अपनी संस्कृति व कला के प्रचार प्रसार एवं संरक्ष्ण के लिए हर सम्भव प्रयास करें
अपनी संस्कृति को जानो,
सुख इसी में है ये मानो ।
जिस तरह हमारा देश, भारत अपनी अनुपम संस्कृति व कला के लिए विश्व में श्रेष्ठ स्थान रखता है ठीक उसी तरह देवभूमि उत्तराखण्ड अपनी पवित्र संस्कृति व कला के लिए देश भर में प्रसिद्ध है। देवभूमि उत्तराखण्ड पहाड़ व गाँवों का प्रदेश है जिसकी कला व संस्कृति अन्य प्रान्तों से भिन्न है । गाँवों का रहन-सहन अपने आप में सरल, सौम्य व अत्यन्त पवित्र होता है । गाँवों में लोग अपना जीवन यापन पूरे समय तक बड़े ही शादगी व पवित्रता के साथ करते हैं । पहाड़ की खुशनुमा वादियों में जब एक शिशु जन्म लेता है तब से ही शुरू हो जाता है स़स्कारों का शिलशिला । घर, परिवार, पड़ोस, गाँव, समाज सब झूम उठते है उसकी एक ही किलकारी में । लगता ऐसा है किः
फूल बरसा इक माँ के आँचल में,
पर महक उठा वह सारा इलाका ।
मंद-सुगन्ध, शीतल पवन अपने संग
बहा ले गयी खुशियों की एक लहर ।
जिससे महका हर घर आँगन,
बिन पूछे जाति – पाति व धरम ।
खुशियों के इस पल में फिर चलता रहा बधाइयों का सिलसिला, जिससे अपनत्व का एक श्रेष्ठ स्तम्भ स्वतः ही खड़ा हो जाता है । पहाड़ का प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे की खुशियों व प्रगति के लिए हमेशा प्रार्थना करता रहता है । कोई किसी को तनिक भी दुःखी व भूखा नहीं देख सकता है । किसी को पीड़ा देना तो हमारी संस्कृति को कभी भी मंजूर नहीं हो सकता है। बड़े-बुजुर्गों को देख स्वतः ही झुक जाती हैं बेटे, बहु-बेटियों व बच्चों की निगाहें जो दर्शाता है बड़ों के प्रति छोटों का अटूट सम्मान व बदले में मिलता है छोटों को बड़ों का अटूट प्यार । तीज-त्यौहार बड़े ही प्रेम व श्रद्धा के साथ मनाये जाते हैं जो बढ़ावा देते हैं आपसी भाईचारे को ।
आज डर इस बात का है कि कहीं पाश्चात्य संस्कृति की छाया हमारी संस्कृति व जीवन-शैली को प्रभावित न कर दें । इसलिए यह जरूरी है कि हम अपनी संस्कृति व कला का प्रचार प्रसार करें तथा इसके संरक्ष्ण के लिए हर सम्भव प्रयास करें ।