Breaking News :
>>श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के नाम जुड़ी एक और उपलब्धि>>मुख्यमंत्री आदर्श ग्राम बनेगा गैरसैंण ब्लाक का सारकोट गांव>>उत्तराखण्ड के नये डीजीपी ने किया कार्यभार ग्रहण>>वनवास का गाना ‘यादों के झरोखों से’ जारी, सोनू निगम और श्रेया घोषाल ने लगाए सुर>>दिल्ली सरकार ने बुजुर्गों को दिया बड़ा तोहफा, वृद्धा पेंशन फिर से की शुरू >>भारत ने ऑस्ट्रेलिया को पहले टेस्ट मैच में 295 रनों से हराया>>उत्तर प्रदेश में अचानक उठे विवाद को लेकर राज्य सरकार का रवैया बेहद दुर्भाग्यपूर्ण- प्रियंका गांधी>>दीपम सेठ बने उत्तराखण्ड के नये डीजीपी>>पॉल्यूशन से बचने के लिए कौन सा मास्क बेहतर? यहां जानिए जवाब>>बेकाबू ट्रक की टक्कर से यूकेडी नेता समेत दो की मौत>>अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला संस्कृति व हस्तशिल की समृद्ध विरासत को देता है नयी पहचान- सीएम धामी>>देश के लिए चुनौती बने सड़क हादसे>>यूपी में नौ विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद बसपा ने किया बड़ा ऐलान >>हर्ष फायरिंग के दौरान नौ वर्षीय बच्चे को लगी गोली, मौके पर हुई मौत >>अपने सपनों के आशियाने की तलाश में हैं गायिका आस्था गिल>>केदारनाथ विधानसभा सीट पर मिली जीत से सीएम धामी के साथ पार्टी कार्यकर्ता भी गदगद>>क्या लगातार पानी पीने से कंट्रोल में रहता है ब्लड प्रेशर? इतना होता है फायदा>>प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के 116वें एपिसोड को किया संबोधित>>क्या शुरू होगा तीसरा विश्व युद्ध? व्लादिमीर पुतिन की धमकी और बढ़ता वैश्विक तनाव>>देहरादून के इस इलाके में देर रात अवैध रुप से चल रहे बार और डांस क्लब पर पुलिस ने मारा छापा
Articles

देर से न्याय मिलना न मिलने के समान

विनीत नारायण
अजमेर के मामले में 32 साल बाद आए फ़ैसले पर भी हमारी यही प्रतिक्रिया है कि ऐसे फ़ैसलों से समाज में कोई बदलाव नहीं आएगा। क्योंकि ‘जस्टिस डिलेड इज़ जस्टिस डिनाईड’ अर्थात् देर से न्याय मिलना न मिलने के समान होता है। इसलिए बात फिर वहीं अटक जाती है। महिलाओं के प्रति पुरुषों की इस पाशविक मानसिकता का क्या इलाज है? ये समस्या आज की नहीं, सदियों पुरानी है।

जहां कोलकाता की डॉक्टर के बलात्कार और नृशंस हत्या को लेकर सारे देश में निर्भया कांड की तरह भारी बवाल मच रहा है। वहीं 1992 में अजमेर में बलात्कार कांड का फ़ैसला भी पिछले हफ़्ते आया। इस फ़ैसले में 6 आरोपियों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई गई। जबकि 5 आरोपी पहले ही सज़ा काट चुके हैं और एक आरोपी ने आत्महत्या कर ली थी। अजमेर के एक प्रतिष्ठित महिला कॉलेज की 100 से अधिक छात्राओं को ब्लैकमेल करके उनसे बलात्कार किए गए। जिनकी अश्लील फ़ोटो शहर भर में फैल गई। इस कांड का मास्टर माइंड जि़ला यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष फ़ारूक़ चिश्ती था, जिसके साथ यूथ कांग्रेस का उपाध्यक्ष नफ़ीस चिश्ती और संयुक्त सचिव अनवर चिश्ती शामिल थे। इनके अलावा फ़ोटो लैब डेवलपर, पुरुषोत्तम, इक़बाल भाटी, कैलाश सोनी, सलीम चिश्ती, सोहेल गनी, ज़मीर हुसैन, अल्मास महाराज (फऱार), इशरत अली, परवेज़ अंसारी, मोइज़ुल्ला, नसीम व फ़ोटो कलर लैब का मलिक महेश डोलानी भी शामिल थे।

प्रदेश भर में भारी आंदोलन और देश भर में तहलका मचाने वाले इस कांड की जाँच राजस्थान के तत्कालीन मुख्य मंत्री भैरों सिंह शेखावत ने ख़ुफिय़ा विभाग को सौंपी। ये पूरा मामला अजमेर से प्रकाशित ‘नवज्योति’ अख़बार के युवा पत्रकार, संतोष गुप्ता की हिम्मत से बाहर आया। चौंकाने वाली बात यह थी कि इस जघन्य कांड में शामिल ज़्यादातर अपराधी ख़्वाजा गऱीब नवाज़ की मज़ार के ख़ादिम (सेवादार) थे।
इनकी हवस का शिकार हुई लड़कियाँ प्रतिष्ठित हिंदू परिवारों से थीं। जिनमें से 6 ने बदनामी के डर से आत्महत्या कर ली। दर्जनों अपनी पहचान छुपा कर जी रही हैं। क्योंकि जो जख़़्म इन्हें युवा अवस्था में मिला उसका दर्द ये आजतक भूल नहीं पाईं हैं। चूँकि इस कांड में शामिल ज़्यादातर अपराधी मुसलमान हैं और शिकार हुई लड़कियाँ हिंदू, इसलिए इसे मज़हबी अपराध का जामा पहनाया जा सकता है और वो ठीक भी है। पर हमारे देश में हर 16 मिनट में एक बलात्कार होता है। इन सब बलात्कारों में शामिल अपराधी बहुसंख्यक हिंदू समाज से होते हैं।

इतना ही नहीं, साधु, पादरी और मौलवी के वेश में, धर्म की आड़ में, अपने शिष्यों या शागिर्दों की बहू-बेटियों से दुष्कर्म करने वालों की संख्या भी ख़ासी बड़ी है। इसे राजनैतिक जामा भी पहनाया जा सकता है क्योंकि इस जघन्य कांड के मास्टर माइंड यूथ कांग्रेस के पदाधिकारी थे। पर क्या ये सही नहीं है कि देश भर में भाजपा व अन्य दलों के भी तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं के नाम लगातार बलात्कार जैसे कांडों में सामने आते रहते हैं। इसलिए महिलाओं के प्रति इस पाशविक मानसिकता को धर्म और राजनीति के चश्मे से हट कर देखने की ज़रूरत है।
दुर्भाग्य से जब कभी ऐसी कोई घटना सामने आती है तो हर राजनैतिक दल उसका पूरा लाभ लेने की कोशिश करता है। ताकि जिस दल की सरकार के कार्यकाल में ऐसा हादसा हुआ हो उसे या जिस दल के नेता या उसके परिवार जन ने ऐसा कांड किया हो तो उन्हें घेरा जा सके। जब हमारे देश में हर 16 मिनट पर एक बलात्कार होता है और बच्चियों के साथ भी होता है, उनकी नृशंस हत्या भी होती है, तो क्या वजह है कि बलात्कार की एक घटना पर तो मीडिया और राजनीति में इतना बवाल मचता है और दूसरे हज़ारों इससे बड़े मामलों की बड़ी आसानी से अनदेखी कर दी जाती है, मीडिया द्वारा भी और समाज व राजनेताओं द्वारा भी। तब ये ज़रूरी होता है जब कभी बलात्कार के किसी कांड पर बवंडर मचे तो उसे इस नज़रिए से भी देखना चाहिए। ये बवंडर समस्या के हल के लिए हो रहा है या अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेंकने के लिए।

अब प्रश्न है कि ऐसे अपराधी को क्या सजा दे जाए? अपराध शास्त्र के विशेषज्ञ ये सिद्ध कर चुके हैं कि किसी अपराधी को मृत्यु दंड जैसी सज़ा सुनाने के बाद भी उसका दूसरों पर कोई असर नहीं पड़ता और इस तरह के अपराध फिर भी लगातार होते रहते हैं। पर दूसरी तरफ़ पश्चिमी एशिया के देशों में शरीयत क़ानूनों को लागू किया जाता है जिसमें चोरी करने वाले के हाथ काट दिए जाते हैं और बलात्कार करने वाले की गर्दन काट दी जाती है। पिछले ही हफ़्ते सोशल मीडिया पर दिल दहलाने वाला एक वीडियो प्रचारित हुआ, जिसमें दिखाया है कि कैसे 6 पाकिस्तानी युवाओं को 16 साल की लडक़ी से सामूहिक बलात्कार के आरोप में उनकी सरेआम तलवार से गर्दन काट दी गई।
हादसे के अगले दिन वहाँ की अदालत ने अपना फ़ैसला सुना दिया। अक्सर इस बात का उदाहरण दिया जाता है कि शरीयत क़ानून में ऐसी सज़ाओं के चलते इन देशों में चोरी और बलात्कार की घटनाएँ नहीं होती। पर ये अर्धसत्य है। क्योंकि अक्सर ऐसी सज़ा पाने वाले अपराधी तो आम लोग होते हैं जो दुनिया के गऱीब देशों से खाड़ी के देशों में रोजग़ार के लिए आते हैं। जबकि ये तथ्य अब दुनिया से छिपा नहीं है कि खाड़ी के देशों के रईसज़ादे और शेख़ विदेशों से निकाह के नाम पर फुसला कर लाई गई सैंकड़ों लड़कियों का अपने हरम में रात-दिन शारीरिक शोषण करते हैं। फिर उन्हें नौकरानी बना देते हैं। इन सब पर शरीयत का क़ानून क्यों नहीं लागू होता?

हमारे भी वेद ग्रंथों में बलात्कारी की सजा सुझाई गयी है। बलात्कारी का लिंग काट दिया जाए। उसके माथे पर एक स्थायी चिह्न बनाकर समाज में छोड़ दिया जाए। जिसे देखते ही कोई भी समझ जाए कि इसने बलात्कार कर किसी की जिंदगी बर्बाद की है। फिर ऐसे व्यक्ति से न कोई रिश्ता रखेगा, न दोस्ती। उसका परिवार भी उसे रखना पसंद नहीं करेगा। कोई नौकरी नहीं मिलेगी। कोई धंधा नहीं कर पायेगा। भीख भी नहीं मिलेगी। कोई डॉन भी हुआ, तो उसकी गैंग उसे छोड़ देगा। क्योंकि कोई गैंग नहीं चाहेगा कि उनकी गैंग किन्नरों की गैंग कहलाये। ऐसे में बलात्कारी या तो खुद ही आत्महत्या कर लेगा या अछूत बनकर जिल्लत भरी जिंदगी जियेगा। उसका यह हाल देख समाज में किसी और की यह अपराध करने की हिम्मत ही नहीं होगी। मगर जेल भेजने या फाँसी देने से अपराध नहीं रुकेगा।

अजमेर के मामले में 32 साल बाद आए फ़ैसले पर भी हमारी यही प्रतिक्रिया है कि ऐसे फ़ैसलों से समाज में कोई बदलाव नहीं आएगा। क्योंकि ‘जस्टिस डिलेड इज़ जस्टिस डिनाईड’ अर्थात् देर से न्याय मिलना न मिलने के समान होता है। इसलिए बात फिर वहीं अटक जाती है। महिलाओं के प्रति पुरुषों की इस पाशविक मानसिकता का क्या इलाज है? ये समस्या आज की नहीं, सदियों पुरानी है। हर समाज, हर धर्म और हर देश में महिलाएँ पुरुषों के यौन अत्याचारों का शिकार होती आयी हैं। बहुत कम को न्याय मिल पाता है, इसलिए 32 साल बाद अजमेर बलात्कार कांड का फ़ैसला कोई मायने नहीं रखता।

Loading

Ghanshyam Chandra Joshi

AKASH GYAN VATIKA (www.akashgyanvatika.com) is one of the leading and fastest going web news portal which provides latest information about the Political, Social, Environmental, entertainment, sports etc. I, GHANSHYAM CHANDRA JOSHI, EDITOR, AKASH GYAN VATIKA provide news and articles about the abovementioned subject and am also provide latest/current state/national/international news on various subject.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!