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पर्यावरण संरक्षण आज के समय की बड़ी जरुरत

सुनील कुमार महला
पर्यावरण संरक्षण आज के समय की एक बड़ी आवश्यकता है, क्योंकि पर्यावरण है तो हम हैं। आज भारत विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाला राष्ट्र बन चुका है और जनसंख्या वृद्धि के साथ ही पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान दिया जाना बहुत जरूरी इसलिए हो जाता है, क्योंकि आज के समय में दुनियाभर में प्लास्टिक का उपयोग लगातार बढ़ रहा है, ऐसे में हमें वापस हमारे देश की समृद्ध संस्कृति और पारंपरिक मूल्यों की ओर लौटने की जरूरत आन पड़ी है, क्योंकि हमारे देश की सनातन संस्कृति में बहुत सी चीजें, बातें ऐसी हैं जो हमारी धरती की पारिस्थितिकी, यहां के पर्यावरण का ख्याल रखने में महत्वपूर्ण और अति अहम् भूमिका का निर्वहन वर्तमान में कर सकती है।

आज प्लास्टिक और धातु का युग है। प्लास्टिक का उपयोग तो इस धरती पर बेतहाशा रूप से बढ़ गया है और इसके दुष्परिणाम हमें लगातार देखने को मिल भी रहे हैं। आज हम घरों में भोजन करते हैं। विभिन्न कार्यक्रम यथा शादी-ब्याह में दावतों, धार्मिक उद्देश्यों के लिए सवामणी का आयोजन, पार्टी, रिसेप्शन यहां तक कि अंत्येष्टि आदि में भी मेहमानों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों, गांव वालों के लिए भोजन करने करवाने आदि के कार्यक्रम आयोजित करते हैं और अधिकतर इनमें डिस्पोजेबल गिलास, कप्स, फ्लेट्स, थाली, कटोरी आदि का उपयोग करते हैं। प्राचीनकाल में उपयोग में लाने वाले पत्तल और दोना के उपयोग को हमने लगभग भुला सा दिया है। कचौरी, समोसे, पकौड़े, चाट, प्रसादी आदि के लिए आज दोना का प्रयोग विरले ही किया जाता है। पत्तल और दोना पर्यावरण के साथी हैं। जहां प्लास्टिक प्लेट, कटोरी नष्ट नहीं होते, ये आसानी से नष्ट हो मिट्टी या खाद बन जाते हैं। कटाई के बाद बचे पत्तों का उपयोग कुम्हार बर्तन पकाने में करते हैं तो जाड़ों में अलाव के लिए यह काम आ जाते हैं।

सच तो यह है कि पत्ते के पत्तल का प्रयोग बड़े पैमाने पर धन व वातावरण की बचत करता है। पत्तल का प्रयोग साथ ही साथ वैदिक काल से चली आ रही हमारी संस्कृति को भी प्रदर्शित करता है। पत्तल और दोना के पत्ते प्रकृति में पर्यावरण के अनुकूल हैं जो साल के पत्तों से बने होते हैं। केला और साल ही नहीं अपितु सागौन, कमल व कटहल के पत्ते भी भोजन परोसने के काम में लाए जाते हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि सागौन के पत्तों का उपयोग आमतौर पर पानी पूरी के स्टॉल्स पर लोकप्रिय स्रैक परोसने के लिए पाए जाते हैं, ये पत्ते प्राकृतिक फाइबर से भरपूर होते हैं और उनके कसैले गुण उन्हें स्वस्थ और चमकती त्वचा के लिए आदर्श बनाते हैं।

जानकारों के मुताबिक, इन पत्तियों में ग्लूकोज का प्राकृतिक रूप भी होता है, जिसे खाने से भोजन का स्वाद बढ़ जाता है। जहां तक कमल के पत्तों की बात है तो इसके पत्ते दस्त के लिए एक प्राकृतिक इलाज हैं और हृदय स्वास्थ्य और शरीर में समग्र रक्त परिसंचरण में भी सुधार करते हैं। यदि हम यहां कटहल के पत्तों की बात करें तो कटहल के अंडाकार पत्ते भारत के दक्षिणी हिस्सों में सबसे अधिक उपयोग किए जाते हैं। इनका उपयोग न केवल परोसने के लिए किया जाता है, बल्कि खाना पकाने के लिए भी किया जाता है, क्योंकि भोजन को उनके अंदर लपेटा जा सकता है और स्टीम किया जा सकता है। स्टीमिंग प्रक्रिया फाइटोन्यूट्रिएंट को बाहर निकालती है और कैंसर सहित अन्य हृदय रोगों के जोखिम को कम करती है।

इसके पत्ते विषहरण का भी समर्थन करते हैं और मधुमेह को नियंत्रित करते हैं और ये एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होते हैं। प्राचीनकाल में पत्तल व दोना का उपयोग मुख्य रूप से मंदिरों में भगवान को प्रसाद चढ़ाने के लिए किया जाता रहा है। आज भी कहीं-कहीं इनका उपयोग देखने को मिल जाता है। पत्तल और दोना पत्तों का उपयोग प्राचीन काल से ही इसकी पवित्रता के लिए किया जाता रहा है। प्राचीनकाल में तो हलवाइयों की दुकानों पर चाट एवं मिठाइयां पत्तों से बने दोनो में ही ग्राहकों को बेची जाती रही हैं। गांवों में विवाह एवं सामूहिक भोज, मृत्यु भोज, नवरात्रि व किसी अन्य कार्यक्रम के दौरान भोजन दोना-पत्तलों में ही परोसे जाते रहे हैं। दोना पत्तल कागज के भी बनाए जाते हैं।

कागज के दोना पत्तल में भोजन की गुणवत्ता बरकरार रहती है। प्राचीनकाल में पारिवारिक समारोहों में पत्तल या पत्रावली पर खाना परोसने की परंपरा अक्सर देखने को मिलती थी। पहले साल या बरगद के पेड़ की सूखी चौड़ी पत्तियों पर भोजन परोसा जाता था। जानकारी देना चाहूंगा कि पत्तल व दोना को लकड़ी के छोटे-छोटे डंडों से सिला जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक के ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी प्लेटें आज भी बहुत लोकप्रिय हैं। अनुष्ठानों में पत्तल और दोना के प्रयोग को आज भी पवित्र व बेहतर माना जाता है। वर्तमान में हम कीमती धातुओं व डिस्पोजेबल प्लास्टिक से बनी थाली और कटोरियों का उपयोग करते हैं, लेकिन पुराने दिनों में सूखे पत्तों से बने क्रॉकरी को पवित्र माना जाता था और त्योहारों पर, उनका उपयोग देवी-देवताओं को भोजन कराने के लिए किया जाता था। पत्तों से बने पत्तल और दोना प्लास्टिक का एक आदर्श विकल्प है।

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Ghanshyam Chandra Joshi

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