आज धरती की तीसरी कक्षा में पहुंचेगा चंद्रयान-2
नई दिल्ली, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation, ISRO) के वैज्ञानिक आज यानी सोमवार को चंद्रयान-2 को धरती की अगली कक्षा में प्रवेश कराएंगे। इसरो के मुताबिक, सोमवार को ढाई बजे से साढ़े तीन बजे के बीच Chandrayaan-2 को धरती की अगली तीसरी कक्षा में प्रवेश कराने का काम किया जाएगा। अब तक इसरो चंद्रयान-2 को धरती की दो कक्षाओं में सफलतापूर्वक प्रवेश करा चुका है।
स्पेसक्रॉफ्ट की सभी प्रक्रियाएं दुरुस्त
इसरो के बयान के मुताबिक, 22 जुलाई को चंद्रयान-2 को धरती की कक्षा में स्थापित किया गया था। इसके बाद 26 जुलाई को प्रोपल्शन सिस्टम के जरिए 883 सेकेंड की फायरिंग करके इसे दूसरी अगली कक्षा में दाखिल कराया गया था। इसरो (Indian Space Research Organization) ने कहा है कि स्पेसक्रॉफ्ट की सभी प्रक्रियाएं सुचारू रूप से चल रही हैं। धीरे-धीरे यह धरती की कक्षाओं को पार करते हुए चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करेगा।
चार ऑर्बिटल एलिवेशन से गुजरेगा
इसरो के अनुसार, वैज्ञानिकों ने महज 57 सेकेंड की ऑनबोर्ड फायरिंग के जरिए चंद्रयान-2 धरती की पहली कक्षा में स्थापित करा दिया था। चांद पर ले जाने के लिए इसको चार ऑर्बिटल एलिवेशन से गुजारा जाएगा। इस प्रक्रिया में वैज्ञानिक हर बार यान को अगली कक्षा में स्थापित करेंगे। यह प्रक्रिया छह अगस्त तक चलेगी यानी चंद्रयान-2 छह अगस्त तक पृथ्वी के चारों तरफ चक्कर लगाएगा। 14 अगस्त को इसे चांद की कक्षा की ओर धकेल दिया जाएगा।
15 मिनट होंगे चुनौतीपूर्ण
चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम सात सितंबर को चंद्रमा की सतह पर लैंड करेगा। लैंडिंग के दौरान यह लगभग 15 मिनट तक खतरे का सामना करेगा। चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने तक यह बेहद कड़ी निगरानी रहेगा। इसरो की देखरेख में अमेरिका, रूस और चीन में बने भारतीय स्पेस सेंटर के वैज्ञानिक भी चंद्रयान-2 पर नजर रखेंगे। चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने पर चंद्रयान-2 की गति में बदलाव होगा जिसपर वैज्ञानिकों की गहरी नजर रहेगी।
सफलता मिलते ही मानव मिशन में जुट जाएंगे वैज्ञानिक
चंद्रयान-2 अत्यंत चुनौतीपूर्ण और जटिल मिशन है, क्योंकि इसमें इसरो न सिर्फ मुख्य परिक्रमा-यान (ऑर्बिटर) को चंद्रमा की कक्षा में स्थापित करेगा, बल्कि लैंडर को बहुत धीरे-धीरे चंद्रमा की सतह पर उतारेगा। इस मिशन की सफलता के बाद इसरो के वैज्ञानिक 2022 में अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने की तैयारियों में जुट जाएंगे। चंद्रयान-2 को सबसे पहले 2010 या 2011 में छोड़े जाने की योजना थी। तब यह रूस के साथ संयुक्त मिशन था। रूस इस मिशन के लिए लैंडर और रोवर देने वाला था। रूसी लैंडर और रोवर के डिजाइन में खामियां आने के बाद यह मिशन आगे नहीं बढ़ पाया।
कुल 13 पेलोड के साथ यात्रा
चंद्रयान-2 तीन खंडों से बना हुआ है। स्वदेशी तकनीक से निर्मित इस यान में कुल 13 पेलोड हैं। इनमें पांच भारत के, तीन यूरोप, दो अमेरिका और एक बुल्गारिया के हैं। आठ पेलोड ऑर्बिटर में, तीन लैंडर विक्रम में जबकि दो रोवर प्रज्ञान में मौजूद रहेंगे। चंद्रयान-2 तीन खंडों से बना हुआ है। पहला ऑर्बिटर जिसमें 2,379 किलो वजनी पेलोड हैं। दूसरे खंड लैंडर का नाम विक्रम रखा गया है जिसमें 1,471 किलो वजनी पेलोड हैं। रोवर प्रज्ञान में 27 किलो वजनी दो पेलोड लगे हुए हैं।
महत्वपूर्ण अड्डा बन सकता है चांद
विक्रम चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा जहां आज तक कोई नहीं पहुंचा है। चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव न केवल दुनिया से अपरिचित है, बल्कि काफी जटिल भी है। माना जाता है कि चंद्रमा के इस हिस्से में पानी के साथ खनिज भंडार भी हो सकते हैं। इसी कारण भारत के इस अंतरिक्ष अभियान पर दुनिया की निगाहें लगी हैं। वहां सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए भी पर्याप्त अवसर मौजूद हैं। यही वजह है कि वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा सुदूर अंतरिक्ष अभियानों के लिए एक महत्वपूर्ण अड्डा बन सकता है।
इसलिए चांद पर लगी नजरें
चांद पर यूरेनियम, टाइटेनियम आदि बहुमूल्य धातुओं के भंडार हैं। वहां सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए भी पर्याप्त अवसर मौजूद हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि चंद्रमा पर मौजूद बहुमूल्य खनिज किसी दिन पृथ्वी के काम भी आ सकते हैं। यही नहीं चंद्रमा के विकास को समझ कर हम पृथ्वी की उत्पत्ति की गुत्थियों को भी सुलझा सकते हैं। समझा जाता है कि करीब 4.51 अरब वर्ष पहले मंगल के आकार के एक पिंड के पृथ्वी से टकराने से उत्पन्न मलबे से चंद्रमा की उत्पत्ति हुई थी।
चंद्रयान-1 ने रचा था इतिहास
साल 2008 में भारत ने चंद्रयान-1 (Chandrayaan-2) भेजा था। यह ऑर्बिटर मिशन था, जिसने 10 महीने तक चांद की परिक्रमा करते हुए प्रयोगों को अंजाम दिया था। चांद पर पानी की खोज का श्रेय इसी अभियान को जाता है। चंद्रयान-2 इसी खोज को आगे बढ़ाते हुए वहां पानी और अन्य खनिजों के प्रमाण जुटाएगा। चंद्रयान-2 इसलिए भी खास है, क्योंकि इसके लैंडर-रोवर चांद के दक्षिणी ध्रुव के जिस हिस्से पर उतरेंगे, अब तक वहां किसी देश का यान नहीं उतरा है।