आकाश ज्ञान वाटिका। 25 दिसम्बर 2019, देहरादून।
अटल जी को श्रद्धांजलि
वचनों कर्मों औ वाणी में, जिनके बसते थे रघुनंदन ।
क्यों धरा छोड़ कर चले गए, जन जन में फैला है कृन्दन ।।
यू एन ओ जैसे मंचों पर हिंदी का मान बढ़ाया था,
निर्वाह किया था राज धर्म जन जन विस्वास जगाया था,
तुम भूख गरीबी से लड़ कर बन गए काव्य सृजक ज्ञानी,
तुम भारत भू के गौरव हो तुम नए राष्ट्र के अभियानी,
संसद में काम किया ऐसे ज्यों सांपों बीच रहे चंदन ।
क्यों धरा छोड़ कर चले गए जन जन में फैला है कृन्दन ।।1।।
आवाज अटल की पहचानी जे पी ने सत्य विचारों में,
माँ बेटे का तूफान थाम पहुचे संसद गलियारों में,
आपात काल में जेल गए ज्यों रवी छुपा हो बरगद में,
जनता का फिर आशीष मिला तब अटल विराजे संसद में,
निरपेक्ष भाव से काम किया सब तोड़े सम्प्रदाय बंधन ।
क्यों धरा छोड़ कर चले गए जन जन में फैला है कृन्दन ।।2।।
तुम लोकतंत्र की थे मिसाल ना रुकी कभी जो घेरे में,
तुम राजनीति के थे मसाल बांटा प्रकाश अंधेरे में,
तुम समता के सौदागर थे तुम ही भूखों की अर्जी थे,
कर्मों से दीन दयाल और श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे,
परिवार वाद से छुटकारे का किया देश में प्रबंधन ।
क्यों धरा छोड़ कर चले गए जन जन में फैला है कृन्दन ।।3।।
बी जे पी का निर्माण किया कीचड़ में कमल खिलाया था,
संयम से देश चलाने का गुर चेलों को सिखलाया था,
तुम स्वयं त्याग की मूरत थे, तुम दीपक हठी जवानी के,
तुम शब्दों के जादूगर थे रूपक थे हिंदी वाणी के,
हलधर” से कलम सिपाही का स्वीकार करो श्रद्धा वंदन ।
क्यों धरा छोड़कर चले गए जन जन में फैला है कृन्दन ।।4।।
साभार: कविवर जसवीर सिंह “हलधर”, देहरादून
उत्तर प्रदेश में आगरा जनपद के प्राचीन स्थान बटेश्वर के मूल निवासी पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी, मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में अध्यापक थे। वहीं शिन्दे की छावनी में २५ दिसम्बर १९२४ को ब्रह्ममुहूर्त में उनकी सहधर्मिणी कृष्णा वाजपेयी की कोख से अटल जी का जन्म हुआ था। पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में अध्यापन कार्य तो करते ही थे इसके अतिरिक्त वे हिन्दी व ब्रज भाषा के सिद्धहस्त कवि भी थे। पुत्र में काव्य के गुण वंशानुगत परिपाटी से प्राप्त हुए। महात्मा रामचन्द्र वीर द्वारा रचित अमर कृति “विजय पताका” पढ़कर अटल जी के जीवन की दिशा ही बदल गयी। अटल जी की बी० ए० की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज (वर्तमान में लक्ष्मीबाई कालेज) में हुई। छात्र जीवन से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और तभी से राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे।
कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एम० ए० की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उसके बाद उन्होंने अपने पिताजी के साथ-साथ कानपुर में ही एल० एल० बी० की पढ़ाई भी प्रारम्भ की लेकिन उसे बीच में ही विराम देकर पूरी निष्ठा से संघ के कार्य में जुट गये। डॉ० श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के निर्देशन में राजनीति का पाठ तो पढ़ा ही, साथ-साथ पाञ्चजन्य, राष्ट्रधर्म, दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन का कार्य भी कुशलता पूर्वक करते रहे।
अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक कवि भी थे। मेरी इक्यावन कविताएँ अटल जी का प्रसिद्ध काव्यसंग्रह है। वाजपेयी जी को काव्य रचनाशीलता एवं रसास्वाद के गुण विरासत में मिले हैं। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत में अपने समय के जाने-माने कवि थे। वे ब्रजभाषा और खड़ी बोली में काव्य रचना करते थे। पारिवारिक वातावरण साहित्यिक एवं काव्यमय होने के कारण उनकी रगों में काव्य रक्त-रस अनवरत घूमता रहा है। उनकी सर्व प्रथम कविता ताजमहल थी। इसमें शृंगार रस के प्रेम प्रसून न चढ़ाकर “एक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल, हम गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मजाक” की तरह उनका भी ध्यान ताजमहल के कारीगरों के शोषण पर ही गया। वास्तव में कोई भी कवि हृदय कभी कविता से वंचित नहीं रह सकता। अटल जी ने किशोर वय में ही एक अद्भुत कविता लिखी थी, ”हिन्दू तन-मन हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय”, जिससे यह पता चलता है कि बचपन से ही उनका रुझान देश हित की तरफ था।
सर्वतोमुखी विकास के लिये किये गये योगदान तथा असाधारण कार्यों के लिये वर्ष 2015 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
मेरा परिचय – अटल बिहारी वाजपेई
हिन्दू तन–मन, हिन्दू जीवन, रग–रग हिन्दू मेरा परिचय !
मैं शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार–क्षार।
डमरू की वह प्रलय–ध्वनि हूँ, जिसमे नचता भीषण संहार।
रणचंडी की अतृप्त प्यास, मै दुर्गा का उन्मत्त हास।
मैं यम की प्रलयंकर पुकार, जलते मरघट का धुँआधार।
फिर अंतरतम की ज्वाला से जगती मे आग लगा दूँ मैं।
यदि धधक उठे जल, थल, अंबर, जड चेतन तो कैसा विस्मय ?
हिन्दू तन–मन, हिन्दू जीवन, रग–रग हिन्दू मेरा परिचय !
मैं अखिल विश्व का गुरु महान्, देता विद्या का अमरदान।
मैने दिखलाया मुक्तिमार्ग, मैने सिखलाया ब्रह्मज्ञान।
मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे वेदों की ज्योति प्रखर।
मानव के मन का अंधकार, क्या कभी सामने सका ठहर ?
मेरा स्वर्णभ मे घहर–घहर, सागर के जल मे छहर–छहर।
इस कोने से उस कोने तक, कर सकता जगती सोराभ्मय।
हिन्दू तन–मन, हिन्दू जीवन, रग–रग हिन्दू मेरा परिचय !
मैंने छाती का लहू पिला, पाले विदेश के क्षुधित लाल।
मुझको मानव में भेद नही, मेरा अन्तस्थल वर विशाल।
जग से ठुकराए लोगों को लो मेरे घर का खुला द्वार।
अपना सब कुछ हूँ लुटा चुका, फिर भी अक्षय है धनागार।
मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयों का वह राजमुकुट।
यदि इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरीट तो क्या विस्मय ?
हिन्दू तन–मन, हिन्दू जीवन, रग–रग हिन्दू मेरा परिचय !
होकर स्वतन्त्र मैने कब चाहा है कर लूँ सब को गुलाम ?
मैंने तो सदा सिखाया है करना अपने मन को गुलाम।
गोपाल–राम के नामों पर कब मैने अत्याचार किया ?
कब दुनिया को हिन्दू करने घर–घर मे नरसंहार किया ?
कोई बतलाए काबुल मे जाकर कितनी मस्जिद तोडी ?
भूभाग नहीं, शत–शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय।
हिन्दू तन–मन, हिन्दू जीवन, रग–रग हिन्दू मेरा परिचय !
मैं एक बिन्दु परिपूर्ण सिन्धु है यह मेरा हिन्दु समाज।
मेरा इसका संबन्ध अमर, मैं व्यक्ति और यह है समाज।
इससे मैने पाया तन–मन, इससे मैने पाया जीवन।
मेरा तो बस कर्तव्य यही, कर दू सब कुछ इसके अर्पण।
मैं तो समाज की थाति हूँ, मैं तो समाज का हूं सेवक।
मैं तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर सकता बलिदान अभय।
हिन्दू तन–मन, हिन्दू जीवन, रग–रग हिन्दू मेरा परिचय !
~ अटल बिहारी वाजपेई
Atal Bihari Vajpayee was an Indian politician, statesman and a poet who served three terms as the Prime Minister of India, first for a term of 13 days in 1996, then for a period of 13 months from 1998 to 1999, and finally, for a full term from 1999 to 2004. A member of the Bharatiya Janata Party (BJP), he was the first Indian prime minister who was not a member of the Indian National Congress party to have served a full five-year term in office.
He was a member of the Indian Parliament for over five decades, having been elected to the Lok Sabha, the lower house, ten times, and twice to the Rajya Sabha, the upper house. He served as the Member of Parliament for Lucknow until 2009 when he retired from active politics due to health concerns. Vajpayee was among the founding members of the Bharatiya Jana Sangh (BJS), of which he was the president from 1968 to 1972. The BJS merged with several other parties to form the Janata Party, which won the 1977 general election. Vajpayee became the Minister of External Affairs in the cabinet of Prime Minister Morarji Desai. He resigned in 1979, and the Janata alliance collapsed soon after. The erstwhile members of the BJS formed the BJP in 1980, with Vajpayee as its first president.
During his tenure as prime minister, India carried out the Pokhran-II nuclear tests in 1998. Vajpayee sought to improve diplomatic relations with Pakistan, travelling to Lahore by bus to meet with Prime Minister Nawaz Sharif. After the 1999 Kargil War with Pakistan, he sought to restore relations through engaging with President Pervez Musharraf, inviting him to India for a summit at Agra.
He was conferred India’s highest civilian honour, the Bharat Ratna, by the President of India, Pranab Mukherjee in 2015. The administration of Narendra Modi declared in 2014 that Vajpayee’s birthday, 25 December, would be marked as Good Governance Day. He died on 16 August 2018 due to an age-related illness.
[highlight]हम सबके परम आदरणीय, बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी,
भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी को उनकी जयन्ती पर शत शत नमन ।[/highlight]