Breaking News :
>>रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लाओ पीडीआर में जापानी और फिलीपीन रक्षा मंत्रियों से की मुलाकात>>ट्रक और इनोवा की टक्कर से छह युवाओं की दर्दनाक मौत के मामले में कंटनेर ड्राइवर की हुई पहचान, जल्द होगी गिरफ्तारी >>38वें राष्ट्रीय खेलों के दृष्टिगत शासन ने जारी किया संशोधित शासनादेश>>भारतीय संस्कृति और परंपराएं गुयाना में फल-फूल रही है- प्रधानमंत्री>>गंगा किनारे अश्लील वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल करने वाले युवक- युवती पर मुकदमा दर्ज >>डिजाइनर सूट पहन रकुल प्रीत सिंह ने दिखाई दिलकश अदाएं, एक्ट्रेस की हॉटनेस देख फैंस हुए घायल>>कृषि मंत्री गणेश जोशी ने 28वी आई०सी०ए०आर० क्षेत्रीय समिति-प्रथम की बैठक में वीडियो कान्फ्रेंसिग के माध्यम से किया प्रतिभाग>>….तो अब मसूरी को मिलेगी जाम के झाम से निजात>>ठंड में घुटने के दर्द से परेशान हैं? राहत पाने के लिए रोजाना 15 मिनट करें ये एक्सरसाइज>>मंत्री रेखा आर्या ने सुनी सस्ता गल्ला राशन डीलर्स की समस्याएं>>मेले में योगदान देने वाले कर्मी और छात्र -छात्राओं का हुआ सम्मान>>जलवायु संकट अभी भी मुद्दा नहीं>>उत्तराखण्ड नगर निकाय चुनाव की अधिसूचना जल्दी जारी होगी>>प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को डोमिनिका के सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार से किया गया सम्मानित>>कल से शुरू होगा भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच पहला टेस्ट, जाने मैच से जुडी बातें>>मुख्यमंत्री धामी ने सौंग बाँध परियोजना पर विस्थापन की कार्यवाही जल्दी करने के दिए निर्देश>>दूनवासियों के लिए खतरा बनी हवा, चिंताजनक आँकड़े निकलकर आए सामने>>फिल्म कांतारा : चैप्टर 1 की रिलीज डेट आउट, 2 अक्टूबर 2025 को सिनेमाघरों में दस्तक देगी फिल्म>>उत्तराखण्ड बन रहा है खिलाड़ियों के लिए अवसरों से भरा प्रदेश : खेल मंत्री रेखा आर्या>>सर्दियों में टूटने लगे हैं बाल नारियल तेल से करें मालिश, बालों को मिलेगा पर्याप्त पोषण
Articles

बिन सत्ता के नेता कैसे रहे कांग्रेस में ?

साभार : अजीत द्विवेदी
आकाश ज्ञान वाटिका, 18 जनवरी 2022, गुरूवार, देहरादून। जब भी कांग्रेस का कोई नेता पार्टी छोड़ता है तो उसे नए और पुराने की बाइनरी में देखा जाता है। इसके अलावा दूसरे पहलुओं पर देखने की जहमत नहीं उठाई जाती है। पीढिय़ों के संघर्ष की बाइनरी चूंकि बहुत सुविधाजनक है इसलिए इस पहलू से देख कर मामले को हर बार रफा-दफा कर दिया जाता है। इसमें एक फायदा यह भी है कि इस पहलू से देखने पर राहुल गाँधी के ऊपर निशाना साधना आसान हो जाता है, जो भारतीय जनता पार्टी की राजनीति के बहुत अनुकूल होता है। ऐसे नेता, जिनका कांग्रेस से मोहभंग नहीं हुआ है या वैचारिक-राजनीतिक कारणों से भाजपा में नहीं जाना चाहते हैं, लेकिन राहुल गाँधी को पसंद नहीं करते हैं या उनको लगता है कि उनका राजनीतिक करियर राहुल की वजह से खत्म हो रहा है वे कांग्रेस की कमजोरी या किसी नेता के पार्टी छोडऩे की घटना को नए और पुराने के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करते हैं और मीडिया व सोशल मीडिया को राहुल पर हमला करने का मौका मुहैया कराते हैं।

तभी जब मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस छोड़ी तो निशाने पर राहुल गाँधी आए। समूचा सोशल मीडिया ऐसी पोस्ट से भरा है, जिसमें राहुल पर हमला किया गया है। एक पुरानी तस्वीर शेयर की जा रही हैं, जिसमें मिलिंद देवड़ा के साथ जितिन प्रसाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपीएन सिंह और सचिन पायलट खड़े हैं। इनमें से पायलट के अलावा बाकी चार कांग्रेस छोड़ चुके हैं। तीन अभी भाजपा के साथ हैं और मिलिंद देवड़ा भाजपा की सहयोगी शिव सेना में शामिल हुए हैं। सचिन पायलट ने भी बगावत कर ही दी थी लेकिन उनको सिंधिया की तरह कामयाबी नहीं मिली तो वे कांग्रेस में ही रह गए और अब उसी में अपनी जगह तलाश रहे हैं। कहा जा रहा है कि राहुल गांधी की गलती थी कि उन्होंने ऐसे युवराजों को आगे बढ़ाया और उन्हें केंद्र में मंत्री बनवाया। तथ्यात्मक रूप से यह सही है कि राहुल की तरह ही ये सभी युवराज थे और इनको बहुत कम उम्र में केंद्र में मंत्री बना दिया गया था। लेकिन इन तथ्यों की अभी जो व्याख्या हो रही है वह व्याख्या 2009 में नहीं हो रही थी। तब इसे राहुल गाँधी का मास्टरस्ट्रोक कहा जा रहा था कि उन्होंने चुपचाप कांग्रेस के अंदर नेताओं की दूसरी लाइन तैयार कर दी। इसके लिए राहुल गांधी की तारीफ हो रही थी कि उन्होंने नए और युवा नेताओं को आगे किया है।

अलग अलग समय की कसौटी पर दोनों व्याख्याएं सही प्रतीत होंगी। लेकिन उस समय जो मास्टरस्ट्रोक था आज वह ऐतिहासिक भूल है। सर्वकालिक सही साबित होने वाले फैसले आमतौर पर राजनीति में कम होते हैं और व्यक्तियों के मामले में तो और भी कम होते हैं। बहरहाल, अगर कांग्रेस नेताओं के पार्टी छोडऩे के घटनाक्रम को नए और पुराने की बाइनरी में देखेंगे तो सवाल उठेगा कि अगर पार्टी के भीतर नए और पुराने का विवाद चल रहा है और राहुल गांधी पुराने नेताओं को किनारे कर रहे हैं तो फिर नए नेताओं के पार्टी छोडऩे की बात को कैसे जस्टिफाई करेंगे ? दूसरी ओर अगर यह कहा जाता है कि पुराने नेताओं ने पार्टी पर कब्जा रखा है, जिससे नए नेताओं को अवसर नहीं मिल रहा है तो फिर पुराने नेताओं के पार्टी छोडऩे का क्या तर्क होगा? ध्यान रहे पार्टी छोडऩे वालों में अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह और मिलिंद देवड़ा जैसे नए नेता हैं तो कैप्टेन अमरिंदर सिंह, गुलाम नबी आजाद, सुनील जाखड़ जैसे पुराने नेता भी हैं। इसलिए यह सिर्फ नए और पुराने का संघर्ष या पार्टी के आंतरिक मतभेद का मामला नहीं है। ये सिर्फ सतह पर दिखने वाली चीजें हैं। असली कारण कुछ और है।

असल में कांग्रेस को एकजुट रखने और नेताओं को जोड़े रखने वाली सत्ता की गोंद सूख रही है। कांग्रेस इससे पहले कभी लगातार 10 साल तक केंद्र की सत्ता से बाहर नहीं रही और न राज्यों की सत्ता से इतने लंबे समय तक बेदखल रही है। इसका नतीजा यह हुआ है कि नेताओं का धैर्य खत्म हो रहा है। कांग्रेस को न विपक्ष में रहने की आदत है और न विपक्ष की राजनीति करने का तरीका आता है। कांग्रेस छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में जाने से कई साल पहले सुष्मिता देब ने एक दिन कहा था कि कांग्रेस सत्ता में रहती है या सत्ता के इंतजार में रहती है। चूंकि इस बार सत्ता का इंतजार लंबा हो गया इसलिए कांग्रेस के नेताओं का धीरज खत्म हो गया। पहले पांच साल तक तो कांग्रेस नेता सहज रूप से विपक्ष में रहे और इंतजार करते रहे कि अगली बार अपने आप सत्ता में आ जाएंगे। जब दूसरी बार भी कांग्रेस बुरी तरह से हारी तब नेताओं की उम्मीदें टूटने लगीं और वे दूसरी तरफ संभावना तलाशने लगे। अभी स्थिति यह है कि लगातार तीसरे चुनाव में कांग्रेस के लिए अच्छी संभावना नहीं दिख रही है और ऊपर से हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में कांग्रेस चुनाव हार गई। अगर वहां भी जीती होती तो कुछ हासिल होने की उम्मीद में नेताओं का पलायन रुका रह सकता था।

दूसरा अहम कारण वैचारिक क्षरण है। राहुल गांधी देश की मौजूदा राजनीति को विचारधारा की लड़ाई के तौर पर परिभाषित करते हैं। वे बार बार कहते हैं कि भाजपा और आरएसएस के खिलाफ वे विचारधारा की लड़ाई लड़ रहे हैं। वे नफरत की विचारधारा के खिलाफ मोहब्बत की दुकान लगाने की बात करते हैं। लेकिन असलियत यह है कि कांग्रेस अपना मध्यमार्ग और समावेशी राजनीति का रास्ता छोड़ कर भाजपा के बरक्स दूसरे किस्म की कट्टरपंथी राजनीति में उतर गई है। कई नेताओं ने यह बात अलग अलग तरीके से कही है कि कांग्रेस को गैर सरकारी संगठनों यानी एनजीओ की तरह या जेएनयू के छात्र संगठन की तरह राजनीति नहीं करनी चाहिए। उस तरह की राजनीति थोड़े समय के लिए युवाओं को आकर्षित तो करती है लेकिन चुनाव में सफल नहीं हो पाती है। कांग्रेस एक समय हर तरह की विचारधारा को साथ लेकर चलने वाली पार्टी थी। वह पहले भी भाजपा का विरोध करती थी लेकिन वह वैयक्तिक और एकपक्षीय नहीं था। हालांकि पहले भी विचारधारा कभी भी कांग्रेस को बांधे रखने वाली गोंद नहीं रही है, जैसा कि भाजपा और वामपंथी पार्टियों में है। फिर भी कांग्रेस में जब हर विचार के लोगों के लिए जगह थी और उनकी बात सुनी जाती थी तब फिर भी साथ चलते रहने की गुंजाइश होती थी। अब वह गुंजाइश कम होती जा रही है। हालांकि कांग्रेस से अलग होकर जो लोग भाजपा में जा रहे हैं वहां अलग विचार रखने की तो और भी गुंजाइश नहीं है लेकिन वहां सत्ता का चुम्बक है, जो उनको खींच रहा है।

तीसरा कारण यह है कि कांग्रेस की अपनी राजनीति में बहुत स्पष्टता नहीं है। भाजपा पर नफरत फैलाने के आरोप लगाने और उसकी आलोचना करने के अलावा कांग्रेस की कोई स्पष्ट राजनीतिक दृष्टि नहीं दिखाई देती है। कूटनीति से लेकर आर्थिकी तक कोई वैकल्पिक विचार कांग्रेस ने पेश नहीं किया है। यह स्पष्ट नहीं है कि राहुल गांधी आज जिन आर्थिक नीतियों का विरोध कर रहे हैं वो नीतियां कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार की नीतियों से कैसे अलग हैं। चौथा कारण संगठन की कमजोरी है, जो एक एक करके नेताओं के निधन या संन्यास या उनके पलायन के कारण आई है। उसका कांग्रेस के पास कोई समाधान नहीं है। उसके पास न भाजपा के जैसा अनुशासित और बड़ा संगठन है और न आरएसएस के जैसी कोई ताकत है, जो सबको बांधे रहे। इसलिए नेताओं के अंदर कांग्रेस का समय लौटने का भरोसा कम होता जा रहा है।

Loading

Ghanshyam Chandra Joshi

AKASH GYAN VATIKA (www.akashgyanvatika.com) is one of the leading and fastest going web news portal which provides latest information about the Political, Social, Environmental, entertainment, sports etc. I, GHANSHYAM CHANDRA JOSHI, EDITOR, AKASH GYAN VATIKA provide news and articles about the abovementioned subject and am also provide latest/current state/national/international news on various subject.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!