नगर निगम ने लगाया पैसेफिक मॉल पर पांच करोड़ का जुर्माना
नगर निगम की ओर से व्यवसायिक संपत्तियों से वसूले जा रहे भवन कर में करोड़ों रुपये की हेराफेरी के मामले में नगर निगम ने सुनवाई के बाद पैसेफिक मॉल पर पांच करोड़ का जुर्माना लगाया है। इसमें टैक्स की धनराशि भी शामिल है।
निगम की ओर से शहर में आवासीय एवं व्यवसायिक भवनों से सेल्फ असेसमेंट प्रणाली के तहत भवन कर वसूल किया जाता है। असेसमेंट में हेराफेरी पकड़े जाने पर नगर आयुक्त विनय शंकर पांडेय ने 50 बड़े व्यवसायिक प्रतिष्ठानों की जांच की तो भारी अनियमितताएं मिलीं। असेसमेंट में हेराफेरी करने वाले 15 प्रतिष्ठानों को निगम ने चार गुना जुर्माने संग धनराशि जमा कराने के नोटिस भेजे थे।
उक्त प्रतिष्ठानों समेत कुल 15 प्रतिष्ठानों के मामले में निगम में सुनवाई शुरू हुई थी। पैसेफिक डेवलपमेंट के मामले में नगर आयुक्त विनय शंकर पांडेय ने खुद सुनवाई की, जबकि शेष मामलों में उपनगर आयुक्त सोनिया पंत सुनवाई कर रही हैं।
नगर आयुक्त पांडेय ने बताया कि सुनवाई में पैसेफिक डेवलपमेंट के विरुद्ध आरोपित जुर्माना सही पाया गया। सेल्फ असेसमेंट में भारी अनियमितता मिली है। अब पैसेफिक डेवलपमेंट से पूरी वसूली की जाएगी। वहीं, अन्य मामलों की सुनवाई जारी है।
बता दें कि नगर निगम ने वर्ष 2014 में भवन कर की नई दरों के संग सेल्फ असेसमेंट प्रणाली की शुरुआत की थी। आवासीय भवनों पर यह प्रणाली पूरी तरह लागू हो गई थी, मगर व्यवसायिक भवनों पर यह प्रणाली पूर्ण रूप से लागू नहीं हो सकी।
दरअसल, शासन ने उस दौरान व्यवसायिक टैक्स की दरें बढ़ाने पर रोक लगाई हुई थी। ऐसे में नगर निगम ने सिर्फ उन्हीं व्यवसायिक प्रतिष्ठानों पर कर लगाया, जो पहले से कर अदा कर रहे थे। साल 2016 में शासन ने व्यवसायिक टैक्स की नई दरें लागू की तो निगम द्वारा शहर के सभी व्यवसायिक प्रतिष्ठानों से टैक्स वसूली शुरू की गई।
हालांकि, निगम कर्मचारियों ने कभी सेल्फ असेसमेंट में सत्यापन करने की जहमत नहीं उठाई। अब सत्यापन करने पर जिन प्रतिष्ठानों में गड़बड़ी मिली है, उन पर चार गुना जुर्माना तो लगाया ही जा रहा है, साथ ही पिछले वर्षों का बकाया भी वसूल किया जा रहा।
पहले भी पकड़ा गया था घपला
पैसेफिक मॉल के टैक्स असेसमेंट में वर्ष 2014 में भी बड़ा घपला पकड़ा जा चुका है। हालांकि, उसमें नगर निगम कर्मियों का ही हाथ था। पैसेफिक मॉल का एरिया कम दर्शाकर उस पर कम टैक्स आरोपित किया गया था। इसमें प्रतिवर्ष करीब सवा करोड़ रुपये की अनियमितता सामने आई थी।