“माँ” के प्रति सम्मान और प्रेम को प्रदर्शित करता है – मातृ दिवस
सृष्टि पालक का आशीर्वाद
“माँ”
आकाश ज्ञान वाटिका, 10 मई 2020, रविवार। मातृ दिवस माता को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। एक माँ का आँचल अपनी संतान के लिए कभी छोटा नहीं पड़ता। माँ का प्रेम अपनी संतान के लिए इतना गहरा और अटूट होता है कि माँ अपने बच्चे की खुशी के लिए सारी दुनिया से लड़ लेती है। एक माँ का हमारे जीवन में बहुत बड़ा महत्व है, उसके बिना यह दुनियाँ अधूरी है।
मातृ दिवस मनाने का प्रमुख उद्देश्य माँ के प्रति सम्मान और प्रेम को प्रदर्शित करना है।
[box type=”shadow” ]सूरज की दहक तू ही है,
हवा की महक तू ही है।
चलती हुई सांसों की लय तू ही है,
“माँ” भगवान की बदली सूरत तू ही है।।
सृष्टि की जननी माता आदिशक्ति भवानी सारे संसार से लेकर त्रिलोक को प्यार, ममता, स्नेह से सींचित करती है। प्रत्येक प्राणी मात्र पर उस जगत दासी का निश्चल, निःस्वार्थ एवं अगाध प्रेम निबाध रूप में मिलता रहा है। वस्तुतः प्रत्येक प्राणी को पृथक एवं प्रत्यक्ष रूप से यही प्रेम व आशीर्वाद व्यक्तिगत रूप में देने के भाव से भवानी ने अपने ही प्रतिरूप को धरती पर माँ के रूप में उतरा है। माँ वह होती है जो अपने स्वार्थ, इच्छा एवं अपनी चिंता को त्यागकर बच्चों को अपने ही अंश से गर्भ में पलटी-पोषती हैऔर जन्म देती है। जिसका स्पष्ट प्रमाण है हमारी नाभि की गाँठ जिससे हमें पता चलता है कि कैसे बच्चा माँ के खून और मांस से अलग होता है। माँ अपने बच्चे को रत रत भर जागकर लोरी सुनाकर बड़ा करती है। खुद गीले में सो, बच्चे को सूखे में सुलाती है, अपने दूध की एक एक बूँद तक बच्चे को पिलाकर बड़ा करती है। माँ बच्चे को उँगुली पकड़कर चलना सिखाती है और उसके मुँह में अपने शब्द रखकर बोलना सिखाती है। बच्चा माँ के रहते कभी अपने आप को असुरक्षित एवं असहाय नहीं समझता है। माँ के आसमान के सामान फैली बांहों में आकर उसे ममत्व मिलता है, हिमालय सी गोद में लेटकर स्वर्ग का सा अहसास होता है। अतः माँ के बिना कोई भी बच्चा ठीक से सो नहीं सकता।
माँ तो देवों से भी बढ़कर है, उसे सभी देवताओं ने पूजा है। माँ की दुआ तो भगवन से भी टकरा जाती है, पर अपने बच्चे पर आँच नहीं आने देती है। अपनी आखरी साँस तक वह लड़ती है, अपने बच्चे को हर सुख, हर आशीर्वाद बिना माँगे देती है। माँ के प्यार की थाह पाना असम्भव है।
एक माँ जब अपने कई बच्चों को प्यार, ममत्व से पाल लेती है, फिर क्यूँ ? यही कुछ बच्चे माँ के बूढ़े होने पर उसे असहाय, असुरक्षित, बेसहारा छोड़ देते हैं।
रामायण में भगवान राम, माँ के महत्व को स्थापित करने के लिए वह ऐसे आदर्श बने कि सौतेली माँ केकैयी के कहने भर से ही सारा राज – काज त्याग दिया, फिर भी उसी माँ के चरणों में स्वर्ग देखा।
माँ को आदर, सत्कार, प्यार देना उतना ही सनातन है जितनी यह धरती। आज की पीढ़ी भी ‘मदर्स डे’ पर ही सही माँ को याद तो करती है, उसे सन्देश भेजती है एवं उपहार भेजती है। प्रत्येग युग में माँ का आदर होता आया है, होता रहा है और हमेशा होता रहेगा। परन्तु इस कलयुग में शायद हमारे संस्कारों व नैतिक मूल्यों को देने में कुछ कमी रह गयी है, जो वह माँ को सहारा देने के समय आँखें फेर लेते हैं। हमारी पीढ़ी को आज यह समझना होगा कि जो आज वह माता -पिता के साथ कर रहे हैं, वह समय कल उनका भी आएगा, क्योकि वक्त हमेशा खुद को दोहराता है। इस मशीनी युग में माँ को केवल मशीन नहीं समझें, उसके धड़कते दिल को अपने दिल से महसूस करें। प्यार एवं सम्मान देकर उसके असीम आशीर्वाद व प्यार को बटोरते रहें।[/box]
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माँ के सामने कभी खुलकर मत रोना,
क्योंकि नींव के पास इतनी नमी अच्छी नहीं होती।
माँ वो है जो कभी ख़फ़ा नहीं होती,
जुवां से कभी बद्दुआ नहीं देती।
तूने हमें जन्म दिया अपने खून से सींच,
मुझ डाली को पल्वित किया,
खुद सो गीले में सुला मुझे सूखे में दिया।
“बड़ा कर दुनियाँ में जीने के काबिल बना दिया।”
माँ की पूजा ही पूजा भगवान की,
खुद भगवान ने पूजा जिसे,
समता क्या उसके सम्मान की।
माँ के दर्द, प्यार को नहीं जाना जिसने,
दुनियाँ में सब पाके भी कुछ नहीं पाया उसने।
ऋणी रहूँ मैं जीवन भर,
दूध का तेरे कर्ज भी ना चुकाया जायेगा,
क्योंकि, मेरी सांसों में है तेरी सांसों का अंश,
तेरी लोरी ही देती है मुझे जीने का सारांश।
मैं तो हूँ इंसान क्या कहूँ मैं तुझसे पर,
धन्य है वह कोख देती है जो,
हर कुर्बानी को हंस-हंस कर।[/box]
साभार: डॉ० सुधा गुप्ता
प्रवक्ता (हिंदी)
एम.के.पी. इण्टर कॉलेज, देहरादून