मानसून के उतरते ही चढ़ सकती है कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर
- टीकाकरण, टेस्टिंग के इतर तीसरी लहर रोकने का फार्मूला क्या है ?
- तीसरी लहर की स्थितियाॅ बन रही उत्तराखण्ड में भी।
लक्षित समूहों की टेस्टिंग के साथ-साथ 18-45 वर्ष में विशेष लोगों के टीकाकरण को वरीयता दी जाय – जैसे ठेले वाले, दुकानदार, दूधवाले, ऑटो और टैक्सी ड्राइवर, होटलों, रेस्ताराओं के कर्मचारी, बैंक, सचिवालय कर्मी और खाना तथा सामान की डिलीवरी करने वाले लोग। वैक्सीन का इस तरह कम संसाधनों वाले लोगों में वरीयताकरण करने से तीसरी लहर पर सकारात्मक असर पड़ सकता है।
(विश्लेषण) : डॉ० एन0एस0 बिष्ट, वरिष्ठ फिजिशियन
आकाश ज्ञान वाटिका, 12 जुलाई 2021, सोमवार, देहरादून। हवा की आर्द्रता (नमी), जनसंख्या घनत्व (भीड़-भाड़) और कोरोना के नये उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) पर टिका है संक्रमण की रफ्तार या संभाव्य लहर का विश्लेषण। एक चौथा कारक भी है – वह यह है कि जाॅच या परीक्षण की दर कितनी तेजी से चल रही है। यह सच है कि ज्यादातर राज्यों में परीक्षण की रफ्तार कम हुई है – भले ही संक्रमण की दर में कमी आई हो।
दूसरी तरफ देश के आधे से अधिक कोरोना के रोगी केरल और महाराष्ट्र में मिल रहे है तो एक कारण यह भी है कि इन दो राज्यों में परीक्षण की ऊॅची दर बनी हुई है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि वायु में आर्द्रता बढ़ने के साथ वायरस का बाहरी आवरण कमजोर पड़ जाता है – ऐसे में ऐरोसाॅल या वायुकणों पर आधारित संक्रमण में कमी आना तय है। लेकिन मानसून से बड़ी नमी का यह लाभ तभी तक है जब तक भीड़-भाड़ कम है। जैसे ही जनसंख्या घनत्व बड़ता है वैसे ही वलगम की बूॅदों पर अधारित संक्रमण में तेजी आने लगती है। वलगम की बूंदे हवा में बड़ी नमी की वजह से भवनों के अन्दर ज्यादा देर तक टिकती हैं और यही कोरोना संक्रमण का कारण बनते हैं।
महाराष्ट्र के कई जिलों का जनसंख्या घनत्व औसत से ज्यादा है। यही हाल केरल का भी है, क्योंकि केरल के कुल क्षेत्रफल में वन-भूमि ही अधिक है, यही कारण है कि मानसून में वायरस के कमजोर पड़ने के बावजूद केरल और महाराष्ट्र के कुछ जिलों में अधिक जनसंख्या घनत्व की वजह से संक्रमण में तेजी बनी हुयी है।
जनसंख्या घनत्व, वायु-आर्द्रता, वायरस का प्रकार, परीक्षणों की दर के अलावा एक पाॅचवा कारक भी कोरोना संक्रमण के विज्ञान से जुड़ा हुआ है – वह है टीकाकरण का प्रतिशत। भारत जैसे विशालकाय देश में यह कारक सबसे महत्वपूर्ण होने वाला है जहाॅ पूर्ण टीकाकरण (दोनों खुराक) सिर्फ 5.5 प्रतिशत को ही मिल पाया है। पहली खुराक के 23 प्रतिशत का आंकड़ा भी जोड़ें तो लगभग 28.5 प्रतिशत लोग ही टीकाकरण के दायरे में हैं – 70 प्रतिशत से अधिक लोगों की पहॅुच अभी भी टीके से दूर है। ऐसे में मानसून के धीमा पड़ते ही जब हवा सूखी और ठंडी होगी तो वायुकणों से होने वाले संक्रमण की दर बढ़ जायेगी। उसके ऊपर यदि नये प्रकार का वायरस भी पनपता है तो तीसरी लहर आने में देर नहीं लगेगी।
टेस्टिंग या परीक्षण की दर में कमी आना और भी चिंताजनक है क्योंकि सामान्य जीवन और रोजगार को सुचारू करने की जरूरत के बीच भीड़-भाड़ वाली जगहों से संक्रमण की लहर बनने का जोखिम भी है।
कुछ जगहों पर अनिवार्य कोरोना परीक्षण असुविधाजनक तो है लेकिन तीसरी लहर को रोकने के लिए जरूरी प्रतीत होता है। अस्पताल, माॅल, सामाजिक समारोह के स्थल, घनी बस्तियाॅ ऐसी जगहें हैं जो संक्रमण के उपरिकेन्द्र बन कर उभर सकते हैं। दूसरी लहर की भयावहता के बाद भी भीड़ और व्यक्तियों द्वारा कोविड नियमों का पालन न करना चैकाने वाला तो है, लेकिन जागरूकता के माध्यमों का लगातार सक्रिय रहना भी जरूरी है।
ऐसे में टेस्टिंग या परीक्षण की रफ्तार बढ़ाना ही एकमात्र जरिया है। वैक्सीनेशन और कैसे द्रुतगति के साथ आगे बढ़े – यह भी नीति नियामकों को लगातार सोचना होगा।
लक्षित समूहों की टेस्टिंग के साथ-साथ 18-45 वर्ष में विशेष लोगों के टीकाकरण को वरीयता दी जाय – जैसे ठेले वाले, दुकानदार, दूधवाले, ऑटो और टैक्सी ड्राइवर, होटलों, रेस्ताराओं के कर्मचारी, बैंक, सचिवालय कर्मी और खाना तथा सामान की डिलीवरी करने वाले लोग। वैक्सीन का इस तरह कम संसाधनों वाले लोगों में वरीयताकरण करने से तीसरी लहर पर सकारात्मक असर पड़ सकता है।