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गर्भवती महिला पत्रकार कभी नहीं भुला पाएगी शीला दीक्षित की नसीहत

वह गर्भवती महिला पत्रकार कभी नहीं भुला पाएगी मरहूम शीला दीक्षित की नसीहत

दिल्ली में लगातार 15 सालों तक बतौर मुख्यमंत्री राज करने वाली शीला दीक्षित ने कई ऐसे फैसले लिए हैं जिन्हें आधी आबादी के हक में माना जाता है।

नई दिल्ली  एक महिला पत्रकार जो सात माह की गर्भवती थी। वह पत्रकारों की भीड़ से जूझते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का बयान लेने का प्रयास कर रही थी। तभी उनपर मुख्यमंत्री की नजर पड़ती है और वह उस महिला पत्रकार को अपने पास बुलाती हैं और पूछती है कि क्या मामला है, बयान के सवाल पर तुरंत उनसे बात करने लग जाती है। कहती हैं कि मां बननेवाली हो, ऐसे में संभल कर काम करो, अपना ख्याल रखो। उस महिला पत्रकार के ही शब्द में वह महिलाओं का दर्द समझती थी कि किन परिस्थितियों में महिलाएं काम के लिए बाहर निकलती हैं? वह भली भांति जानती थीं।

शीला दीक्षित जब 1970 में युवा महिला समिति की अध्यक्ष थीं तो दिल्ली में कामकाजी महिलाओं के लिए दो महत्वपूर्ण हॉस्टल बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं।

दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर 15 सालों तक सत्तारूढ़ रहीं शीला दीक्षित राजनीति में आधी आबादी की सशक्त हस्ताक्षर थीं। देश में महिला मुख्यमंत्री के नाम पर सबसे लंबा कार्यकाल उनके नाम पर दर्ज है, वह भी लगातार। वह 3 दिसंबर 1998 से 28 दिसंबर 2013 तक 15 साल 25 दिन दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं। उनके बाद यह रिकॉर्ड तमिलनाडू की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता के नाम दर्ज है। वह 14 साल 25 दिन तक मुख्यमंत्री थी, लेकिन लगातार नहीं।

वह सियासत में छुईमुई नहीं थीं। अगस्त 1990 में उत्तर प्रदेश में महिलाओं पर अत्याचार के खिलाफ आंदोलन करने पर 23 दिनों तक जेल में रहीं। जब कांग्रेस पार्टी ने पूर्वी दिल्ली से भाजपा के कद्दावर नेता लालबिहारी तिवारी का तिलस्म तोड़ने के लिए उनपर भरोसा किया तो शीला ने निराश नहीं किया। 1998 में अटल लहर में भी लाल बिहारी तिवारी हार गए। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र आयोग में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया था। 1986 से 1989 तक संसदीय मामलों के मंत्री रहते हुए संसद को सुचारु रूप से चलाने का जिम्मा संभाला। दिल्ली को संवारने में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।

शीला पंचतत्व में विलीन, नम आंखों से दिल्ली ने दी विदाई

गौरतलब है कि दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहीं शीला दीक्षित का पार्थिव शरीर रविवार को पंचतत्व में विलीन हो गया। निगम बोध घाट पर कृतज्ञ दिल्ली ने उन्हें नम आंखों से अंतिम विदाई दी। उनका अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के अनुरूप ही सीएनजी शवदाह गृह में किया गया। इस दौरान वहां मौजूद आम और खास सभी हाथ जोड़े खड़े रहे। अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान से संपन्न हुआ। वायु प्रदूषण घटाने की दृष्टि से शीला ने ही दिल्ली में सीएनजी की शुरुआत की थी।

करीब डेढ़ दशक तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित (81) का दिल का दौरा पड़ने से शनिवार को निधन हो गया था। रविवार को गार्ड ऑफ ऑनर के बाद तिरंगे में लिपटे उनके शव को कंधा देते उनके पुत्र संदीप दीक्षित, बेटी लतिका सईद और अन्य सीएनजी शवदाह गृह तक ले गए। यह ऐसा पल था, जब वहां मौजूद हर किसी की आंखें नम हो गईं।

इससे पहले केंद्रीय मंत्री अमित शाह, संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी, दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल, मुख्यमंत्री अर¨वद केजरीवाल, उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ, प्रियंका एवं रॉबर्ट वाड्रा, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार, अजय माकन, गुलाम नबी आजाद, मुकुल वासनिक समेत अनेक गणमान्य हस्तियों ने शीला को भावभीनी श्रद्धांजलि दी।

यह शीला की लोकप्रियता ही थी कि अनेक विपक्षी नेता उनके अंतिम दर्शन के लिए निगम बोध घाट पहुंचे। विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल, भाजपा सांसद मनोज तिवारी व विजय गोयल, दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता व पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने भी अंत्येष्टि स्थल पहुंचकर उन्हें अंतिम विदाई दी।

मूसलाधार बारिश के दौरान भी लोग ‘शीला दीक्षित अमर रहे’ और ‘जब तक सूरज चांद रहेगा, शीला दीक्षित का नाम रहेगा’ जैसे नारे लगा रहे थे। इससे पहले 24 अकबर रोड स्थित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी कार्यालय (एआइसीसी) में शीला के अंतिम दर्शनों के लिए लोगों का तांता लगा रहा। एआइसीसी से निगम बोध घाट ले जाते हुए उनके पार्थिव शरीर को प्रदेश कांग्रेस कार्यालय राजीव भवन भी ले जाया गया। करीब तीन बजे उनका पार्थिव शरीर निगम बोध घाट पहुंचा।

भारी बारिश में भी कम नहीं हुए लोग
शीला का पार्थिव शरीर जब निगम बोध घाट पहुंचा उस समय तेज बारिश शुरू हो गई जो करीब घंटे भर तक चली। इसके बावजूद उन्हें श्रद्धांजलि देने वालों की भीड़ कम नहीं हुई। बारिश में भीगते और जलभराव हो जाने के बावजूद आम और खास सभी वहां डटे रहे।

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Ghanshyam Chandra Joshi

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