उत्तर प्रदेश की योगी सरकार का बुलडोज़र मामले में सुप्रीम कोर्ट को जवाब
आकाश ज्ञान वाटिका, 22 जून 2022, बुधवार, लखनऊ। भाजपा की निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा के बयान के बयान के बाद उत्तर प्रदेश के कई शहरों में भड़की हिंसा के आरोपितों की संपत्ति पर बुलडोजर चलाने की कार्रवाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई जमीयत उलेमा-ए-हिंद की अर्जी पर हुई सुनवाई के बाद आज उत्तर प्रदेश सरकार ने अपना जवाब दाखिल किया।
उत्तर प्रदेश सरकार ने जवाब में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि हाल ही में राज्य में की गई संपत्तियों को उचित प्रक्रिया के बाद गिराया गया था और इसका दंगा करने के आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने से कोई लेना-देना नहीं था। सरकार ने अलग-अलग कानूनों के अनुसार दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई की है। इसके अलावायूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से यह भी कहा है कि याचिकाकर्ता जमीयत उलमा-ए-हिंद ने चुनिंदा मीडिया रिपोर्टों को चुना है और उनके द्वारा लगाए गए आरोप झूठे हैं। इसने SC से याचिका खारिज करने का भी आग्रह किया है।
विदित रहे कि प्रदेश में बीते दो जुमा को भड़की हिंंस के आरोपितों की संपत्तियों पर भी बुलडोजर चलाया गया। सरकार की इस कार्रवाई पर रोक लगाने के लिए सीधा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। जमीयत उलेमा-ए-हिंद की अर्जी पर की न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ सुनवाई की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर हुई सुनवाई के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार से तीन दिनों में जवाब दाखिल करने को कहा था। इसके साथ ही बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि सभी कार्रवाई कानूनी दायरे में होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा था कि ऐसी भी रिपोर्ट हैं कि यह बदले की कार्रवाई है। अब यह कितनी सही है, हमें नहीं मालूम। यह सभी रिपोर्ट्स सही भी हो सकती हैं और गलत भी। अगर इस तरह के विध्वंस किए जाते हैं तो कम से कम जो कुछ किया जा रहा है, वह कानून की प्रक्रिया के अनुसार होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से की गई इस टिप्पणी पर योगी आदित्यनाथ सरकार की ओर से तुषार मेहता ने कहा था कि, क्या अदालत प्रक्रिया का पालन करने वाले निर्देश जारी कर सकती है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम नोटिस जारी कर रहे हैं। आप तीन दिनों में जवाब दाखिल करें। आप सुनिश्चित करें कि इस दौरान कुछ भी अनहोनी न हो। जमियत की ओर से वकील सीयू सिंह ने जवाबदेही तय करने की मांग की। उन्होंने कहा कि कोर्ट तुंरत कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की थी। कानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा था कि रेगुलेशन आफ बिल्डिंग आपेरशन एक्ट के मुताबिक बिना बिल्डिंग मालिक को अपनी बात रखने का मौका दिए कोई कार्रवाई नहीं हो सकती है।
इस पर जस्टिस बोपन्ना ने कहा कि नोटिस जरूरी होता है, हमें इसकी जानकारी है। उन्होंने कहा था कि यूपी अर्बन प्लानिंग एंड डिवेलपमेंट एक्ट, 1973 के मुताबिक भी बिल्डिंग मालिक को 15 दिन का नोटिस और अपील दायर करने के लिए 30 दिन का समय देना जरूरी है। नियम में तो 15 दिनों से 40 दिनों तक का समय देने की बात नियम में कही गई है, जिसमें कम से कम 15 दिनों तक किसी भी कार्रवाई करने से पहले इंतजार करना होता है।