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प्रधानमंत्री ने ‘राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस’ के मौके पर ग्राम प्रधानों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से की बातचीत – “राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस” पर एक विशेष आलेख

[box type=”shadow” ]मा० प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने ‘राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस’ के मौके पर आज २४ अप्रैल २०२० सुबह ११ बजे देश के सभी पंचायतों के ग्राम प्रधानों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से बातचीत की। इसअवसर पर उन्होंने जम्मू-कश्मीर के एक गाँव से वार्तालाप की शुरुआत की। तत्पश्चात उन्होंने बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, असम के ग्राम प्रधानों से भी बातचीत कर सामाजिक दूरी बनाये रखने को कहा। उन्होंने कहा पंचायत, जिले और राज्य आत्मनिर्भर बनें, ताकि अपनी जरूरतों के लिए कभी बाहरियों का मुँह नहीं देखना पड़ेगा। मोदी ने ई-स्वराज पोर्टल और ई-ग्राम स्वराज ऐप भी लॉन्च किया, जिसके माध्यम से पंचायत के विकास कार्यों, फंड और कामकाज की जानकारी प्राप्त होगी।

“कोरोना ने हमारे काम करने के तरीके को बदल दिया है। इसलिए यह कार्यक्रम वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए किया जा रहा है। कोरोना संकट के इस दौर में हमारे संकल्प की प्रासंगिकता बढ़ गई है। बड़ी बात ये है कि अब हमें आत्मनिर्भर बनना ही पड़ेगा। इसके बिना ऐसे संकट को झेलना मुश्किल हो जाएगा। पंचायत, जिले और राज्य आत्मनिर्भर बनें, ताकि अपनी जरूरतों के लिए कभी बाहरियों का मुँह न देखना पड़े।”
“मजबूत पंचायतें आत्मनिर्भर बनने की नींव हैं। सरकार ने पंचायती राज की व्यवस्थाओं को आधुनिक बनाने के लिए लगातार काम किया है। 1.25 लाख से ज्यादा पंचायतों तक ब्रॉडबैंड कनेक्शन पहुंच गया है। 3 लाख कॉमन सर्विस सेंटर काम कर रहे हैं। आज इतने बड़े पैमाने पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग हो रही है। इसमें इन बातों का बड़ा योगदान है। शहर और गाँव की दूरी कम करने के लिए सरकार ने दो प्रोजेक्ट शुरू किए हैं, ‘ई-ग्राम स्वराज’ और ‘हर ग्रामवासी के लिए स्वामित्व योजना’।”……….मा० प्रधानमंत्री[/box]

[box type=”shadow” ]”राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस” के अवसर पर आज २४ अप्रैल २०२० को सुबह 11:00 बजे देश के मा० प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी ने देशभर के सरपंचों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संवाद किया।

https://www.facebook.com/narendramodi/videos/2800609116714421/ 

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प्रत्येक वर्ष देशभर में 24 अप्रैल को ‘राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस’ मनाया जाता है। यह दिन भारतीय संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम, 1992 के पारित होने का प्रतीक है, जो 24 अप्रैल 1993 से लागू हुआ था। जिसके बाद इस दिन को राष्ट्रीय पंचायतीराज दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत साल 2010 से हुई थी।
[box type=”shadow” ]प्राचीन काल से ही भारतवर्ष के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन में पंचायत का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। सार्वजनिक जीवन का प्रत्येक पहलू इसी के द्वारा संचालित होता था। वैदिक काल में भी पंचायतों का अस्तित्व था। ग्राम के प्रमुख को ग्रामणी कहते थे। उत्तर वैदिक काल में भी यह होता था जिसके माध्यम से राजा ग्राम पर शासन करता था। बौद्धकालीन ग्रामपरिषद् में “ग्राम वृद्ध” सम्मिलित होते थे। इनके प्रमुख को “ग्रामभोजक” कहते थे। परिषद् अथवा पंचायत ग्राम की भूमि की व्यवस्था करती थी तथा ग्राम में शांति और सुरक्षा बनाए रखने में ग्रामभोजक की सहायता करती थी। जनहित के अन्य कार्यों का संपादन भी वही करती थी। स्मृति ग्रंथों में भी पंचायत का उल्लेख है। कौटिल्य ने ग्राम को राजनीतिक इकाई माना है। गुप्तकाल में ग्राम शासन की सबसे छोटी इकाई था जिसके प्रमुख को “ग्रामिक” कहते थे। वह “पंचमंडल” अथवा पंचायत की सहायता से ग्राम का शासन चलाता था। “ग्रामवृद्ध” इस पंचायत के सदस्य होते थे।[/box]
[box type=”shadow” ]ब्रिटिश शासनकाल में पंचायत-व्यवस्था को सबसे अधिक धक्का पहुँचा और वह यह व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई। फिर भी ग्रामों के सामाजिक जीवन में पंचायतें बनी रहीं। प्रत्येक जाति अथवा वर्ग की अपनी अलग-अलग पंचायतें थीं जो उसके सामाजिक जीवन को नियंत्रित करती थीं और पंचायत की व्यवस्था एवं नियमों का उल्लंघन करनेवाले को कठोर दंड दिया जाता था। शासन की ओर से इन पंचायतों के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं किया जाता था। आरंभ से ही अंग्रेजों की नीति यह रही कि शासन का काम, यथासंभव, अधिकाधिक राज्य कर्मचारियों के हाथों में ही रहे। इसके परिणामस्वरूप फौजदारी और दीवानी अदालतों की स्थापना, नवीन राजस्व नीति, पुलिस व्यवस्था, गमनागमन के साधनों का विकास आदि कारणों से ग्रामों का स्वावलंबी जीवन और स्थानीय स्वायत्तता धीरे-धीरे समाप्त हो चली।[/box]
[box type=”shadow” ]भारत गाँवों का देश है । अत: गाँवों की उन्नति एवं विकास पर ही भारत का सम्पूर्ण विकास सम्भव है। भारत के संविधान निर्माता भी इस बात से पूर्ण परिचित थे। इसीलिए स्वतन्त्रता प्राप्ति और उसे स्थायी बनाने हेतु ग्रामीण शासन व्यवस्था की ओर अधिक ध्यान दिया गया । भारत सरकार के 1919 में अधिनियम के अनुसार प्रांतीय सरकारों को स्वशासन के कुछ अधिकार दिए गए और 1920 के आसपास सभी प्रांतों में ग्राम पंचायत अधिनियम बनाए गए। संयुक्त प्रदेश (उत्तर प्रदेश) में 1920 के पंचायत ऐक्ट के अधीन लगभग 4700 ग्राम पंचायतें स्थापित की गईं। सभी प्रांतों में पंचायतों को सीमित अधिकार दिए गए। वे जनस्वास्थ्य, स्वच्छता, चिकित्सा, जलविकास, सड़कों, तालाबों कुओं आदि की देखभाल करती थीं। उन्हें न्याय संबंधी कुछ अधिकार भी प्राप्त थे। वे अधिकतम 200 रु. की चल संपत्ति से संबद्ध मुकदमे ले सकती थीं और फौजदारी के मुकदमों में 50 रु. तक जुर्माना कर सकती थीं। इनकी आय का मुख्य साधन जुर्माना या दान था। परंतु वास्तविकता यह रही कि प्राचीन पंचायतों की तुलना में ये पंचायतें पूर्णतया प्रभावहीन थीं, इनके पंच जनता द्वारा न चुने जाकर सरकार द्वारा मनोनीत किए जाते थे। स्वतंत्रताप्राप्ति के पश्चात् इस व्यवस्था को पुनर्जीवित करने के सक्रिय प्रयास आरंभ हुए। उत्तर प्रदेश में सन् 1947 में पंचायत राज अधिनियम बनाया गया। संविधान के अंतर्गत “राजनीति के निदेशक तत्वों” में राज्य का यह प्रमुख कर्तव्य बतलाया गया कि “वह ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए अग्रसर हो” तथा “उनको ऐसी शक्तियाँ और अधिकार प्रदान करे जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक हों”। इस निदेश के अनुसार प्रत्येक राज्य में पंचायत व्यवस्था लागू करने की दिशा में कदम उठाए गए और प्रत्येक ग्राम अथवा ग्रामसमूह में पंचायत की स्थापना की गई। पंचायत के सदस्यों का चुनाव गाँव के मताधिकारप्राप्त व्यक्तियों द्वारा किया जाता है। ग्राम पंचायतें ग्राम की स्वच्छता, प्रकाश, सड़कों, औषधालयों, कुओं की सफाई और मरम्मत, सार्वजनिक भूमि, पैठ, बाजार तथा मेलों और चरागाहों की व्यवस्था करती हैं, जन्म मृत्यु का लेखा रखती हैं और खेती, उद्योग धंधों एवं व्यवसायों की उन्नति, बीमारियों की रोकथाम, श्मशानों और कब्रिस्तानों की देखभाल भी करती हैं। वृक्षारोपण, पशुवंश का विकास, ग्रामसुरक्षा के लिए ग्रामसेवक दल का गठन, सहकारिता का विकास, अकाल पीड़ितो की सहायता, पुलों और पुलियों का निर्माण, स्कूलों और अस्पतालों का सुधार आदि इनके ऐच्छिक कर्तव्य हैं। ग्रामों में पंचायत व्यवस्था का दूसरा अंग न्याय पंचायतें हैं। ग्रामों में मुकदमेबाजी कम करने तथा जनता को सस्ता न्याय सुलभ बनाने की दृष्टि से न्याय पंचायतों का निर्माण किया गया है। इन्हें दीवानी, फौजदारी और माल के मामलों में कुछ अधिकार प्रदान किए गए है। विकेंद्रीकरण व्यवस्था को पूरी तरह कार्यान्वित करने की दिशा में और भी कदम उठाए गए हैं। पंचायतों के अधिकारों और कर्तव्यों का क्षेत्र विस्तृत हो रहा है। इस प्रकार ग्राम पंचायतें पुन: हमारे देश के जनजीवन का अभिन्न अंग बन गई हैं।[/box]

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[box type=”shadow” ]सन 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम और तत्पश्चात् पंचायती राज की शुरुआत हुई । पंचायतों के गठन के लिए विभिन्न राज्यों द्वारा जो कानून बनाए गये थे उनकी जाँच-पडताल के लिए सन 1957 में बलबन्त राय मेहता की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई । समिति ने सन 1958 में अपनी रिपोर्ट दी । समिति ने पंचायती राज की स्थापना के लिए कुछ मूलभूत सिद्धान्त निर्धारित किए और एक त्रिस्तरीय ढाँचे की सिफारिश की, जिसका तात्पर्य है कि तीन स्तरों पर समितियां बनाईं जाये-ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायतें हो, खण्ड स्तर पर पंचायत समितियां तथा जिला स्तर पर एक जिला परिषद कायम की जाए । अर्थात् ‘ग्रामों’ का समूह ‘खण्ड’ कहलाता है और खण्डों के समूह को ‘जिला’ कहते हैं। मेहता समिति की सिफारिशें सबसे पहले राजस्थान और आध प्रदेश द्वारा स्वीकार की गई। तत्पश्चात् तमिलनाडु मे पंचायतों का गठन किया उड़ीसा, कर्नाटक, असम, पश्चिम बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों ने पंचायती राज की स्थापना के लिए विशेष उत्साह दिखलाया ।[/box]

[box type=”shadow” ]राज्य के मुख्यमन्त्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने प्रदेश के सभी पंचायत प्रतिनिधियों को “राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस” की हार्दिक शुभकामनायें दी।

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Ghanshyam Chandra Joshi

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