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उत्तराखण्ड

अतिक्रमण के खिलाफ धीमा पड़ा अभियान, मोबाइल टावर पर चढ़ा व्यापारी

देहरादून: राजधानी को अतिक्रमण से मुक्ति दिलाने की नैनीताल हाईकोर्ट की एक अच्छी पहल मुकाम तक पहुंचने से पहले दम तोड़ती नजर आ रही है। वजह बन रही है कमजोर इच्छाशक्ति। अभियान के दौरान विरोध भी जारी है। विरोध स्वरूप एक व्यापारी को मोबाइल टावर में चढ़ गया।

दून शहर में जिस अंदाज में अतिक्रमण हटाने के अभियान की शुरुआत हुई, उससे जनसामान्य को उम्मीद बंधी थी अब उसके अपने शहर की सड़कें खुली-खुली नजर आएंगी, लेकिन अब ये धुंधली पड़ती दिखाई पड़ रही हैं।

शहर और इससे सटे इलाकों में आम आदमी के अतिक्रमण पर जेबीसी खूब गरजी, पर प्रभावशाली इलाकों और शख्सियतों की इमारतों पर जेसीबी की गर्जना मंद पड़ गई। यहां अतिक्रमण चिह्नित भी हुआ, पर सरकारी तंत्र इसे तोड़ने का साहस सरकारी नहीं कर पाया। किसी न किसी बहाने इसे टालने का प्रयास हो रहा है।

अब तो इन अतिक्रमणों को न तोड़े जाने के लिए वे लोग खुलकर पैरोकारी में उतर आए हैं, जो सार्वजनिक मंचों पर मुख्यमंत्री के आजू-बाजू बैठे दिखते हैं। जनता सवाल उठा रही है कि जिन लोगों ने शहर हित में हाईकोर्ट के आदेशों को सिर माथे लेकर न केवल अपने अतिक्रमण तुड़वाने के लिए सहमति दी, बल्कि खुद भी हथौड़े चलवाए, अब भी यह क्रम जारी है। … तो क्या कसूरवार केवल यही लोग थे। प्रभावशाली लोगों के आगे समपर्ण क्यों। जनता की जुबां पर यह भी सवाल है कि प्रभावशाली और सत्ता से करीबी रखने वाले आखिर कब तक अभयदान पाते रहेंगे।

शुरुआत हुई थी सुपरमैन जैसी 

राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में जो अफसर अतिक्रमण हटाने के नाम पर सिर्फ खानापूरी रहे थे। हाईकोर्ट का आदेश आने के बाद अफसर 27 जून से सुपरमैन की भांति मैदान में उतर गए, अतिक्रमण हटाने के लिए शहर को चार जोन में बांटा गया।

अदालत के आदेश की संजीवनी का असर सड़कों पर पहले दिन से ही नजर आने लगा था। अधिकारियों ने पहले दिन 126 अतिक्रमण चिह्नित किए। 28 जून से ध्वस्तीकरण शुरू किया गया। प्रशासन की टीमें उस दिन सुबह सड़कों पर उतरी तो तमाम जगह लोग स्वयं ही अपने अतिक्रमण तोडऩे में जुटे मिले। प्रशासन की टीम ने पहले दिन 71 पक्के अतिक्रमण ध्वस्त किए। चूंकि आदेश हाइकोर्ट का था, लिहाजा न आम आदमी के विरोध किया और न ही नेताओं ने किया।

आधे सफर के बाद मंद पड़ी गति

अतिक्रमण हटाओ अभियान शुरू हुए 56 दिन बीत गए हैं। इस अंतराल में 7208 में अतिक्रमण चिह्नित किए गए और इसमें से 3499 ध्वस्त किए गए। पहले 28 दिनों की बात करें तो इस दरम्यान 2565 अतिक्रमण ध्वस्त किए जा चुके  थे, जबकि बाद के 28 दिनों में ध्वस्तीकरण की गति बेहद धीमी पड़ गई। अब सीलिंग और चिह्नीकरण में भी अब अधिकारियों का दम फूलने लगा है।

प्रेमनगर में लिया यू-टर्न

अभियान के मंद पड़ने की बानगी पहली बार तब देखने को मिली, जब बारी प्रेमनगर के अतिक्रमण को ध्वस्त करने की आई। 15 जुलाई को तय किया गया कि 16 जुलाई से इस क्षेत्र में चिह्नित अतिक्रमण ध्वस्त किए जाएंगे। इसे लोगों की साफगोई ही कहेंगे कि उन्होंने बड़ी संख्या में अपने निर्माण को लाल निशान के हिसाब से ध्वस्त करना शुरू कर दिया।

ऐन वक्त पर भाजपा के कुछ विधायक और कांग्रेस ने नेता प्रेमनगर बाजार में धरने पर जा बैठे। सरकार तक बात पहुंची उसने भी स्पष्ट दिशा निर्देश देने की बजाय मामला किंतु-परंतु में अटका दिया। यही कारण रहा कि अतिक्रमण हटाने वाली टास्क फोर्स ने यह कहकर अपना रुख प्रेमनगर से मोड़ दिया कि अगले चरण में यहां के अतिक्रमण हटाए जाएंगे। वह चरण अब तक शुरू नहीं हो पाया। इसका नतीजा यह हुआ कि सप्ताहभर में ही प्रेमनगर में पुराने स्थान ही बाजार सज गया।

राजपुर रोड का मामला शासन में लटका

राजपुर रोड के अतिक्रमण पर 27 जून को ही लाल निशान लगा दिए गए थे। हालांकि यहां दिलाराम बाजार से अजंता होटल तक का भाग ऐसा था, जहां से सिंचाई विभाग की नहर गुजर रही है। ऐसे में बड़े-बड़े निर्माण भी अतिक्रमण की जद में आ गए थे।

इनमें ज्यादातर निर्माण प्रभावशाली लोगों थे और सरकार तक इस बात को लेकर चिंतित होने लगी। इसी बीच, सिंचाई विभाग के प्रमुख सचिव आनंद वर्धन ने हस्तक्षेप किया और 20 जुलाई को आदेश जारी किया कि इस मसले को अलग से निपटाया जाएगा। इसके बाद यहां से केवल छिटपुट अतिक्रमण ही हटाए जा सके।

पलटन बाजार में घुसे ही नहीं 

दून के सबसे पुराने बाजार में से एक पलटन बाजार के अतिक्रमण पर भी प्रशासन की मशीनरी विरोध के बाद थम गई। व्यापारियों ने ऐतराज जताया कि वर्ष 2005 में पलटन बाजार में अतिक्रमण हटाने के बाद दोबारा कार्रवाई क्यों की जा रही है। स्थिति यह है कि टास्क फोर्स सिर्फ यह कह रही है कि यहां भी जल्द अभियान शुरू किया जाएगा।

जनता के आरोप

हाईकोर्ट के आदेशों का सम्मान करते हुए अतिक्रमण ध्वस्त कराने वाले लोगों का आरोप है कि हाईकोर्ट का आदेश समूचे देहरादून के अतिक्रमण के लिए समान है, तो प्रभावशाली लोगों के लिए मानक क्यों बदले जा रहे हैं। क्यों प्रेमनगर, पलटन बाजार व राजपुर रोड के अतिक्रमणों पर से कदम पीछे खींच लिए गए हैं।

लोगों का यह भी आरोप है कि उनके अतिक्रमण के लिए वर्ष 1937 के नक्शों को आधार बनाया गया तो कुछ इलाकों में दूसरे नक्शों के आधार पर अतिक्रमण चिह्नित किए गए। जनता यह भी सवाल उठा रही है कि मलिन बस्तियों के अतिक्रमण को बचाने के लिए अध्यादेश लाने की जल्दबाजी क्यों की गई। प्रेमनगर में  अतिक्रमण हटाने के खिलाफ धरने पर बैठने वाले भाजपा विधायक व कांग्रेसी नेता तब कहां थे, जब उनका अतिक्रमण ध्वस्त किया जा रहा था।

अभियान की गति पर एक नजर

पहले 28 दिन

चिह्नीकरण——–4876

ध्वस्तीकरण——-2565

सीलिंग– ————-95

बाद के 28 दिन

चिह्नीकरण——–2212

ध्वस्तीकरण——-1162

सीलिंग—————–13

विरोध और अध्यादेश के बाद बदली फिजा

टास्क फोर्स के प्रेमनगर की तरफ रुख करने के बाद विरोध की जो शुरुआत हुई और इसके बाद जब मलिन बस्तियों के अतिक्रमण को हटाने के लिए सरकार अध्यादेश लेकर आई तो पूरी फिजा ही बदल गई। दून की जनता का कहना है कि सरकार को शहर की बेहतरी की चिंता नहीं है।

यहां नेताओं को सिर्फ अपने वोट बैंक की फिक्र है। जबकि, सच्चाई यह है कि 90 फीसद से अधिक की आबादी अतिक्रमण हटाने के पक्ष में है। इसके बाद भी मलिन बस्तियों के अतिक्रमण को बचाने के लिए ऐसे वक्त पर अध्यादेश लाया गया, जब नगर निगम आठ हजार से अधिक नोटिस जारी कर चुका था।

अब इन अतिक्रमणों को तीन साल के लिए अभयदान मिल चुका है। स्थिति यहां तक आ चुकी है कि शुरुआत में जो लोग टास्क फोर्स के हर निर्देश का पालन कर रहे थे, वह अब अधिकारियों का घेराव करने तक को आमादा हो रहे हैं। सरकार की कमजोर इच्छाशक्ति के आगे उनका साहस भी जवाब देने लगा है।

यक्ष प्रश्न: क्या कोर्ट के नए आदेश से बदलेंगे हालात

अब तो सवाल यह भी खड़े होने लगे हैं कि कोर्ट के ताजा आदेश के बाद भी क्या विरोध के हालात बदल पाएंगे। क्योंकि कोर्ट के पहले आदेश का मतलब भी यही था कि हर हाल में अतिक्रमण हटाया जाना है। चाहे इसके लिए धारा-144 ही लागू क्यों न करनी पड़े।

बावजूद इसके भाजपा विधायक व कांग्रेस नेताओं ने विरोध की चिंगारी को हवा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यही कारण है कि हाई कोर्ट को दोबारा आदेश जारी कर यह स्पष्ट करना पड़ा कि अतिक्रमण का विरोध करना कोर्ट की अवमानना माना जाएगा।

इसके लिए जिलाधिकारी की जिम्मेदारी तय की गई है। यह स्थिति तब है, जब कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुकी थी कि अतिक्रमण हटाने में किसी भी तरह की हीलाहवाली पर लोनिवि के सचिव (यहां अपर मुख्य सचिव से आशय) की व्यक्तिगत जिम्मेदारी होगी। वह अपने स्तर पर भरसक प्रयास भी कर रहे हैं। लेकिन सरकार की इच्छाशक्ति की कमी इस पर ब्रेक लगाती दिख रही है।

सुलगते सवाल

– नली-नालों पर बसी मलिन बस्तियों को बचाने से शहर का भला कैसे होगा?

– प्रभावशाली लोगों के अतिक्रमण पर रहम क्यों?

– जिन लोगों ने स्वयं अपने अतिक्रमण ध्वस्त किए, उनकी क्या खता?

– क्या प्रेमनगर, पलटन बाजार व राजपुर रोड पर हाईकोर्ट के आदेश लागू नहीं हैं?

– नेतागण वोट बैंक के इतर शहरहित के बार में कब सोचेंगे?

– अगर शहर की सड़कें खुली-खुली होंगी तो परेशानी कैसी?

– कोर्ट के आदेश के बाद भी मशीनरी अब उतनी चुस्त नजर क्यों नहीं आ रही?

– क्या जिम्मेदारों को कोर्ट की अवमानना का डर भी नहीं रह गया?

नाराज व्यापारी मोबाइल टावर पर चढ़ा

अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई से नाराज एक व्यापारी बुधवार को अजबपुर रेलवे फाटक के पास मोबाइल टावर में चढ़ गया। सूचना पर मौके पर पहुंचे एसडीएम सदर सदर प्रत्यूष सिंह ने व्यापारी को कार्रवाई का आश्वासन दिया तो तब जाकर व्यापारी मोबाइल टॉवर से नीचे उतरा। इस दौरान डेढ़ घंटे तक पुलिस व प्रशासन के हाथ-पांव फूले रहे। व्यापारी ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर प्रशासन पर मनमानी करने का आरोप लगाया।

विदित है कि हाईकोर्ट के आदेश पर वर्तमान में नगर निगम क्षेत्र में अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। जिसका व्यापारी विरोध कर रहे हैं। व्यापारियों का आरोप है कि प्रशासन मनमाने ढंग से पैमाइश कर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई कर रहे हैं। वहीं कुछ खास लोगों को इस कार्रवाई से बचाया जा रहा है।

प्रशासन पर अतिक्रमण हटाने के नाम पर मनमानी करने का आरोप लगाते हुए अजबपुर निवासी व्यापारी राजकुमार वर्मा पुत्र जिंदेश्वरी वर्मा दोपहर करीब साढ़े तीन बजे फाटक के पास स्थित मोबाइल टावर पर चढ़ गया। अजबपुर में दो दिन पहले प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की थी। जिसमें राजकुमार की साढ़े तीन मीटर दुकान और मकान का हिस्सा तोड़ा गया था।

व्यापारी के मोबाइल टॉवर पर चढ़ने की सूचना पर सीओ सीटी चंद्रमोहन सिंह, इंस्पेक्टर नेहरू कॉलोनी कोतवाली राजेश शाह मय फोर्स मौके पर पहुंचे। उन्होंने व्यापारी से नीचे उतरने का आग्रह किया। लेकिन व्यापारी नहीं माना। उसका आरोप था कि दूसरे को बचाने के लिए प्रशासन ने गलत पैमाइश कर उसकी दुकान और मकान का काफी हिस्सा बेवजह तोड़ दिया। इसलिए दोबारा से पैमाइश कराई जाए। करीब डेढ़ घंटे बाद मौके पर पहुंचे एसडीएम सदर प्रत्यूष सिंह ने व्यापारी को दोबारा पैमाइश करने का आश्वासन दिया। जिसके बाद व्यापारी  टावर से उतरा तब जाकर अधिकारियों ने राहत की सांस ली।

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Ghanshyam Chandra Joshi

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