आकाश ज्ञान वाटिका, मंगलवार, 9 जून 2020, देहरादून। भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा संरचनात्मक दृष्टि से यह गाँवों का देश है। लगभग सभी ग्रामीण समुदायों द्वारा कृषि का कार्य किया जाता है, यही कारण है कि लगभग 70% भारतीय लोग किसान हैं। किसान भारत देश के लिए रीढ़ की हड्डी के समान है। देश के लोगों का भरण-पोषण करने में किसानों का बहुमूल्य योगदान है। किसानों द्वारा खाद्य फसलों और तिलहनों का उत्पादन किया जाता है। इसके साथ ही किसान वाणिज्यिक फसलों का उत्पादन भी करते हैं। देश में चलने वाले उद्योग-धंधों के लिए कुछ कच्चे माल का उत्पादन भी करते हैं। इसलिए उन्हें हमारे राष्ट्र का जीवन रक्त कहा जाये तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। कृषि पर प्रत्यक्ष या पपरोक्ष रूप से निर्भर भारतीय किसान पूरे दिन और रात काम करते है। छोटे भूमि धारकों और सीमांत किसानों की हालत अब भी संतोषजनक नहीं है। वह कर्ज के टेल दबे रहते हैं लेकिन बड़े किसानों के जीवन में काफी सुधार हुआ है।
इस धरा की माटी से जुड़े श्रेष्ठ कवि श्री जसवीर सिंह ‘हलधर’ ने अपनी कविता के माध्यम से किसान की वास्तविक जीवन से बेहतर ढंग से रूबरू कराया है। यह कविता उनके प्रसिद्ध काव्य संग्रह “अंतर्नाद” से ली गई है।
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किसान की पीड़ा
मिला खून माँटी उगाता हूँ दाने,
यही साधना मैं इसी का पुजारी !
नहीं धूप देखूँ नहीं छांव देखूँ ,
पड़े पाँव छाले नहीं है सवारी !!
न बेटा पढ़ा है न बेटी पढ़ी है,
नहीं आड़ कोई न कोई बसेरा !
मरूँ भूख से या चवा जाय कर्जा,
नहीं रात देखूँ न देखूँ सवेरा !
न देखूँ उजाला न ओढ़ा दुसाला,
फिरूँ रात भागा यही काम मेरा !!
चहूँ ओर नागों कि बस्ती बसी है,
मुझे जो बचा ले न आया सपेरा !
करूँ आत्म हत्या कि बाघी बनूँ मैं,
बता दो तरीका पटे ये उधारी !
मिला खून मांटी उगाता हूँ दाने,
यही साधना मैं इसी का पुजारी !!1!!
यहाँ कर्ज से कौन जीता कहाँ है,
यहाँ भूख से कौन हारा नहीं है !
न नेता न मंत्री न कोई मिला है,
पड़ा आन सूखा सहारा नहीं है !
उगा के भी सोना हुए भाव मिट्टी,
फसा बीच धारा किनारा नहीं है !!
न आँसू न आहें न कोई गिला है,
भले ही यहाँ पै गुजारा नहीं है !
बचा लो मुझे या चढ़ा डाल शूली,
धरा का पुजारी नहीं मैं भिखारी !
नहीं धूप देखूँ नहीं छाँव देखूँ ,
पड़े पाँव छाले नहीं है सवारी !!2!!
करूँ काम खेती नहीं भीख माँगूँ,
कुआ रोज खोदूँ पिऊँ रोज पानी !
चिता लेट जाऊँ कहीं भाग जाऊँ,
न दाना न पानी यही है कहानी !
कभी ना मिला दाम पूरा हमें तो,
नहीं रास आयी न भाती किसानी !!
बता दोष मेरा बता बे इमानी,
न आया बुढ़ापा जली है जवानी !
चलें दाव सारे न कोई दयालू,
फसा जाल पंक्षी तने हैं शिकारी !
मिला खून मांटी उगाता हूँ दाने,
यही साधना मैं इसी का पुजारी !!3!!
लुटा पाग मेरा किसानी लबादा,
फटी पाग देखूँ कि वादा निभाऊँ !
फसी नाव मेरी फिरूँ बे सहारा,
फटी एक धोती ये धोऊँ सुखाऊँ !
कभी रोग खाये कभी बाढ़ आये,
लुटा आशियाना कहाँ से बचाऊँ !!
लगाते जो नारा न देते सहारा,
वही खेत खाये किसे यह बताऊँ !
घना है कुहासा बना हूँ तमासा,
उड़ा फूंस छप्पर गिरी है अटारी !
नहीं धूप देखूँ नहीं छाँव देखूँ,
पड़े पाँव छाले नहीं है सवारी !!4!!
साभार: कविवर जसवीर सिंह ‘हलधर’
मो०: 9897347173
(चर्चित काव्य संग्रह-“अंतर्नाद” से )
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