“ऐसा वातावरण कहाँ है” : जसवीर सिंह ‘हलधर’
जीवन में मधु घोल सके जो,
ऐसा वातावरण कहाँ है।
जीवन में मधु घोल सके जो,
ऐसा वातावरण कहाँ है।
सामाजिक चिंतन वाला भी,
अब नैतिक जागरण कहाँ है।
लोभ मोह की व्याधि न छूटे,
अंतस के सब धागे टूटे।
सबके संरक्षण वाला वो,
रक्षा का आवरण कहाँ है।
समाजिक चिंतन वाला भी,
अब नैतिक जागरण कहाँ है।।१।।
कभी कभी खुद से भी बोलो,
भीतर का वातायन खोलो,
खोजो जग के निर्माता का।
धरती पर भी चरण कहाँ है ।
सामाजिक चिंतन वाला भी,
अब नैतिक जागरण कहाँ है।।२।।
भीड़ भाड़ के कोलाहल में,
भोग विलासा के जंगल में।
सादा जीवन जीने वाला,
ऐसा मानक वरण कहाँ है।
सामाजिक चिंतन वाला भी,
अब नैतिक आचरण कहाँ है।।३।।
साथ रहे उसकी परछाई,
जमे नहीं अंतस पर काई।
जीवन के इस महासमर में,
योग ध्यान अभिकरण कहाँ है।
सामाजिक चिंतन वाला भी,
अब नैतिक आचरण कहाँ है।।४।।
थोड़ी गरिमा थोड़ा यश हो,
ज्ञान ध्यान से भरा कलश हो।
मोह जाल से दूर रखे जो,
“हलधर” पथ संभरण कहाँ है।
सामाजिक चिंतन वाला भी,
अब नैतिक आचरण कहाँ है।।५।।
साभार: जसवीर सिंह “हलधर”
मो० : 9897346173