3100 साल पहले इस वजह से विलुप्त हुई सरस्वती नदी
देहरादून : ऐतिहासिक सरस्वती नदी के विलुप्त होने को लेकर पहली बार किसी अध्ययन में पुख्ता तौर पर न सिर्फ कुछ कहा गया है, बल्कि इसके प्रमाण भी रखे गए हैं। कुमाऊं यूनिवर्सिटी के जियोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर बीएस कोटलिया ने अमेरिका व जर्मनी के विशेषज्ञों की मदद से सरस्वती के विलुप्त होने के कारण का पता लगाया है। प्रो. कोटलिया के अध्ययन में कहा गया है कि सरस्वती आज से करीब 3100 साल पहले भारी सूखे के चलते विलुप्त हुई।
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के गोल्डन जुबली समारोह में इस अध्ययन को साझा किया गया। प्रो. बीएस कोटलिया के मुताबिक सरस्वती नदी के पूर्व में घोषित किए जा चुके रूट से जमीन से ऊपर निकले कुछ शिवलिंगनुमा पत्थरों के नमूने लिए गए थे। ऐसे शिवलिंग पर जब पानी गिरता है तो वह भीतर तक चला जाता है और उससे हर साल एक रिंग (छल्ला) बन जाता है।
उन्होंने बताया कि जिस भी साल मानसून अधिक रहता है, उस साल छल्ला मोटा बनता है। जबकि सूखे या बेहद कम मानसून में छल्ला बेहद पतला बनता है। छल्लों का पता चलने के बाद यह पता लगाना जरूरी था कि मोटे व पतले छल्ले किस अवधि के हैं।
इसके लिए अमेरिका के हैडेलबर्ग व जर्मनी के मिनियापोलिस में यूरेनियम थोरियम डेटिंग कराई गई। पता चला कि जो सरस्वती नदी 4000 साल पहले बेहद उन्नत अवस्था में भी वह 31 सौ साल यानी 900 साल बाद लंबे समय तक पड़े सूखे के चलते पूरी तरह विलुप्त हो गई। हालांकि इससे पहले 35 सौ व 33 सौ साल की अवधि में भी मानसून अच्छा था।
4000 साल की अवधि में हर 10 साल के आंकड़े लिए
प्रो. कोटलिया ने बताया कि नदी के रूटों से प्राप्त शिवलिंगों के छल्लों के वृहद अध्ययन के लिए 4000 साल की अवधि में हर 10 साल में मानसून का अध्ययन किया गया। इससे अध्ययन में अधिक सटीकता प्राप्त हो पाई।
भूकंप को माना जाता रहा वजह
अब तक यही माना जाता रहा है कि हजारों साल पहले बेहद शक्तिशाली भूकंप के चलते सरस्वती नदी विलुप्त हुई, जबकि अब नया अध्ययन मानसून को इसकी वजह बता रहा है।
उत्तराखंड में 400 सालों में 26 बार पड़ा सूखा
यूरेनियम थोरियम डेटिंग से प्रो. बीएस कोटलिया ने यह भी पता लगाया गया कि उत्तराखंड क्षेत्र में पिछले 400 सालों में 26 बार सूखा पड़ा। यह अवधि एक से तीन साल के बीच रही।
भविष्य की जलवायु का पूर्वानुमान संभव
कुमाऊं यूनिवर्सिटी के प्रो. कोटलिया ने इस अध्ययन से यह भी निष्कर्ष निकाला कि जलवायु परिवर्तन मानव हस्तक्षेप की देन नहीं, बल्कि यह प्रकृति का अपना नियम है। उनका कहना है कि यदि जलवायु परिवर्तन आज के मानव की देन है तो हजारों साल पहले सूखे के हालात क्यों पैदा हुए।
उन्होंने बताया कि प्रकृति का अपना चक्र है और इस डेटिंग से वह इस चक्र के निश्चित या अनिश्चित अंतराल में होने का पता लगाने में भी जुटे हैं। यदि चक्र निश्चित अंतराल का पाया गया तो इससे भविष्य की जलवायु का आकलन भी किया जा सकता है।