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20वें कारगिल विजय दिवस पर देश के वीर सपूतों को शत शत नमन

आओ झुककर सलाम करें उनको जिनके हिस्से में ये मुकाम आया,
खुशनसीब है वो खून का कतरा जो देश के काम आया।

कारगिल विजय दिवस स्वतंत्र भारत के लिये एक महत्वपूर्ण दिवस है। इसे हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है। कारगिल युद्ध लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई को उसका अंत हुआ। इसमें भारत की विजय हुई। इस दिन कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों के सम्मान हेतु मनाया जाता है।
यह दिन है उन शहीदों को याद कर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पण करने का, जो हँसते-हँसते मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। यह दिन समर्पित है उन्हें, जिन्होंने अपना आज हमारे कल के लिए बलिदान कर दिया।
इस युद्ध का कारण था बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों व पाक समर्थित आतंकवादियों का लाइन ऑफ कंट्रोल यानी भारत-पाकिस्तान की वास्तविक नियंत्रण रेखा के भीतर प्रवेश कर कई महत्वपूर्ण पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लेह-लद्दाख को भारत से जोड़ने वाली सड़क का नियंत्रण हासिल कर सियाचिन-ग्लेशियर पर भारत की स्थिति को कमजोर कर हमारी राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा पैदा करना।
पूरे दो महीने से ज्यादा चले इस युद्ध में भारतीय थलसेना व वायुसेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल पार न करने के आदेश के बावजूद अपनी मातृभूमि में घुसे आक्रमणकारियों को मार भगाया था। स्वतंत्रता का अपना ही मूल्य होता है, जो वीरों के रक्त से चुकाया जाता है।

करगिल दिवस पर शहीदों को समर्पित

उतुंग करगिल के रण में क्या भीषण युद्ध नजारा था ।
दुश्मन जिंदा ना बच पाये बस ये अभियान हमारा था ।।

शांति वार्ता की बस में शत्रु भारत में घुस बैठे,
वीर अटल मक्कार मुसर्रफ के झांसे में फस बैठे,
सरकारी गहमा गहमी में यूँ समय बीतता चला गया,
नापाक पड़ौसी के हांथों भारत महान फिर छला गया,
जब फौजों को भनक लगी शत्रु ने सरहद पार किया,
चोटी पर जगह बना बैठा और चौकी पर अधिकार किया,
तब फोजों को फरमान मिला अब मारो इस पाखंडी को,
मदिरा शोणित की पिला पिला खुस करो काल रण चंडी को,
दुश्मन का लाभ निराला था चोटी का उसे सहारा था ।
उतुंग करगिल के रण में क्या भीषण युद्ध नजारा था ।।

दुश्मन चोटी पर काबिज था सेना घाटी में जमी हुई,
कैसे हिमगिरी पर कब्जा हो जनरल की सांसें थमी हुई,
चींटी भाँती सैनिक टुकड़ी तोपो को ले के चढ़ती थी,
तब ताप शून्य से नीचे था ऊँचे पर सांस उखड़ती थी,
गोलियां बरसती थी रण में हम भारत माता गाते थे,
गोले नीचे से दाग दाग दुश्मन के होश उड़ाते थे,
बाहे गुरु जय बोले था कोई बोले था जय जय शंकर,
तब हर हर महादेव नारों से गूंजे नगपति के कंकर,
उस बर्फानी मौसम ने उगला शोलों का यलगरा था ।
उतुंग करगिल के रण में क्या भीषण युद्ध नजारा था ।।

बफोर्स चढ़ी जब पर्वत पर गोले बरसाना शुरू किया,
उठ गई लपट हिम खंडों में तूफान मचाना शुरू किया,
इस तरह घनकती थी तोपें क्षण क्षण गोले बरसाती थी,
अरि खबरदार तब तक बारूदी वज्र गिरातीं थी,
तोपों से गोले दाग दाग दहलाया दुष्ट बवाली को,
शोणित की मदिरा पिला पिला कर दिया तुष्ट रण काली को,
नभ थल सेना थी एक साथ अस्त्रों शास्त्रों का जाल बिछा,
बंकर में दुश्मन चीख उठा हाय अल्ला हमारी जान बचा ,
तब लहू लुहान हुआ हिम गिरि दिखता शोणित फब्बारा था ।
उतुंग करगिल के रण में क्या भीषण युद्ध नजारा था ।।

चिड़ियों पर बाज झपटने सा भारत के सैनिक टूट पड़े,
अल्ला अल्ला की चीख उठी हथियार छोड़ हो गए खड़े,
नभ थल सेना ने मिला हाथ प्रलयंकर अस्त्र प्रहार किए,
बंकर के अंदर छुपे हुए सारे दुश्मन संहार किये,
दहल उठी पूरी घाटी इस तरह युद्ध का हुआ अंत,
नदियां तरुबर पक्षी रोये खुद साक्ष्य बना अम्बर अनंत,
इस भीषण युद्ध विभीषिका में हमने भी लाल गंवाए है,
कुछ ऐसे वीर बाँकुरे थे ना घर तक वापस आये है,
योद्धा का शव आँगन आया दो शब्द गगन में डोल रहे,
बिटिया तुतला पूंछ रही मेले पाप क्यों नहीं बोल रहे,
बच्ची की करुण पुकारें सुन टूटा नभ से कोई तारा था ।
उतुंग करगिल के रण में क्या भीषण युद्ध नजारा था ।।

भारत ने जीता युद्ध मगर हमने बेटों को हारा था ।
थर थर कांपी मेरी छाती जब योद्धा अंगन उतारा था ।।

इस भीषण युद्ध विभीषिका में हमने भी लाल गवाए है,
कुछ ऐसे वीर बाँकुरे थे जो कांधे पर घर आये है,
आँगन में अर्थी रखी देख दो शब्द गगन में डोल रहे,
बिटिया तुतला कर पूंछ रही मेले पापा कूँ नां बोल लहे,
बच्ची की करुण पुकारों से टूटा नभ से इक तारा था ।
भारत ने जीता युद्ध मगर हमने बेटों को हारा था ।।1
माँ अपनी छाती पीट पीट सर मार रही थी धरती पर,
पत्नी भी होश गवा बैठी गिर पड़ी पती की अर्थी पर,
बापू धीरे से सुबक रहे अब राजू मेरा रूठ गया,
भाई भभक भभक रोता अब बाजू मेरा टूट गया,
नदि भाँती बिलख रही विधवा का छूटा एक किनारा था।
भारत ने जीता युद्ध मगर हमने बेटों को हारा था ।।

चूड़ी टूटी बिछुए उतरे सिंदूर भाल का पिघल गया,
पायल टूटी कंगने उतरे गल मंगल बंधन निकल गया,
कोने में बहना बिलख रही रक्षा का बंधन टूट गया,
चाची तायी बूआ रोयीं अब कुल का नंदन रुठ गया,
रोये बचपन के सब साथी क्या यार हमारा प्यारा था ।
भारत ने जीता युद्ध मगर हमने बेटों को हारा था ।।

अंबर में बदरी घिर आयी शायद वर्षा थी आने को ,
व्याकुल दिखती मुझको वो भी आँखों से नीर बहाने को ,
मेघो में दामिनी चमक चमक यूँ तड़ित चाप दर्षाती थी ,
मानो योद्धा बलिदानों पर वो दमक दमक हर्षाती थी ,
बूढ़ी दादी रो रो कहती मेरा तो वही सहारा था ।
भारत ने जीता युद्ध मगर हमने बेटों को हारा था ।।

आदेश मांगती थी सेना आगे बढ़ने को घाटी में,
हम अवसर पुनः गवां बैठे समझौतों की परिपाटी में,
ये कैसी जीत हुई “हलधर” शोणित सस्ते में बहा दिया,
पीओके हासिल करने का फिर मौका हमने गवा दिया,
यदि अटल फैसला ले ले लेते पूरा कश्मीर हमारा था ।
भारत ने जीता युद्ध मगर हमने बेटों को हारा था ।।
                          साभार: जसवीर सिंह “हलधर”

हिमालय से ऊँचा था साहस जिनका
इस युद्ध में हमारे लगभग 527 से अधिक वीर योद्धा शहीद व 1300 से ज्यादा घायल हो गए, जिनमें से अधिकांश अपने जीवन के 30 वसंत भी नही देख पाए थे। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है।
कैप्टन विक्रम बत्रा: ‘ये दिल माँगे मोर’ – हिमाचलप्रदेश के छोटे से कस्बे पालमपुर के 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा उन बहादुरों में से एक हैं, जिन्होंने एक के बाद एक कई सामरिक महत्व की चोटियों पर भीषण लड़ाई के बाद फतह हासिल की थी।
यहाँ तक कि पाकिस्तानी लड़ाकों ने भी उनकी बहादुरी को सलाम किया था और उन्हें ‘शेरशाह’ के नाम से नवाजा था। मोर्चे पर डटे इस बहादुर ने अकेले ही कई शत्रुओं को ढेर कर दिया। सामने से होती भीषण गोलीबारी में घायल होने के बावजूद उन्होंने अपनी डेल्टा टुकड़ी के साथ चोटी नं. 4875 पर हमला किया, मगर एक घायल साथी अधिकारी को युद्धक्षेत्र से निकालने के प्रयास में माँ भारती का लाड़ला विक्रम बत्रा 7 जुलाई की सुबह शहीद हो गया। अमर शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को अपने अदम्य साहस व बलिदान के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैनिक पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।
कैप्टन अनुज नायर : 17 जाट रेजिमेंट के बहादुर कैप्टन अनुज नायर टाइगर हिल्स सेक्टर की एक महत्वपूर्ण चोटी ‘वन पिंपल’ की लड़ाई में अपने 6 साथियों के शहीद होने के बाद भी मोर्चा सम्भाले रहे। गम्भीर रूप से घायल होने के बाद भी उन्होंने अतिरिक्त कुमुक आने तक अकेले ही दुश्मनों से लोहा लिया, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना इस सामरिक चोटी पर भी वापस कब्जा करने में सफल रही।
इस वीरता के लिए कैप्टन अनुज को मरणोपरांत भारत के दूसरे सबसे बड़े सैनिक सम्मान ‘महावीर चक्र’ से नवाजा गया।
मेजर पद्मपाणि आचार्य : राजपूताना राइफल्स के मेजर पद्मपाणि आचार्य भी कारगिल में दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए। उनके भाई भी द्रास सेक्टर में इस युद्ध में शामिल थे। उन्हें भी इस वीरता के लिए ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।
लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय : 1/11 गोरखा राइफल्स के लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय की बहादुरी की इबारत आज भी बटालिक सेक्टर के ‘जुबार टॉप’ पर लिखी है। अपनी गोरखा पलटन लेकर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में ‘काली माता की जय’ के नारे के साथ उन्होंने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। अत्यंत दुर्गम क्षेत्र में लड़ते हुए मनोज पांडेय ने दुश्मनों के कई बंकर नष्ट कर दिए।
गम्भीर रूप से घायल होने के बावजूद मनोज अंतिम क्षण तक लड़ते रहे। भारतीय सेना की ‘साथी को पीछे ना छोडने की परम्परा’ का मरते दम तक पालन करने वाले मनोज पांडेय को उनके शौर्य व बलिदान के लिए मरणोपरांत ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।
कैप्टन सौरभ कालिया : भारतीय वायुसेना भी इस युद्ध में जौहर दिखाने में पीछे नहीं रही, टोलोलिंग की दुर्गम पहाडियों में छिपे घुसपैठियों पर हमला करते समय वायुसेना के कई बहादुर अधिकारी व अन्य रैंक भी इस लड़ाई में दुश्मन से लोहा लेते हुए शहीद हुए। सबसे पहले कुर्बानी देने वालों में से थे कैप्टन सौरभ कालिया और उनकी पैट्रोलिंग पार्टी के जवान। घोर यातनाओं के बाद भी कैप्टन कालिया ने कोई भी जानकारी दुश्मनों को नहीं दी।
स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा : स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा का विमान भी दुश्मन गोलीबारी का शिकार हुआ। अजय का लड़ाकू विमान दुश्मन की गोलीबारी में नष्ट हो गया, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और पैराशूट से उतरते समय भी शत्रुओं पर गोलीबारी जारी रखी और लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। 
फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता: इस युद्ध में पाकिस्तान द्वारा युद्धबंदी बनाए गए। वीरता और बलिदान की यह फेहरिस्त यहीं खत्म नहीं होती। भारतीय सेना के विभिन्न रैंकों के लगभग 30,000 अधिकारी व जवानों ने ऑपरेशन विजय में भाग लिया।
युद्ध के पश्चात पाकिस्तान ने इस युद्ध के लिए कश्मीरी आतंकवादियों को जिम्मेदार ठहराया था, जबकि यह बात किसी से छिपी नहीं थी कि पाकिस्तान इस पूरी लड़ाई में लिप्त था। बाद में नवाज शरीफ और शीर्ष सैन्य अधिकारियों ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से पाक सेना की भूमिका को स्वीकार किया था। यह युद्ध हाल के ऊँचाई पर लड़े जाने वाले विश्व के प्रमुख युद्धों में से एक है। सबसे बड़ी बात यह रही कि दोनों ही देश परमाणु हथियारों से संपन्न हैं।

‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा।
जय हिन्द। जय जवान।

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Ghanshyam Chandra Joshi

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