
241 सीटों के आसपास सिमटी बीजेपी
चुनाव के नतीजों ने बिगाड़ा भाजपा का पूरा गणित
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के नतीजों और रूझानों से स्पष्ट हो गया है कि इस बार के चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। भाजपा 241 सीटों के आसपास सिमटती दिख रही है। हालांकि उसके नेतृत्व वाले एनडीए को 292 सीटों पर जीत या बढ़त हासिल है। बीते 2019 और 2014 के चुनाव में भाजपा को अपने दम पर बहुमत मिला था और नरेंद्र मोदी एक मजबूत सरकार के नेता बनकर उभरे थे। लेकिन, इस चुनाव के नतीजों ने भाजपा का पूरा गणित बिगाड़ दिया है। एनडीए के बहुमत हासिल करने के बावजूद उसके घटक दलों का इतिहास रहा है कि वे पीएम मोदी के नेतृत्व के साथ सहज नहीं रहे हैं। इसमें सबसे पहला नाम बिहार के सीएम और जदयू के नेता नीतीश कुमार का आता है।
मोदी के साथ तस्वीर पर भड़के थे नीतीश
नीतीश कुमार वैसे तो वाजपेयी-आडवाणी के दौर से एनडीए के हिस्सा हैं लेकिन वह पीएम मोदी को लेकर कभी भी सहज नहीं रहे हैं। बात 2009 की है जब पंजाब के जालंधर में गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी के साथ मंच पर हाथ उठाते नीतीश कुमार की एक तस्वीर मीडिया में आ गई थी तो इतनी सी बात पर नीतीश कुमार भड़क गए थे। उस समय बिहार के कोशी नदी में भयंकर बाढ़ आई थी और उस बाढ़ में बचाव और राहत कार्य के लिए गुजरात की सरकार ने मुख्यमंत्री राहत कोष में पैसे भेजे थे। मोदी से साथ तस्वीर छपने भर से नीतीश इतना नाराज हुए कि उन्होंने ये पैसे वापस कर दिए थे।
बात 2013 की
फिर बात 2013 की आई जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार अभियान का प्रमुख बनाने की घोषणा की तो नीतीश कुमार एनडीए से अलग हो गए। मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर जीतनराम मांझी को सीएम बना दिया। 2014 के लोकसभा में भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़े। इस चुनाव में जदूय दो सीटों पर सिमट गई थी। फिर राजद के बाहरी समर्थन से कुछ दिनों तक सरकार चलाई और 2015 में राजद के साथ मिलकर बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा और उसमें प्रचंड जीत हासिल की। लेकिन, फिर राजद के साथ भी उनके रिश्ते ठीक नहीं रहे और उन्होंने 2017 में ‘मजबूरी’ में नरेंद्र मोदी को नेता मान लिया और एनडीए में शामिल हो गए। हालांकि उसके बाद से नीतीश कई बार एनडीए के अंदर और बाहर आ-जा चुके हैं।
ये नीतीश का समय
इस चुनावी नतीजे में बीते करीब एक दशक में पहली बार ऐसा हुआ है जब नीतीश एनडीए के भीतर खासकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ बार्गेन करने की स्थिति में हैं। हालांकि उनके पास केवल 12 सीटें हैं लेकिन एनडीए को बहुमत दिलाने में ये 12 सीटें अहम हैं।
हालांकि यह नहीं कहा जा सकता है कि आज की तारीख में नीतीश कुमार की जदयू नरेंद्र मोदी का विरोध करने की स्थिति में हैं। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही अभी भी भाजपा 241 सीटों पर आगे हैं। उसे 272 के जादुई आंकड़े के लिए केवल 31 सीटें चाहिए। नौतिक तौर पर जरूर भाजपा कमजोर हुई है, क्योंकि उसने खुद के लिए 370 का टार्गेट तय किया था। लेकिन, उससे करीब 130 सीटें कम मिली है। इसकी तुलना में जदयू के पास ऐसी ताकत नहीं है जिससे वह मोदी के नेतृत्व पर सवाल उठाए।
नीतीश करेंगे कोई बड़ी डील?
यह निश्चित तौर कहा जा सकता है कि इस बार मोदी कैबिनेट में मंत्रायल के लिए सीएम नीतीश की पार्टी ज्यादा बार्गेन करने करने की स्थिति में होगी। साथ ही दूसरी तरफ बिहार में कम विधायक होने के बावजूद मुख्यमंत्री पद संभालने वाले नीतीश कुमार प्रदेश भाजपा नेतृत्व को भी अपने ऊपर हावी होने से रोकने में कामयाब होंगे। 2019 के चुनाव ‘उचित’ प्रतिनिधित्व नहीं मिलने की कारण जदयू एनडीए में होने के बावजूद मोदी सरकार में शामिल नहीं हुई थी।
कुल मिलाकर ऐसा कहा जा सकता है कि फिलहाल की स्थिति में 241 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है और उसके नेता नरेंद्र मोदी हैं। लोकप्रियता के मामले में उनसे मुकाबला करने के लिए कोई दूसरा नेता न तो भाजपा में दिख रहा है और न ही एनडीए में। जिन लोगों का लगता है कि भाजपा की 241 सीटें कम है तो उनको पता होना चाहिए कि इसी देश में 1991 में स्वर्गीय नरसिम्हा राव की सरकार बनी थी जो अल्पमत की सरकार थी लेकिन पांच साल तक चली थी। उसके पीछे नरसिम्हा राव की रणनीति थी।
उन्हें कभी भी विपक्ष के तीव्र विरोध का सामना नहीं करना पड़ा। साथ ही अटल-आडवाणी के नेतृत्व वाली भाजपा के पास वैकल्पिक सरकार देने का रास्ता नहीं था। राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को 232 सीटें मिली थीं, जबकि भाजपा को 120 और जनता दल को 59 सीटें आईं थीं। बावजूद इसके नरसिम्हा राव की सरकार पूरे पांच साल चली थी।