देश में पहली बार हाथियों पर लगेंगे रेडियो कॉलर, इतनी दूरी पर होने पर मिलेंगे संकेत
देहरादून: देश में पहली बार हाथियों पर रेडियो कॉलर लगाए जाने की तैयारी है। यह रेडियो कॉलर भी साधारण नहीं, बल्कि अत्याधुनिक होंगे। जिस हाथी पर यह रेडियो कॉलर लगा होगा, उसके आबादी क्षेत्र से 500 मीटर की दूरी पर होने पर संकेत मिल जाएगा। ताकि वन विभाग किसी अनहोनी से पहले ही हाथियों को वापस जंगल में खदेड़ सकें।
भारतीय वन्यजीव संस्थान के निदेशक डॉ. वीबी माथुर ने बताया कि देश के करीब 10 राज्यों में 30 हजार से अधिक हाथियों का प्राकृतिक वासस्थल है। ऐसे में मानव-वन्यजीव संघर्ष निरंतर बढ़ रहा है। कई दफा हाथी आबादी में घुसकर जान-माल को नुकसान पहुंचाते हैं, तो कई दफा हाथियों को मानव के गुस्से का शिकार होना पड़ता है। इस तरह की घटनाओं रोकने के लिए संस्थान ने छत्तीसगढ़ से शुरुआत करते हुए दो हाथियों पर रेडियो कॉलर लगाने का निर्णय लिया है। यह रेडियो कॉलर स्मार्ट फोन की एक विशेष एप्लिकेशन से जुड़े होंगे। यदि रेडियो कॉलर वाला हाथी आबादी क्षेत्र की तरफ बढ़ेगा तो 500 मीटर की दूरी से ही इस बात का संकेत मिल जाएगा। अब तक के रेडियो कॉलर सेटेलाइट से जुड़े होते थे, जिसका संकेत विशेष उपकरण पर ही आता था और इसे सिर्फ वैज्ञानिक यह तकनीकी रूप में दक्ष व्यक्ति ही पढ़ सकता था। जबकि अत्याधुनिक रेडियो कॉलर के संकेत को आम आदमी भी अपने मोबाइल पर पढ़ सकता है।
हाथियों के मूवमेंट का समय चलेगा पता
भारतीय वन्यजीव संस्थान के निदेशक डॉ. वीबी माथुर के अनुसार रेडियो कॉलर के माध्यम से यह देखा जाएगा कि हाथियों का अधिक मूवमेंट किस समय आबादी की तरफ होता है और किन परिस्थितियों में वह ऐसा कर रहे हैं। इसके अलावा भी हाथियों के अन्य व्यवहार का भी पता चल पाएगा और यह भी बताया जा सके कि किन कारणों से हाथियों का व्यवहार हिंसक हो जाता है।
इन राज्यों में हाथियों का वास
उत्तराखंड, कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, असम, मेघालय, नागालैंड।
संघर्ष में इंसान को नुकसान अधिक
पिछले साल संसद में रखी गई एक रिपोर्ट में बताया गया था कि वर्ष 2016 में मानव-हाथी संघर्ष में 419 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी, जबकि 59 हाथियों की भी मौत हुई थी।
गोल्डन महाशीर पर भी लगेंगे रेडियो कॉलर
भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) उत्तराखंड में गोल्डन महाशीर मछलियों के प्रजनन के लिए कोसी नदी के ऊपरी क्षेत्र में वास करने की सच्चाई का पता लगाएगा। इसके लिए संस्थान ने मछलियों के गलफड़ों के पास सूक्ष्म स्तर के रेडियो कॉलर लगाने का निर्णय लिया है।
डब्ल्यूआइआइ की आंतरिक वार्षिक शोध संगोष्ठी में इस शोध कार्य की अब तक की कार्रवाई को रखा गया। संस्थान के डीन डॉ. जीएस रावत ने बताया कि कोसी नदी में पहले महाशीर मछलियां रामनगर के पास करीब 600-700 मीटर की ऊंचाई पर प्रजनन करती थीं, जबकि अब वह 1200 से 1300 मीटर की ऊंचाई तक पहुंचने लगी हैं। इससे यह निष्कर्ष निकल रहा है कि मछलियां कम तापमान की तलाश में ऊंचाई वाले क्षेत्र में पहुंच रही हैं। शोध में यह भी पता लगाया जाएगा कि नदी में ऐसे कौन से स्थान हैं, जहां पर महाशीर अधिक अंडे देना पसंद कर रही हैं। शोध को और प्रभावी बनाने के लिए शोधार्थी ऐसे शूट से लैस होकर नदी के भीतर पहुंचेंगे, जहां से सीधे मछलियों पर नजर रखी जा सके। नदी के भीतर मछलियों के चित्र भी लिए जाएंगे। डीन डॉ. रावत ने बताया कि उत्तराखंड के लिए महाशीर की महत्ता वैसी ही है, जैसे देश के लिए बाघ। जबकि बाघ की तरह ही महाशीर के अस्त्वि पर भी संकट खड़े हो रहे हैं। मछली पकडऩे के लिए अवैध तरीके से जहर, डाइनामाइट, सूक्ष्म जाल के चलते यह संकट बढ़ रहा है। शोध के बाद मछलियों की दशा-दिशा पर स्थिति साफ हो पाएगा। इसके बाद संरक्षण संबंधी कार्यों के लिए संस्तुतियां भी तैयार की जाएंगी।
नंधौर वैली व नयार में भी होगा अध्ययन
डब्ल्यूआइआइ के डीन डॉ. रावत ने बताया कि नंधौर वैली व नयार नदी में भी महाशीर मछलियों पर अध्ययन किया जाएगा। हालांकि सरकार से अभी इसकी अनुमति प्राप्त न होने के चलते यहां काम शुरू नहीं किया जा सका है।