बड़े ही उल्लास एवं उत्साह के बीच सोशल बलूनी पब्लिक स्कूल के तत्वाधान में आयोजित हुआ “इगास का भैलो” कार्यक्रम
- संस्कृतिकर्मी व वरिष्ठ पत्रकार मनोज इष्टवाल के अथक प्रयासों से सोशल बलूनी पब्लिक स्कूल के तत्वाधान में सैकड़ों दीयों के प्रकाश, 108 भैलो के प्रकाश-पुंज व ढोल-दमाऊँ, रणसिंघा की गूंज के बीच नृत्य के बीच आयोजित किया गया “इगास का भैलो”
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आकाश ज्ञान वाटिका, 14 नवम्बर 2021, रविवार, देहरादून। सोशल बलूनी पब्लिक स्कूल के तत्वावधान में आयोजित “इगास का भैलो” कार्यक्रम का बलूनी पब्लिक स्कूल देहरादून के कम्पाउण्ड में बड़े ही शानदार अन्दाज में आयोजित किया गया। जिसमें सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में विभिन्न लोक संस्कृति-प्रेमियों के बीच सैकड़ों दीये प्रकाशमान रहे व 108 भैलो के प्रकाश-पुंज में ढोल-दमाऊँ, रणसिंघा की गूंज में नृत्य हुआ व लोग खुशी में झूमते गा रहे थे,
“भैलो रे भैलो, सुख करी भैलो, धर्म को द्वारी, भैलो धर्म की खोली, भैलो जै-जस करी सूना का संगाड़। भैलो भै भैलो…. रूपा को द्वार दे भैलो, खरक दे गौड़ी-भैंस्यों को भैलो, खोड़ दे बाखर्यों को भैलो।
हर्रों-तर्यों करी, भैलो।
भैलो भै भैलो….भैलो रे भैलो।
इगास के भैलो कार्यक्रम के आयोजन के बारे में बलूनी पब्लिक स्कूल के संचालक विपिन बलूनी ने बताया कि उनका मकसद सिर्फ इगास त्यौहार के भैलो खिलवाने ही नहीं है। उनकी हार्दिक इच्छा है कि उनके स्कूल से निकले विद्यार्थियों में लोक संस्कृति के ऐसे अनूठे रूपों का मनोरंजक स्वरूप भी सामने हो तो ऐतिहासिक समग्र जानकारी भी नौनिहालों को मिले, ताकि अपनी लोक संस्कृति का ज्ञान लेकर यह अनूठा लोकपर्व हमसे चलकर आज के युवाओं व बचपन तक पहुँचे। इससे होगा यह कि इस लोकपर्व में समाहित लोक संस्कृति हमसे होती हुई अग्रसर होती रहे व युगों युगों तक यह लोकपर्व जिंदा रहे।
उन्होंने राज्य सभा सांसद व भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी के इस लोकपर्व को जिंदा रखने की पहल की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए कहा कि पलायन के साथ साथ यह इगास का यह लोकपर्व भी हमसे दूर हो रहा था, जिस पर सांसद अनिल बलूनी जी की राष्ट्रव्यापी सोच काम आई और आज इसके परिणाम सामने हैं। राजधानी देहरादून के कई स्थानों पर ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण उत्तराखंड में बड़े जोश खरोश के साथ इगास का पर्व मनाया जा रहा है।
बलूनी पब्लिक स्कूल के संचालक विपिन बलूनी ने संस्कृतिकर्मी व वरिष्ठ पत्रकार मनोज इष्टवाल के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि वह वर्ष 2016 से लगातार राजधानी देहरादून में इस लोकपर्व को आयोजित करवाते आ रहे हैं, जिसने जन-चेतना का काम किया। यही कारण है कि उनके कहने पर हमने पूरी कोशिश की है कि इस पर्व को बड़े लोक उत्साह के साथ हमारा विद्यालय परिवार प्रदेश के सभी लोगों के साथ मनायें। उन्होंने कहा कि वह सिर्फ देहरादून ही नहीं बल्कि कल कोटद्वार में भी बलूनी पब्लिक स्कूल में इसका आयोजन करने जा रहे हैं।
विगत सात बर्षों से देहरादून में अपनी “बद्री केदार सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थान” व “सहयोगी निओ विजन” के साथ मिलकर विभिन्न स्थानों में “इगास” लोक पर्व पर “इगास के भैलो” का आयोजन करते आ रहे वरिष्ठ पत्रकार व संस्कृतिकर्मी मनोज इष्टवाल ने जानकारी देते हुए कहा कि यह साल हमारे लिए सचमुच एक लोकपर्व को पुनः जिंदा करने वाला, ऐतिहासिक बर्ष कहा जा सकता है क्योंकि पहाड़ पर पलायन की मार ने जहाँ हमारे लोक समाज को छितरा कर रख दिया, वहीं धर्म और लोक संस्कृति के अनूठे पर्वों पर भी इसकी मार पड़ी, जिससे हमारे मेले व त्यौहार लगभग समाप्ति की ओर बढ़ते गए। ऐसे संक्रमण से अपने लोक त्यौहार, लोक परम्पराओं व सांस्कृतिक पर्वों के लिए हमने खड़े होने का मन बनाया। निओ विजन के गजेंद्र रमोला व गढ के साथ मिलकर बर्ष 2016 में राजधानी देहरादून के परेड ग्राउंड स्थित धरना स्थल पर हमने “इगास का भैलो” कार्यक्रम का आयोजन किया। दूसरे बर्ष हमारे साथ गढभोज के लक्ष्मण सिंह रावत जुड़ गए। लेकिन फिर तीसरे बर्ष राजनीतिक दखलंदाजी व आपसी गठजोड़ में खिंचमखींच मचती देख मैंने इन सबसे हाथ खींच लिए व हम चंद लोग मिलकर इसे आयोजित करने लगे। वर्ष 2020 में मैं इसे पुनः अपने गाँव ले गया जहाँ ग्रामीणों के सहयोग से लगभग 35 बर्ष बाद मैंने गाँव में “बग्वाली भैलो” की शुरुआत करवाई।
वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी मनोज इष्टवाल ने बताया कि कैंसर से जूझ रहे भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी जी ने उन्हें बर्ष 2017 में फोन पर इस लोकपर्व को बचाये रखने की पहल पर शाबाशी दी तो लगा यह मृत प्रायः त्यौहार आज नहीं तो कल जिंदा जरूर होगा। आज आप परिणाम देख रहे हैं कि प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस पर बड़ा निर्णय लेते हुए राजकीय अवकाश की घोषणा कर दी है। यह उत्तराखंड राज्य स्थापना से लेकर अब तक 21 बर्ष में पहला ऐसा निर्णय किसी सरकार द्वारा लिया गया है, जब किसी उत्तराखंड के लोकपर्व पर राजकीय अवकाश की घोषणा हुई हो। हम सबको मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के ऐसे निर्णय का स्वागत करना चाहिए।
इगास के भैलो लोकपर्व में 108 मशालें व ढोल, रणसिंघा, जौनसार बावर के समाजसेवी इंद्र सिंह नेगी के माध्यम से मंगवाए गए व एक भव्य आयोजन पर उत्तराखंडी जनमानस ने इस लोकपर्व के प्रकाश पुंज भैलो व नृत्य की छटा बिखेरी जो देखते ही बनती थी।
कार्यक्रम को सफल बनाने में घनश्याम चन्द्र जोशी, अरुण पांडेय, आलोक शर्मा, अवधेश नौटियाल, रमन जायसवाल, मोनू शाह, विकास कपरवान, हरीश कंडवाल मनखी, चन्द्र कैंतुरा, आशीष गुसाईं के अलावा सोशल पब्लिक बलूनी स्कूल के कर्मचारियों ने सहयोग किया।
[box type=”shadow” ]क्यों मनाई जाती है इगास-बग्वाल या बूढ़ी दिवाली
इगास-बग्वाल या बूढ़ी दिवाली क्यों मनाई जाती है, इस पर जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि मूलतः त्रेता युग में पुरुषोत्तम राम के राजतिलक से जोड़कर इन्हें देखा जाता है लेकिन उत्तराखंड खण्ड में दिवाली पुरूषोत्तम राम के राजतिलक पर मनाई जाती है जबकि इगास-बग्वाल व बूढ़ी दिवाली गढ़वाल राज्य विस्तार व कुमार राज्य विस्तार से सम्बंधित है। जिसमें सन 1627, 1635, 1735 गढ़वाल नरेश महीपति शाह, प्रदीप शाह के प्रधान सेनापति माधौ सिंह भण्डारी, सेनानायक लोधी रिखोला, दोस्त बेग मुगल सैन्य टुकड़ी नायक भीम सिंह बर्त्वाल, उदय सिंह बर्त्वाल के नेतृत्व में तिब्बत के द्वापा व ल्हासा हूण देश, हिमाचल फतेपर्वत, हाटकोटी, रोहड़ू तक व कुमाऊँ के द्वाराहाट विजय अभियानों के बाद इगास-बग्वाल मनाई गई। वही कुमाऊँ नरेश बाज बहादुर चंद द्वारा सन 1773 में पिथौरागढ़ क्षेत्र के जोहार दारमा घाटी दर्रों से तिब्बत विजय अभियान, पाली पछाऊँ के कत्यूरियों पर विजय व गढ़वाल के जूनिया गढ़ दशौली विजय के बाद माँ नन्दा को अल्मोड़ा स्थापित करने के बाद बूढ़ी दिवाली का आयोजन किया गया।[/box]