नेटफ्लिक्स पर रिलीज होगी फिल्म>>खेल मंत्री रेखा आर्या ने खुद राफ्टिंग कर राष्ट्रीय खेलों की तैयारी का किया निरीक्षण>>पिथौरागढ़ जिले में जमीन की खरीद फरोख्त पर तलब की रिपोर्ट>>कभी देखा है नीले रंग का केला, गजब है इसका स्वाद, जबरदस्त हैं फायदे>>ज्योर्तिमठ में येलो और ग्रीन केटेगरी के भवनों को अस्थाई मरम्मत की मिली अनुमति>>ट्रंप के साथ एलन मस्क की जबरदस्त जुगलबंदी>>जनपद में जल्दी दिखेंगी आधुनिक आउटलेट/कैफे/रेस्टोरेंट, महिला स्वंय सहायता समूहों के उत्पादों को मिलेगी विपणन की सुविधा>>रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लाओ पीडीआर में जापानी और फिलीपीन रक्षा मंत्रियों से की मुलाकात>>ट्रक और इनोवा की टक्कर से छह युवाओं की दर्दनाक मौत के मामले में कंटनेर ड्राइवर की हुई पहचान, जल्द होगी गिरफ्तारी 
देशधार्मिकविशेष

वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे स्वामी विवेकानन्द

आकाश ज्ञान वाटिका। १२ जनवरी, २०२०(रविवार)।

  • आज के युवकों के लिये इस ओजस्‍वी संन्‍यासी का जीवन एक आदर्श है।

स्वामी विवेकानन्द का जन्म १२ जनवरी सन् १८६३ को कलकत्ता में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके बचपन का घर का नाम वीरेश्वर रखा गया किन्तु उनका औपचारिक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। नरेन्द्रनाथ दत्त के दादा दुर्गाचरण दत्ता संस्कृत और फारसी के विद्वान थे उन्होंने अपने परिवार को 25 की उम्र में छोड़ दिया और एक साधु बन गए। उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं। उनका अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना में व्यतीत होता था। नरेन्द्रनाथ के पिता और उनकी माँ के धार्मिक, प्रगतिशील व तर्कसंगत रवैया ने उनकी सोच और व्यक्तित्व को आकार देने में मदद की। बचपन से ही नरेन्द्र अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के तो थे ही नटखट भी थे। अपने साथी बच्चों के साथ वे खूब शरारत करते और मौका मिलने पर अपने अध्यापकों के साथ भी शरारत करने से भी नहीं चूकते थे। उनके घर में नियम पूर्वक रोज पूजा-पाठ होता था। धार्मिक प्रवृत्ति की होने के कारण माता भुवनेश्वरी देवी को पुराण, रामायण, महाभारत आदि की कथा सुनने का बहुत शौक था। कथावाचक बराबर इनके घर आते रहते थे। नियमित रूप से भजन-कीर्तन भी होता रहता था। परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से बालक नरेन्द्र के मन में बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार गहरे होते गये। माता-पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण बालक के मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखायी देने लगी थी।
नरेंद्रनाथ (स्वामी विवेकानन्द) ने सन् 1871 में आठ साल की उम्र में ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में दाखिला लिया। सन् 1877 में उनका परिवार रायपुर चला गया। सन् 1879 में, कलकत्ता में अपने परिवार की वापसी के बाद, वह एकमात्र छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीजन अंक प्राप्त किये। वह दर्शन, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य सहित विषयों के एक उत्साही पाठक थे तथा वेद, उपनिषद, भगवद् गीता, रामायण, महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त अनेक हिन्दू शास्त्रों में भी इनकी गहन रूचि थी। सन् 1881 में इन्होंने ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की, और सन् 1884 में कला स्नातक की डिग्री पूरी कर ली।
स्वामी विवेकानन्द वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् १८९३ में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें संबोधन के लिए 2 मिनट का समय दिया गया था लेकिन उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत “मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनो” के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।

[box type=”shadow” ] शिकागो में सन् १८९३ में आयोजित विश्व धर्म महासभा में स्वामी विवेकानन्द का संबोधन

“मेरे अमरीकी भाइयो और बहनो ! आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया हैं उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा हैं। संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ; धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूँ; और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ।

मैं इस मंच पर से बोलने वाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय आपको यह बतलाया है कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं। मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृत- दोनों की ही शिक्षा दी हैं। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते वरन समस्त धर्मों को सच्चा मान कर स्वीकार करते हैं। मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है। मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व होता हैं कि हमने अपने वक्ष में उन यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी जिस वर्ष उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था। ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने महान जरथुष्ट जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा है।

भाईयो मैं आप लोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ जिसकी आवृति मैं बचपन से कर रहा हूँ और जिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं:

रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥

अर्थात जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्न-भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जानेवाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं।

यह सभा, जो अभी तक आयोजित सर्वश्रेष्ठ पवित्र सम्मेलनों में से एक है स्वतः ही गीता के इस अद्भुत उपदेश का प्रतिपादन एवं जगत के प्रति उसकी घोषणा करती है:

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्। मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥

अर्थात जो कोई मेरी ओर आता है-चाहे किसी प्रकार से हो-मैं उसको प्राप्त होता हूँ। लोग भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए अन्त में मेरी ही ओर आते हैं।

साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी वीभत्स वंशधर धर्मान्धता इस सुन्दर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी हैं। वे पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं व उसको बारम्बार मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं, सभ्यताओं को ध्वस्त करती हुई पूरे के पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही हैं। यदि ये वीभत्स दानवी शक्तियाँ न होतीं तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक उन्नत हो गया होता। पर अब उनका समय आ गया हैं और मैं आन्तरिक रूप से आशा करता हूँ कि आज सुबह इस सभा के सम्मान में जो घण्टा ध्वनि हुई है वह समस्त धर्मान्धता का, तलवार या लेखनी के द्वारा होनेवाले सभी उत्पीड़नों का तथा एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर होने वाले मानवों की पारस्पारिक कटुता का मृत्यु निनाद सिद्ध हो।”[/box]
२५ वर्ष की अवस्था में नरेन्द्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए थे। तत्पश्चात उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। स्वामी विवेकानंद ने संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार किया और कई सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। भारत में विवेकानंद को एक देशभक्त संन्यासी के रूप में माना जाता है और उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
विवेकानन्द बड़े स्‍वप्न‍दृष्‍टा थे। उन्‍होंने एक ऐसे समाज की कल्‍पना की थी जिसमें धर्म या जाति के आधार पर मनुष्‍य-मनुष्‍य में कोई भेद न रहे। उन्‍होंने वेदान्त के सिद्धान्तों को इसी रूप में रखा। अध्‍यात्‍मवाद बनाम भौतिकवाद के विवाद में पड़े बिना भी यह कहा जा सकता है कि समता के सिद्धान्त का जो आधार विवेकानन्‍द ने दिया उससे सबल बौद्धिक आधार शायद ही ढूँढा जा सके। विवेकानन्‍द को युवकों से बड़ी आशाएँ थीं। आज के युवकों के लिये इस ओजस्‍वी संन्‍यासी का जीवन एक आदर्श है। उन्तालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानन्द जो काम कर गये वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।
उन्नीसवीं सदी के आखिरी वर्षों में विवेकानन्द लगभग सशस्त्र या हिंसक क्रान्ति के जरिये भी देश को आजाद करना चाहते थे। परन्तु उन्हें जल्द ही यह विश्वास हो गया था कि परिस्थितियाँ उन इरादों के लिये अभी परिपक्व नहीं हैं। इसके बाद ही विवेकानन्द ने ‘एकला चलो‘ की नीति का पालन करते हुए एक परिव्राजक के रूप में भारत और दुनिया को खंगाल डाला।
विवेकानंद ओजस्वी और सारगर्भित व्याख्यानों की प्रसिद्धि विश्व भर में है। जीवन के अन्तिम दिन उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या की और कहा, “एक और विवेकानन्द चाहिये, यह समझने के लिये कि इस विवेकानन्द ने अब तक क्या किया है।” उनके शिष्यों के अनुसार जीवन के अन्तिम दिन ४ जुलाई १९०२ को भी उन्होंने अपनी ध्यान करने की दिनचर्या को नहीं बदला और प्रात: दो तीन घण्टे ध्यान किया और ध्यानावस्था में ही अपने ब्रह्मरन्ध्र को भेदकर महासमाधि ले ली। बेलूर में गंगा तट पर चन्दन की चिता पर उनकी अंत्येष्टि की गयी। इसी गंगा तट के दूसरी ओर उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का सोलह वर्ष पूर्व अन्तिम संस्कार हुआ था। उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी स्मृति में वहाँ एक मन्दिर बनवाया और समूचे विश्व में विवेकानन्द तथा उनके गुरु रामकृष्ण के सन्देशों के प्रचार के लिये १३० से अधिक केन्द्रों की स्थापना की।

[box type=”shadow”]स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन

  • उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।
  • एक विचार लें और इसे ही अपनी जिंदगी का एकमात्र विचार बना लें। इसी विचार के बारे में सोचे, सपना देखे और इसी विचार पर जिएं। आपके मस्तिष्क, दिमाग और रंगों में यही एक विचार भर जाए। यही सफलता का रास्ता है। इसी तरह से बड़े बड़े आध्यात्मिक धर्म पुरुष बनते हैं।
  • एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकि सब कुछ भूल जाओ
  • पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है।
  • एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारो बार ठोकर खाने के बाद ही होता है।
  • जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरुरी नहीं लेकिन रिश्तो में जीवन होना बहुत जरुरी है।[/box]

Loading

Ghanshyam Chandra Joshi

AKASH GYAN VATIKA (www.akashgyanvatika.com) is one of the leading and fastest going web news portal which provides latest information about the Political, Social, Environmental, entertainment, sports etc. I, GHANSHYAM CHANDRA JOSHI, EDITOR, AKASH GYAN VATIKA provide news and articles about the abovementioned subject and am also provide latest/current state/national/international news on various subject.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!